जय माताजी
गुजरात की पटेल कोम्युनीटी जो चारण देवी आइ श्री खोडीयार के नाम पर ऐक जुट होकर विश्व रेकोर्ड बना सकती हे तो हम सब क्यो ऐक जुट नही हो रहे हे अलग अलग मंडल,संगठन,बनाकर हम समाज का कोई भला नही कर पायेन्गे समाज के सभी संगठनो को ऐक मंच पर लाकर ही कुछ बात हो सकती हे
पहेले हमे ऐक होना जरुरी हे
पटेल वगेरा कोम्युनीटी मे तो कोइ आपस मे रीस्तेदारी भी नही होती फिर भी सब ऐक मंच पर ऐकही बात तय कर सकते हे तो हमे भी इनमे से कुछ बोध लेना चाहीऐ
जे.डी.गढवी सांबरडा
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શનિવાર, 21 જાન્યુઆરી, 2017
अवनवी माहिती
બુધવાર, 18 જાન્યુઆરી, 2017
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय : रचना :- डोसलभाई सांव(गीर)
( रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय , वकळ वेशीय ईश्र्वरी )
दोहा ,
शारदा माता समरु , धरु तो निज ध्यान ,
भी करजोडी "डोसल" कहे , दियो विधा मुज दान,
सतगुरु मुद समपियो , विधा और विश्र्वास ,
आज रवेशीय अंतरे , अळातम आकाश ,
छंद रुप मुकूंद
आकाश पाताळ तुं धर अंबर , नाग सुर पाय नमे ,
दिगपाल दिगंबर आठ ही डुंगर सात ही शायर तेण समे ,
नव नाथ अने नर चौसठ नारीये हाथ पसारीये तेम हरी ,
रवराय रवशीय जग प्रवेशीय.वकळ वेशीय इश्वरी.
जीये वकळ वेशीय इश्वरी.....टेक. `||1||
सतयुग वीसे मही दाणव साथीये , बाथीये कोई न जोत बिया ,
हणीया सर हुकळ हुयशे हाथीये , हारये क्रोड ते़तीस हिया ,
तब साम तणे अंग उुपनी सुंदर , कोई एेकादशी रुप करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ......... ||2||
मय मोहन रूप हण्यो महि मंडळे लोक ही लोहळ सदय लही ,
सब सो सठ क्रोड दईत संहारण , राह तणे कंठ आव्य रही ,
दळ देव तणे अंग शंख अतीदय , वे लखमी होय नाथ वरी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ........||3||
तब त्रेता मज तुज ने देवीये , सेवा़ीये कारण रुप सती ,
अदभुत पराक्रम तुज तणे अंग , मोहीयो रावण फेर मती ,
लंक लखण राम पताळ गीयो लेह पेहमे रावण हुत परी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||4||
दूवापर अंत हुवो दुरजोधन , मान तंगी बहु राज मही ,
सब सभाविच बोलावीयो शकती , सोय द्रोपतीय आप सही ,
कोई कौरव रे शीर सोंप असो कर खोई दियो सब रा खरी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||5||
आ कळ जगमां किधाई उूपर मेंद तणे शीर आव मसी ,
खटमास अती ते परसो खोळीयो , तोळीयो जोगीने आप तसी ,
नन काट मसतक ईम कहे नर , कोई भयंकर साद करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||6||
बोली तब भाट कवेशर बडीयो , पंड्ये मावल भीड पडी ,
सपना तर अंतर आविये चंडिये ,बात असंडीय तीमबडी ,
आपरो सेवग जाण उुंबारीये , कुंभ बोलावीये साद करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||7||
खाधीय सोगंध राणीगे खोटीय , मोटीये देवरी तेम मया ,
ए मकवाण री दशाय ओटीय , जोटीये काढीये तेम ज्या ,
कोई कोप भयंकर राव परे कर बाबाह रे शर कीध बरी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||8||
कांक वरण ना जोरथी काढीये आठीये पोर संताप असो ,
मत वीसळरी दशा होय ई माठीये त्राठीये गायडी हेड तसो ,
मारीय वीसळ क्रोध करी माडी ,धाव कव्यारी ध्यान धरी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||9||
सवंत अढार पंचाणु नी साल मां ,राघवश घटमांय रमे ,
खेध करतल नाखीये खोदीये , नर मोटा भूप पाय नमे ,
सब्ब चारण का कोई काज सुधारण कारज कीधाय रुप करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||10||
चारणीया मध्य तुंज शकतीये , जयीये राघव सात जमी ,
रंगभीना रंगीला ने खुब रमाडीये , राग रंग हुते फाग रमी ,
रख्य राघवने दीधी असारंग ,कव्य "डोसल" नी भेर करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||11||
कळस छंद छप्प्य
चौद भुवन तन सार सात पाताळ सवीजे
सपत दीप दधि सात , तसा नवखंड तवीजे ,
अष्टकुळ उच्चार , सिध्ध चोराशी सोहे ,
नवे ग्रहे नवनाथ .मुनी अठयासी माहे ,
रवेशी आई एता रसण , गावे मख मख गाथ ही ,
करी भेर "डोसल" कहे आई मुज अनाथरी ,
:- रचयता .डोसलभाई सांव (गीर)
મંગળવાર, 17 જાન્યુઆરી, 2017
સોમવાર, 16 જાન્યુઆરી, 2017
कवि उम्मेदराम जी पालावत
कवी उम्मेदराम जी पालावत
एक बार अलवर के राव बख्तावर सिंह जी अपने साथ प्रवीण शिकारी लेकर जंगल में शिकार करने गए ! वहा उन्होंने एक सूअर को गोली मारी ,मगर वह घायल होकर भाग गया ! शिकारियों ने सूअर की बहुत तलाश की मगर उसका कोई पता नहीं चला !
अलवर के मालखाने दरवाजे के बाहर एक चमेली का बाग था , जहाँ रसूल - शाही फ़क़ीर का एक तकिया था और वह फ़क़ीर एक करामाती औलीया पुरुष था ! वह घायल सूअर उस फ़क़ीर के तकिये पर चला गया ! सूअर को घायल देखकर फ़क़ीर बहुत नाराज हुआ तथा उसने सूअर को घायल करने वाले राजा के पेट में असहनीय दर्द चालू कर दिया ! राजा को इतना भारी असहय दर्द हो रहा था की यदि उसका शीघ्रता से कोई उपचार नहीं किया गया तो राजा के प्राण निकल जायेंगे ! इसी दौरान गुप्तचरों ने राजा को बताया की सूअर तो रसूल शाही फ़क़ीर के तकिये पर गया हे ! और उसको घायल देखकर वह बहुत नाराज हुआ तथा आपके पेट में ये दर्द कर दिया हे !
तभी राजा ने कहलवाया की इसमें मेरा कोई कसूर नहीं हे , सूअर तो तकिये से बाहर बहुत दूर था वहां गोली लगने के पश्चात तकिये पर गया हे हमने तकिये के अंदर उस पर कोई गोली नहीं चलाई हे इसके बाद भी उनको कोई नाराजगी हे तो में क्षमा चाहता हूँ !
राव की यह बात सुनकर फ़क़ीर और अधिक नाराज हुआ , उसने राजा को कहलवाया की यदि वे अपने प्राण बचाना चाहते हे तो अपने दोनों हाथ बांधकर और उन पर रुमाल डालकर मेरे तकिये पर उपस्थित होवे और अपनी डाढी से तकिये पर झाड़ू लगावे ! यदि ऐसा नहीं किया तो उन्हें कुछ समय बाद अपने प्राण छोड़ने होंगे !
यह सुनकर राव बड़े परेशान हुए ! उन्होंने अपने घनिष्ठ सरदारों से कहा की क्या हिन्दुओ में ऐसा कोई देवता हे जो मुझे स्वस्थ करे और मेरी इज्जत बचावे !
स्तिथि बड़ी विकट थी हिन्दू धर्म की सत्ता व् शक्ति का भी प्रश्न था राव मरणासन्न की स्तिथि में पहुच गये , इस पर हणोतिया ग्राम के चारण उम्मेदराम जी पालावत ने कहा की हिन्दुओ में भी देवी देवताओ की कमी नहीं हे यदि आप कहे तो में शक्ति करणी को चडाऊ जिरजाओं व काव्य द्वारा आव्हान करके आपके पेट दर्द ठीक करने की प्रार्थना करू ! राव बख्तावर सिंह ने कहा की माँ शक्ति करणी को अविलम्ब बुलाओ वरना मेरा अंत हो जायेगा !
उम्मेदराम पालावत ने दीपक की ज्योति जोड़कर चडाऊ चिरजाओं व काव्य से करुण पुकार की भावपूर्ण प्रार्थना करना आरम्भ किया ! कुछ ही देर में महल के बुर्ज पर एक चील पक्षी के रूप में आकर , शक्ति विराजमान हुई ! कवी ने राव से कहा की बुर्ज पर चील के रूप में शक्ति करणी पधार गई हे ! आप दर्शन कर अपना पेट दर्द ठीक करे ! राजा ने खड़े होकर शक्ति करणी को अनेकों प्रकार से प्रार्थना कर के पेट ठीक करने को कहा ! कुछ क्षण में राजा का पेट दर्द बिलकुल ठीक हो गया ! वे बड़े प्रसन्न हुए ! राव बख्तावर सिंह ने अपने सिपाइयो को आदेस दिया की अधिक से अधिक रसूल शाही फकीरों के नाक - कान काट ली जावे ! सिपाइयो ने तत्परता से काम करते हुए लगभग 700 रसूल शाही फकीरों के नाकों को काट लिया !
राव बख्तावर सिंह ने माँ करणी से पूर्ण आस्था रखते हुए पच्चीस हजार रुपये की पूजन सामग्री देशनोक भेजी ! जिसमे एक जडाऊ पादुका , एक जोडी सोने के किंवाड , एक जडाऊ छत्र , एक सोने की चौकी , एक सोने की छड़ी भी शामिल थे ! पादुका की जोड़ी अब भी मंदिर के खजाने में रखी हुई हे ! किंवाड की जोड़ी मंदिर द्वार पर चड़ी हुई हे ! राव जीवन पर्यन्त तक शक्ति करणी के अटूट भक्त रहे !
शक्ति करणी के उस चडाऊ काव्य के दो कवित उम्मेद राम जी के कहे हुए इस प्रकार हे ------
| छप्पय|
चंदू वेगी चाल ! चाल खेतल वड चारण !
तोरेे हाथ त्रिशूल ! धजाबंद लोवड धारण !!
वीसहथी इणवार ! देर मतकर डाढाली !
हरो रोग हिंगलाज ! करो ऊपर महाकाली !!
लगाज्यो वेर, पल हेक, मत ! आवडजी री आंण सूं !
आखता सिंह चढ़ आवज्यो ! माता मढ़ देसाण सूं !!१!!
गुंगी,गैली आव ! आव बहरी वरदाई !
हाल, आकुळी आव ! आव करनी मेहाई !!
देवल वेगी दौड़ ! देर मतकर अनदाता !
चालराय झट चाल ! मढ सूं आज्यो मात !!
बावड निभांण जूना बिडद ! आवड जी री आंण सूं !
आखता सिंह चढ़ आवजो ! देवी गढ देसांण सूं !!२!!
गणपत सिंह मुण्डकोशिया 9950408090
सगत लूँगमाँ मंदिर प्राण प्रतिष्ठा एवं वार्षिक मेला एवं चारण प्रतिभा सन्मान आयोजन, वलदरा राजस्थान
🚩सगत लूँग माँ मंदिर प्राण प्रतिष्ठा एवं वार्षिक मेला एवं चारण प्रतिभा सम्मान आयोजन🚩
सगत लूँग माँ धाम वलदरा में गुरूवार दिनाँक 8 फरवरी 2017 तदनुसार तिथि माघ शुक्ल त्रयोदशी के दिन भव्य चिरजा व् राति जोगा कार्यक्रम एवं 9 फ़रवरी 2017 को नव निर्मित मंदिर में सगत लूँग माँ की मूर्ति स्थापना का महोत्सव एवं हिंगलाज माता मंदिर धाम वलदरा के 18 वे वार्षिकोत्सव का भव्य आयोजन होने जा रहा है ।
प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी इस अवसर पर सगत लूँग माँ धाम वलदरा द्वारा चारण समाज की प्रतिभाओं का सम्मान किया जाना है ।
यह सम्मान निम्न श्रेणियों में दिया जाएगा
(1)🚩 शैक्षणिक सत्र 2015-16 में कक्षा 9 ,10 ,11,12 स्नातक ,स्नातकोत्तर अथवा किसी भी अन्य डिग्री डिप्लोमा में 70 % से अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी ।
(2) 🚩आर पी एस सी / यू पी एस सी / एस एस सी या अन्य किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर जनवरी 2016 से दिसंबर 2016 तक नियुक्ति पाने वाले अभ्यर्थी ।
(3)🚩राज्य,राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्र विशेष में विशिष्ट कार्य के लिए सम्मानित हुए व्यक्ति ।
🙏🏻पुरूस्कार प्राप्ति हेतु स्वयं का उपस्थित होना एवं ओरिजनल मार्क शीट साथ लाना अनिवार्य है ।
🙏🏻पुरूस्कार के लिए पंजीयन हेतु कृपया एक पासपोर्ट साइज़ फोटो, नाम-पता विवरण एवं मार्क शीट अथवा नियुक्ति पत्र की प्रतिलिपि दिनांक 31 जनवरी 2017 से पूर्व निम्न पते पर भिजवावे ।
हिंगलाज धाम वलदरा
वाया कालन्द्री
जिला सिरोही
राजस्थान 307802
अथवा e mail करें
neerajarha@gmail.com पर
अन्य जानकारी हेतु संपर्क करें
नरेंद्र सिंह आढ़ा 9414428529 नरपतसिंहआशिया 8003993029
डूंगर सिंह आशिया 9982107507
राजेंद्र सिंह आढ़ा 9414428155
सुल्तान सिंह देवल 7737095071
प्रतिभा सम्मान समारोह से सम्बंधित डोकुयुमेंट्स निर्धारित तिथि तक व्यक्तिशः तौर पर निम्न बन्धुओ को भी जमा करवाए जा सकते है
1 उदयपुर सम्भाग हेतु चारणाचार कार्यालय उदयपुर
2 . उदयपुर हेतु व्यक्तिगत तौर पर सुल्तान सा देवल 7737095071 व् महेंद्र सा दुधालिया 9782439971
3 . नागौर जिले या आस पास क्षैत्र हेतू
सुरेश सा झोरडा 9950210110
4 . बीकानेर क्षैत्र हेतु जगदीश सा बीठू सींथल 9414515145
5 . जोधपुर सम्भाग शहर हेतु जे डी कविया बिराई 9460768666व् जोधपुर ग्रामीण हेतु नारायण सिंह सा तोलेसर 9414602225
6 . बालोतरा व् बाड़मेर हेतु बी डी चारण साहब झिनकली हाल बालोतरा 9983307671व् तेजपाल सा भादरेश हाल बाड़मेर 9772848667
7. चौहटन एवं बाड़मेर हेतु श्री बाबू दान देवळ 09799022082
8. अजमेर व् व्यावर हेतु भवानी प्रताप सा आशिया 9929603789
9. पाली जिले हेतु महिपाल सिंह आढ़ा 9414521002
10. जयपुर हेतु गौरव सा सूरत पूरा
9828860987
11. जैसलमेर हेतु रणजीत सिंह सांगड 9828823721
12. राजसमन्द हेतु नरेंदर सिंह मन्दार हाल नाथुदुवारा 8107901999
13 . गुजरात बनास कांठा हेतु जे डी गढवी साब 9426704475
14. बैंगलोर हेतु श्री जब्बर सिंह सा
+919379446956
15. डूंगरपुर हेतु देवेंद्र सिंह मेरोप 9928535403
16 प्रवीण दान रोहड़िया दक्षिणी गुजरात हेतु 9426900505
17 धर्मेंद्र सा सौदा बांसवाड़ा क्षेत्र हेतु
9983949922
इन सभी समाज बन्धुओ को आप व्यक्तिगत डोक्युमेंट दे सकते है ।
🚩.......जय जोगमाया री सा.......🚩जय सगत लूँग माँ
चारण कविओ की थोडी जाणकारी.
*मान* *मन* *अंजसो* *मती,* *अकबर* *बल* *आयाँह* *|*
*वो* *जोधो* *राठोड* *तो,* *(निज)* *भुजा* *पांण* *पायाह* *||*
राजा बनने के बाद राव चूंडा अपने बचपन के आश्रयदाता चारणों को भूल गया और अपने राज वैभव में मस्त हो गया तब एक दिन कवी ने उसे खरी खरी सुनाते हुए ये दोहा कहा --
*भड़* *बैठो* *भयभीत,* *मंडोवर* *रे* *मालियां* ||
*हिंदवाणी* *रो* *सेवरो,* *तुरकाणी* *रो* *शाल* |1|
*प्रथम* *तात* *मारियौ,* *मात* *जीवति* *जलाई* |
*असी* *चार* *आदमी,* *हत्या* *ज्यौ* *री* *पण* *पाई* |2|
*कर* *गाठो* *ईकलास,* *वेग* *जय* *सिंग* *बुलायो* |
*मेटी* *धरम* *मरजाद,* *भरम* *गांठ* *रो* *गमायौ* |3|
*कवि* *अणाहुंत* *कैवा* *करे,* *धरा* *उदक* *लेवणधरी* |
*बखतसी* *जलम* *पायो* *पछे,* *किसी* *बात* *आछी* *करी* |4|
*कुरम* *मारयो* *दीकरो*, *कमधज* *मारयो* *बाप* ||
*कालच री कुल में कमंद राची किम या रीत* | *दिल्ली डोलो भेजने अबखी करी अजीत* |2|
*मरुधर रो मुंडो कालो किम किधो कंवर* |
*असी घाव ऊंडो अबखो मन लागे अजा* |3|
*रण रा रंग राता खाता साहा रे सरण | नित जोडया* *नाता अवसल नाह रेसी अजा* |4|
*ईन्दर कवंरी ने हाय भेजी हूसैन संग* | *मेहणी मरूधर ने ईतीहासादीधी अजा* |5|
*दुरगा देसां काढने अबखी करी अजीत*|1|
*समौ तो पलटण सील हे राज बदल जुग रीत*|
*देसी मेहणी देसडा आगमतनै अजीत*|2|
*जीण रो गुण किम जय , अज घण बुंठा ही अजा* ||
*एकर बापों फिर कहयो, तो तुरंग तजेला प्राण* ||
*अब देखो मेवाड़ पति तारा विया हजुर*||
*दो दो गयंदन बंधसी , एक ही कमुठांण* ||
*धणियांणी थारी धरा नुगरा किम नाचंत* |1|
*ठाकर बाजो ठाकरां अवरां रा आधार* |
*कागमाळा रा कंवरडा मरीयोडा मत मार* |2|
*नित दारू नाडाह उपमा पायने उमगै* |
*जुलमी सै जाडाह गारत होसी गुमानियां* |3|
*लोई पीवो मत लाडलां ओ नह वाली वाट* |
*इक दिन पाणी उतरसी घर घर घाटो घाट* |4|
निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर : रचना :- पींगळशीभाई पाताभाई नरेला
निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर.
रचयिता : राजकवि पिंगळशीभाई पाताभाई नरेला. भावनगर
दोहो
सोई सत्य सदज्ञान हे , धर्म दानमें ध्यान ,
मान जूठ मनमें नही, सबका प्रान समान.
छंद हरिगीत
सब प्रान ऐक समान जानत, धर्म में द्रढ ध्यान हे ,
शुभ कर्ममें चित संत संगती, जूठ कबु न जीभान हे.
विद्याय परगुन गान वर्नत , कुलमणी। निष्काम हे,
निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर सद्ज्ञान उनका नाम हे ...........1
यह जकत मिथ्या हे उपाधि , सत्य कीर्ति सर्वदा,
वेहवारमें हे अनंत व्याधि अधिक तनमें आपदा,
सुखरूप ईश्वर भजन साधन मन ठरन को ठाम हे,
निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर सदज्ञान उनका नाम हे............2
अपना नही ऐ माल धन , स्वपना की बाजी सर्व हे,
अपना करी फिर मानता ओ तो गुप्त मनका गर्व हे,
याते करो सुकृत कछु वट पंखी का विश्राम हे,
निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर सदज्ञान उनका नाम हे.............3
continue.
संकलन : अनिरुद्ध जे. नरेला.
राहडो सुरज रांण रमे : रचना :- जोगीदान गढवी
. *|| राहडो सुरज रांण रमे ||*
. *रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)*
. *राग: मोर बनी थनगाट करे नो लय*
" रुडोय मजानो राहडो, रचीयो सुरज रांण
जग जोतो र्यो जोगडा, भव भव तुंने भांण."
राहडो सुरज रांण रमे..जीय राहडो सुरज रांण रमे..(०२)
ऐनी आगळ पाछळ आरतीयुं..ऐने गीत नगारा ने घाव गमे..
जीय राहडो सुरज रांण रमे........…..(०२) .....................टेक.
किलकाट जुवो रजनी करती..धरती सरती फरती फरती
चोडी भाल मां पुनम चांदलीयो, ऐनी आंखडीये अमियुं झरती.(०२)
ओढ्युं ओढण टांकल तारलीये, तिंणा साद थी तम्मर तम्म तमे.
जोगीदांन तणां गुंण गांन सुंणी.. नीत राहडो सुरज रांण रमे. ||01||
जळेळाट नभे जळकाट करे, प्रित सांज परोढ नी थाट पडे..
ऐनी ठेक वचे घन घोर मचे, बणीं नीर घरा प्रसवेद पडे..(०२)
दीये ताल हेताळीय ताळीय थी, ऐने न्याळीय नारीय नेह नमे.
जोगीदांन तणां गुंण गांन सुंणी.. नीत राहडो सुरज रांण रमे. ||02||
दखणांयन ने उतरांयण मां, दीस देह हींडोळीय ताल दीये..
निरखे नवढा नीज नेंणलीये, प्रितमाळ अयो ज्यम पालखीये..(०२)
लई लाल हींगोळीय देह लजा.,सरमाई उभो होय सांज समे..
जोगीदांन तणां गुंण गांन सुंणी.. नीत राहडो सुरज रांण रमे. ||03||
सनमांन सगत्तीय उर सदा, लीये रास ने सुरज जाय लच्यो
नीशी सांज परोढ ने रांदल सुं, मन मानीयुं हारेय नेह मच्यो..(०२)
रच्यो रास महा नभ मंडळ मां..नव ग्रह निहाळीन पाय नमे
जोगीदांन तणां गुंण गांन सुंणी.. नीत राहडो सुरज रांण रमे. ||04||
. || प्रजा पालक भगवान भास्कर ने हजारो वंदन ||..
रटीएे सोनल नाम : रचना :- कविश्री प्रभुदान सुरु
*कविश्री प्रभूदान सुरु नी एेक रचना .*
रटीएे सोनल नाम , करएे उजवल काम .....रटी
जनमो जनमनी पूंजी अमारी , सोनल बीज सुखधाम ,
बार राशीमा उत्तम अमने , पोष मास एेक नाम ,
रटीएे सोनल नाम , करएे उजवल काम.....
गाओ नित गुण श्रध्धा राखी , प्रात बपोर ने शाम ,
सोनल सोनल साद रुपाळो , गजवो गामे गाम ,
रटीएे सोनल नाम , करएे उजवल काम.....
सोनलने नित हरदम वहालुं , मढडा रुडु धाम ,
दर्शनथी दु:ख हळवा थाशे , सुधरे आतम राम ,
रटीएे सोनल नाम , करएे उजवल काम.....
चारणनो दिनमान सवायो , लेता सोनल नाम ,
हाम ठाम ने किरत साथे , देशे सोनल दाम ,
रटीएे सोनल नाम , करएे उजवल काम.....
रचना :- कवि श्री प्रभूदानजी सुरु भावनगर
जागोने जदुरायजी : रचना :- पिंगळशीभाई पाताभाई नरेला.
रचयिता : राजकवि पिंगलशीभाई पाताभाई नरेला. भावनगर
रामकली
जागोने जागोने जदुरायजी , मोहन जोवे ते मागो ,
दर्शन आपो दासने , त्रिकम आळस त्यागो....जागोने.....1
रविऐ रथ शाणगारीया-अळगु थयु छे अंधारु ,
गोकुळ सूंदर गामडू , सहु ने लागे छे सारू.......जागोने....2
गौ लइ लइ गोवालिया आंगणीयामां आवे ,
मित्र कहीने मावजी , बहु हेतेथी बोलावे.......जागोने.....3
सरखे सरखी साहेलडी ,जाय जमुनाना पाणी,
महिडा लइ मैंयारीयु , तम काजे रोकाणी.........जागोने....4
जिवन झटपट जागीया , विनति सुणी वनमाली,
पिंगलसी के प्रभातमां , मूर्ति जोई मरमाली......जागोने....5
संकलन : अनिरुद्ध जे. नरेला.
ईसरा परमेसरा अवतरण
ईसरा परमेसरा अवतरण
प्राचीन काल से गिरिनामा संन्यासी, नाथ योगी और अनेक श्रद्धालु हिंगलाजधाम की दुर्गम यात्रा करते आये हे ! इस पावन यात्रा को माई-स्पर्श करना कहते हे !
एक बार गिरिनामा सन्यासियों की एक जमात माई-स्पर्श करने को मारवाड़ से सिंध प्रदेश की और बढ़ रही थी ! बाडमेर के निकट भाद्रेस ग्राम में जमात ने दोपहर का विश्राम लिया हारे-थके पदयात्री पेड़ो की छाया में सुस्ताने लगे ! गाव के प्रांगण में सामने ही सूरा चारण का घर था ! सूरा अपनी पोल में अनमना सा बेठा था ! जमात को देखते ही उसके मन में प्रसन्नता की लहर दोड़ गई सूरा ने जमात के महंत को भोजन प्रसादी के लिए आमंत्रित कर लिया ! तनिक अन्तराल के बाद वह जमात को बुलाने चला आया ! श्री महंत और साधुओ ने सूरा के घर भरपेट भोजन किया !
महंत ज्वालागिरी को यह देख बडा आश्चर्य हुआ की एक ग्रामवासी ने पूरी जमात को इतने कम समय में मिष्टान बना कर केसे जिमा दिया ! भोजनोपरांत महंतजी ने सूरा से पूछा की भक्त तुमने भोजन प्रसादी इतने अल्प समय में केसे तयार कर ली ! सूरा चारण सरलवृति का एक सज्जन व्यक्ति था ! पहले तो वह बात को टालता रहा , किन्तु महंत जी का आग्रह देख उसने आप बीती सुना दी !
शताब्दियों पूर्व गाव में सहकारिता की भावना से खेतो में सामूहिक श्रम कार्य चला करता था ! ग्रामवासी अवसर आने पर एकसाथ मिलकर काम करते ! जिसके खेत में श्रम कार्य चलता वह सबको मीठा भोजन बना कर खिलाता ! उस दिन सूरा ने अपने बीड का घास कटाने को ग्राम वासियों के लिए पकवान तेयार किया था , किन्तु उसका भतीजा ग्राम वासियों को अपने खेत में ले गया ! सूरा की पोल में कडाव भरा सीरा पड़ा ही रह गया ! सूरा के कोई संतान नहीं थी ! वह अपने भतीजे से कोई विवाद खड़ा करना नहीं चाहता था , अतः मन मसोज कर रह गया ! संयोगवश उसी समय गाव में जमात आ गयी और वह सीरा सूरा ने जमात को जीमा दिया !
जब श्री महंत को इस घटना का पता लगा तो सूरा के भतीजे शिवराज को बुलाया ,सन्यासी के नाते उसे अपने पास बैठाकर स्नेह और सद्भाव का उपदेश दिया ! उपदेश सुनना तो दूर रहा , वह अविवेकी अकारण ही आपे से बाहर हो गया और क्रोधवस यह कह बेठा कि आप मोटे महात्मा हो , काकाजी को बेटा देदो !
महंत मुस्कराए और बोले " माई ने चाहा तो ऐसा ही होगा " भगवत्ती की अपार लीला हे ! एक वर्ष के अन्दर ही सूरा के घर ईसर आ गया ! घर में आनंद छा गया ! इस घटना को लेकर लोक प्रचलन में एक दोहा प्रसिद्ध हे !
कापडियो हिंगलाज रो ,
हिंवाले गलियोह !
सूरा बारठ रे घरे,
ईसर अवतरीयोह !
माई-स्पर्श कर महंत ज्वालागिरी ने एक शुभ संकल्प के साथ अपना शरीर त्याग दिया ! चारण समाज में शताब्दियों से यह मान्यता चली आ रही हे की ईसरदासजी पूर्व जन्म के महात्मा थे जो दया विचारकर सूरा बारठ के घर अवतरित हुए !
नाभादास की भक्तमाल में चवदह चारण भक्तो का उल्लेख मिलता हे जिनमे भक्त कवी ईसरदास का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया गया हे ! ------- जय ईसरा परमेसरा
गणपत सिंह चारण(चांचडा), मुण्डकोशिया--9950408090
રવિવાર, 15 જાન્યુઆરી, 2017
ईसरा परमेसरा अवतरण
ईसरा परमेसरा अवतरण
प्राचीन काल से गिरिनामा संन्यासी, नाथ योगी और अनेक श्रद्धालु हिंगलाजधाम की दुर्गम यात्रा करते आये हे ! इस पावन यात्रा को माई-स्पर्श करना कहते हे !
एक बार गिरिनामा सन्यासियों की एक जमात माई-स्पर्श करने को मारवाड़ से सिंध प्रदेश की और बढ़ रही थी ! बाडमेर के निकट भाद्रेस ग्राम में जमात ने दोपहर का विश्राम लिया हारे-थके पदयात्री पेड़ो की छाया में सुस्ताने लगे ! गाव के प्रांगण में सामने ही सूरा चारण का घर था ! सूरा अपनी पोल में अनमना सा बेठा था ! जमात को देखते ही उसके मन में प्रसन्नता की लहर दोड़ गई सूरा ने जमात के महंत को भोजन प्रसादी के लिए आमंत्रित कर लिया ! तनिक अन्तराल के बाद वह जमात को बुलाने चला आया ! श्री महंत और साधुओ ने सूरा के घर भरपेट भोजन किया !
महंत ज्वालागिरी को यह देख बडा आश्चर्य हुआ की एक ग्रामवासी ने पूरी जमात को इतने कम समय में मिष्टान बना कर केसे जिमा दिया ! भोजनोपरांत महंतजी ने सूरा से पूछा की भक्त तुमने भोजन प्रसादी इतने अल्प समय में केसे तयार कर ली ! सूरा चारण सरलवृति का एक सज्जन व्यक्ति था ! पहले तो वह बात को टालता रहा , किन्तु महंत जी का आग्रह देख उसने आप बीती सुना दी !
शताब्दियों पूर्व गाव में सहकारिता की भावना से खेतो में सामूहिक श्रम कार्य चला करता था ! ग्रामवासी अवसर आने पर एकसाथ मिलकर काम करते ! जिसके खेत में श्रम कार्य चलता वह सबको मीठा भोजन बना कर खिलाता ! उस दिन सूरा ने अपने बीड का घास कटाने को ग्राम वासियों के लिए पकवान तेयार किया था , किन्तु उसका भतीजा ग्राम वासियों को अपने खेत में ले गया ! सूरा की पोल में कडाव भरा सीरा पड़ा ही रह गया ! सूरा के कोई संतान नहीं थी ! वह अपने भतीजे से कोई विवाद खड़ा करना नहीं चाहता था , अतः मन मसोज कर रह गया ! संयोगवश उसी समय गाव में जमात आ गयी और वह सीरा सूरा ने जमात को जीमा दिया !
जब श्री महंत को इस घटना का पता लगा तो सूरा के भतीजे शिवराज को बुलाया ,सन्यासी के नाते उसे अपने पास बैठाकर स्नेह और सद्भाव का उपदेश दिया ! उपदेश सुनना तो दूर रहा , वह अविवेकी अकारण ही आपे से बाहर हो गया और क्रोधवस यह कह बेठा कि आप मोटे महात्मा हो , काकाजी को बेटा देदो !
महंत मुस्कराए और बोले " माई ने चाहा तो ऐसा ही होगा " भगवत्ती की अपार लीला हे ! एक वर्ष के अन्दर ही सूरा के घर ईसर आ गया ! घर में आनंद छा गया ! इस घटना को लेकर लोक प्रचलन में एक दोहा प्रसिद्ध हे !
कापडियो हिंगलाज रो ,
हिंवाले गलियोह !
सूरा बारठ रे घरे,
ईसर अवतरीयोह !
माई-स्पर्श कर महंत ज्वालागिरी ने एक शुभ संकल्प के साथ अपना शरीर त्याग दिया ! चारण समाज में शताब्दियों से यह मान्यता चली आ रही हे की ईसरदासजी पूर्व जन्म के महात्मा थे जो दया विचारकर सूरा बारठ के घर अवतरित हुए !
नाभादास की भक्तमाल में चवदह चारण भक्तो का उल्लेख मिलता हे जिनमे भक्त कवी ईसरदास का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया गया हे ! ------- जय ईसरा परमेसरा
गणपत सिंह चारण(चांचडा), मुण्डकोशिया--9950408090
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