ચારણત્વ

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શનિવાર, 21 જાન્યુઆરી, 2017

अवनवी माहिती

जय माताजी
गुजरात की पटेल कोम्युनीटी जो चारण देवी आइ श्री खोडीयार के नाम पर ऐक जुट होकर विश्व रेकोर्ड बना सकती हे तो हम सब क्यो ऐक जुट नही हो रहे हे अलग अलग मंडल,संगठन,बनाकर हम समाज का कोई भला नही कर पायेन्गे समाज के सभी संगठनो को ऐक मंच पर लाकर ही कुछ बात हो सकती हे
पहेले हमे ऐक होना जरुरी हे
पटेल वगेरा कोम्युनीटी मे तो कोइ आपस मे रीस्तेदारी भी नही होती फिर भी सब ऐक मंच पर ऐकही बात तय कर सकते हे तो हमे भी इनमे से कुछ बोध लेना चाहीऐ
जे.डी.गढवी सांबरडा

બુધવાર, 18 જાન્યુઆરી, 2017

छात्रावास का भूमि पुजन, निमाड.(मध्यप्रदेश)

रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय : रचना :- डोसलभाई सांव(गीर)

( रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय , वकळ वेशीय ईश्र्वरी )

दोहा ,
शारदा माता समरु , धरु तो निज ध्यान ,
भी करजोडी "डोसल" कहे , दियो विधा मुज दान,

सतगुरु मुद समपियो , विधा और विश्र्वास ,
आज रवेशीय अंतरे , अळातम आकाश ,

छंद रुप मुकूंद
आकाश पाताळ तुं धर अंबर , नाग सुर पाय नमे ,
दिगपाल दिगंबर आठ ही डुंगर सात ही शायर तेण समे ,
नव नाथ अने नर चौसठ नारीये हाथ पसारीये तेम हरी ,
  रवराय रवशीय जग प्रवेशीय.वकळ वेशीय इश्वरी.
जीये वकळ वेशीय इश्वरी.....टेक.   `||1||

सतयुग वीसे मही दाणव साथीये , बाथीये कोई न जोत बिया ,
हणीया सर हुकळ हुयशे हाथीये , हारये क्रोड ते़तीस हिया ,
तब साम तणे अंग उुपनी सुंदर , कोई एेकादशी रुप करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ......... ||2||

मय मोहन रूप हण्यो महि मंडळे लोक ही लोहळ सदय लही ,
सब सो सठ क्रोड दईत संहारण , राह तणे कंठ आव्य रही ,
दळ देव तणे अंग शंख अतीदय , वे लखमी होय नाथ वरी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ........||3||

तब त्रेता मज तुज ने देवीये , सेवा़ीये कारण रुप सती ,
अदभुत पराक्रम तुज तणे अंग , मोहीयो रावण फेर मती ,
लंक लखण राम पताळ गीयो लेह पेहमे रावण हुत परी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||4||

दूवापर अंत हुवो दुरजोधन , मान तंगी बहु राज मही ,
सब सभाविच बोलावीयो शकती , सोय द्रोपतीय आप सही ,
कोई कौरव रे शीर सोंप असो कर खोई दियो सब रा खरी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||5||

आ कळ जगमां किधाई उूपर मेंद तणे शीर आव मसी ,
खटमास अती ते परसो खोळीयो , तोळीयो जोगीने आप तसी ,
नन काट मसतक ईम कहे नर , कोई भयंकर साद करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||6||

बोली तब भाट कवेशर बडीयो , पंड्ये मावल भीड पडी ,
सपना तर अंतर आविये चंडिये ,बात असंडीय तीमबडी ,
आपरो सेवग जाण उुंबारीये , कुंभ बोलावीये साद करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||7||

खाधीय सोगंध राणीगे खोटीय , मोटीये देवरी तेम मया ,
ए मकवाण री दशाय ओटीय , जोटीये काढीये तेम ज्या ,
कोई कोप भयंकर राव परे कर बाबाह रे शर कीध बरी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||8||

कांक वरण ना जोरथी काढीये आठीये पोर संताप असो ,
मत वीसळरी दशा होय ई माठीये त्राठीये गायडी हेड तसो ,
मारीय वीसळ क्रोध करी माडी ,धाव कव्यारी ध्यान धरी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||9||

सवंत अढार पंचाणु नी साल मां ,राघवश घटमांय रमे ,
खेध करतल नाखीये खोदीये , नर मोटा भूप पाय नमे ,
सब्ब चारण का कोई काज सुधारण कारज कीधाय रुप करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||10||
चारणीया मध्य तुंज शकतीये , जयीये राघव सात जमी ,
रंगभीना रंगीला ने खुब रमाडीये , राग रंग हुते फाग रमी ,
रख्य राघवने दीधी असारंग ,कव्य "डोसल" नी भेर करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय .........||11||

कळस छंद छप्प्य
चौद भुवन तन सार सात पाताळ सवीजे
सपत दीप दधि सात , तसा नवखंड तवीजे ,
अष्टकुळ उच्चार , सिध्ध चोराशी सोहे ,
नवे ग्रहे नवनाथ .मुनी अठयासी माहे ,
रवेशी आई एता रसण , गावे मख मख गाथ ही ,
करी भेर "डोसल" कहे आई मुज अनाथरी ,

:- रचयता .डोसलभाई सांव (गीर)

સોમવાર, 16 જાન્યુઆરી, 2017

कवि उम्मेदराम जी पालावत

कवी उम्मेदराम जी पालावत

एक बार अलवर के राव बख्तावर सिंह जी अपने साथ प्रवीण शिकारी लेकर जंगल में शिकार करने गए ! वहा उन्होंने एक सूअर को गोली मारी ,मगर वह घायल होकर भाग गया ! शिकारियों ने सूअर की बहुत तलाश की मगर उसका कोई पता नहीं चला !
    अलवर के मालखाने दरवाजे के बाहर एक चमेली का बाग था , जहाँ रसूल - शाही फ़क़ीर का एक तकिया था और वह फ़क़ीर एक करामाती औलीया पुरुष था ! वह घायल सूअर उस फ़क़ीर के तकिये पर चला गया ! सूअर को घायल देखकर फ़क़ीर बहुत नाराज हुआ तथा उसने सूअर को घायल करने वाले राजा के पेट में असहनीय दर्द चालू कर दिया ! राजा को इतना भारी असहय दर्द हो रहा था की यदि उसका शीघ्रता से कोई उपचार नहीं किया गया तो राजा के प्राण निकल जायेंगे ! इसी दौरान गुप्तचरों ने राजा को बताया की सूअर तो रसूल शाही फ़क़ीर के तकिये पर गया हे ! और उसको घायल देखकर वह बहुत नाराज हुआ तथा आपके पेट में ये दर्द कर दिया हे !
     तभी राजा ने कहलवाया की इसमें मेरा कोई कसूर नहीं हे , सूअर तो तकिये से बाहर बहुत दूर था वहां गोली लगने के पश्चात तकिये पर गया हे हमने तकिये के अंदर उस पर कोई गोली नहीं चलाई हे इसके बाद भी उनको कोई नाराजगी हे तो में क्षमा चाहता हूँ !
   राव की यह बात सुनकर फ़क़ीर और अधिक नाराज हुआ , उसने राजा को कहलवाया की यदि वे अपने प्राण बचाना चाहते हे तो अपने दोनों हाथ बांधकर और उन पर रुमाल डालकर मेरे तकिये पर उपस्थित होवे और अपनी डाढी से तकिये पर झाड़ू लगावे ! यदि ऐसा नहीं किया तो उन्हें कुछ समय बाद अपने प्राण छोड़ने होंगे !
    यह सुनकर राव बड़े परेशान हुए ! उन्होंने अपने घनिष्ठ सरदारों से कहा की क्या हिन्दुओ में ऐसा कोई देवता हे जो मुझे स्वस्थ करे और मेरी इज्जत बचावे !
     स्तिथि बड़ी विकट थी हिन्दू धर्म की सत्ता व् शक्ति का भी प्रश्न था राव मरणासन्न की स्तिथि में पहुच गये , इस पर हणोतिया ग्राम के चारण उम्मेदराम जी पालावत ने कहा की हिन्दुओ में भी देवी देवताओ की कमी नहीं हे यदि आप कहे तो में शक्ति करणी को चडाऊ जिरजाओं व काव्य द्वारा आव्हान करके आपके पेट दर्द ठीक करने की प्रार्थना करू ! राव बख्तावर सिंह ने कहा की माँ शक्ति करणी को अविलम्ब बुलाओ वरना मेरा अंत हो जायेगा !
       उम्मेदराम पालावत ने दीपक की ज्योति जोड़कर चडाऊ चिरजाओं व काव्य से करुण पुकार की भावपूर्ण प्रार्थना करना आरम्भ किया  ! कुछ ही देर में महल के बुर्ज पर एक चील पक्षी के रूप में आकर , शक्ति विराजमान हुई ! कवी ने राव से कहा की बुर्ज पर चील के रूप में शक्ति करणी पधार गई हे ! आप दर्शन कर अपना पेट दर्द ठीक करे ! राजा ने खड़े होकर शक्ति करणी को अनेकों प्रकार से प्रार्थना कर के पेट ठीक करने को कहा ! कुछ क्षण में राजा का पेट दर्द बिलकुल ठीक हो गया ! वे बड़े प्रसन्न हुए ! राव बख्तावर सिंह ने अपने सिपाइयो को आदेस दिया की अधिक से अधिक रसूल शाही फकीरों के नाक - कान काट ली जावे ! सिपाइयो ने तत्परता से काम करते हुए लगभग 700 रसूल शाही फकीरों के नाकों को काट लिया !
      राव बख्तावर सिंह ने माँ करणी से पूर्ण आस्था रखते हुए पच्चीस हजार रुपये की पूजन सामग्री देशनोक भेजी ! जिसमे एक जडाऊ पादुका , एक जोडी सोने के किंवाड , एक जडाऊ छत्र , एक सोने की चौकी , एक सोने की छड़ी भी शामिल थे ! पादुका की जोड़ी अब भी मंदिर के खजाने में रखी हुई हे ! किंवाड की जोड़ी मंदिर द्वार पर चड़ी हुई हे ! राव जीवन पर्यन्त तक शक्ति करणी के अटूट भक्त रहे !
 
   शक्ति करणी के उस चडाऊ काव्य के दो कवित उम्मेद राम जी के कहे हुए इस प्रकार हे ------

    | छप्पय|
चंदू वेगी चाल ! चाल खेतल वड चारण !
तोरेे हाथ त्रिशूल ! धजाबंद लोवड धारण !!
वीसहथी इणवार ! देर मतकर डाढाली !
हरो रोग हिंगलाज ! करो ऊपर महाकाली !!
लगाज्यो वेर, पल हेक, मत ! आवडजी री आंण सूं !
आखता सिंह चढ़ आवज्यो ! माता मढ़ देसाण सूं !!१!!

गुंगी,गैली आव ! आव बहरी वरदाई !
हाल, आकुळी आव ! आव करनी मेहाई !!
देवल वेगी दौड़ ! देर मतकर अनदाता !
चालराय झट चाल ! मढ सूं आज्यो मात !!
बावड निभांण जूना बिडद ! आवड जी री आंण सूं !
आखता सिंह चढ़ आवजो ! देवी गढ देसांण सूं !!२!!

      गणपत सिंह मुण्डकोशिया 9950408090

सगत लूँगमाँ मंदिर प्राण प्रतिष्ठा एवं वार्षिक मेला एवं चारण प्रतिभा सन्मान आयोजन, वलदरा राजस्थान

🚩सगत लूँग माँ मंदिर प्राण प्रतिष्ठा एवं वार्षिक मेला एवं चारण प्रतिभा सम्मान आयोजन🚩
सगत लूँग माँ धाम वलदरा में गुरूवार दिनाँक 8 फरवरी 2017 तदनुसार  तिथि माघ शुक्ल त्रयोदशी के दिन भव्य चिरजा व् राति जोगा कार्यक्रम एवं 9 फ़रवरी 2017 को नव निर्मित मंदिर में सगत लूँग माँ की मूर्ति स्थापना का महोत्सव एवं हिंगलाज माता मंदिर धाम वलदरा के  18 वे वार्षिकोत्सव  का भव्य आयोजन होने जा रहा है ।
प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी इस  अवसर पर  सगत लूँग माँ धाम वलदरा द्वारा चारण समाज की प्रतिभाओं का सम्मान किया जाना है ।
यह सम्मान निम्न श्रेणियों में दिया जाएगा

(1)🚩 शैक्षणिक  सत्र 2015-16 में कक्षा 9 ,10 ,11,12 स्नातक ,स्नातकोत्तर अथवा किसी भी अन्य डिग्री डिप्लोमा में 70 % से अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी ।

(2) 🚩आर पी एस सी / यू पी एस सी  / एस एस सी  या अन्य किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर जनवरी 2016 से दिसंबर 2016 तक नियुक्ति पाने वाले अभ्यर्थी ।

(3)🚩राज्य,राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्र विशेष में विशिष्ट कार्य के लिए सम्मानित हुए व्यक्ति ।

🙏🏻पुरूस्कार प्राप्ति हेतु स्वयं का उपस्थित होना एवं ओरिजनल मार्क शीट साथ लाना अनिवार्य है ।

🙏🏻पुरूस्कार के लिए पंजीयन हेतु कृपया एक पासपोर्ट साइज़ फोटो, नाम-पता विवरण  एवं मार्क शीट अथवा नियुक्ति पत्र की प्रतिलिपि दिनांक 31 जनवरी 2017 से पूर्व निम्न पते पर भिजवावे ।

हिंगलाज धाम वलदरा
वाया कालन्द्री
जिला सिरोही
राजस्थान 307802
अथवा e mail करें

neerajarha@gmail.com पर

अन्य जानकारी हेतु संपर्क करें

नरेंद्र सिंह आढ़ा 9414428529 नरपतसिंहआशिया 8003993029
डूंगर सिंह आशिया 9982107507
राजेंद्र सिंह आढ़ा 9414428155
सुल्तान सिंह देवल 7737095071

प्रतिभा सम्मान समारोह से सम्बंधित डोकुयुमेंट्स  निर्धारित तिथि तक व्यक्तिशः तौर पर निम्न बन्धुओ को भी जमा करवाए जा सकते है
1 उदयपुर सम्भाग हेतु चारणाचार कार्यालय उदयपुर
2 . उदयपुर हेतु व्यक्तिगत तौर पर सुल्तान सा देवल 7737095071 व् महेंद्र सा दुधालिया 9782439971
3 . नागौर जिले या आस पास क्षैत्र हेतू
सुरेश सा झोरडा 9950210110
4 . बीकानेर क्षैत्र हेतु जगदीश सा बीठू सींथल 9414515145
5 . जोधपुर सम्भाग शहर हेतु जे डी कविया बिराई 9460768666व् जोधपुर ग्रामीण हेतु नारायण सिंह सा तोलेसर 9414602225
6 . बालोतरा व् बाड़मेर हेतु बी डी चारण साहब झिनकली हाल बालोतरा 9983307671व् तेजपाल सा भादरेश हाल बाड़मेर 9772848667 
7. चौहटन एवं बाड़मेर हेतु श्री बाबू दान देवळ 09799022082
8. अजमेर व् व्यावर हेतु भवानी प्रताप सा आशिया 9929603789
9. पाली जिले हेतु महिपाल सिंह आढ़ा 9414521002
10. जयपुर हेतु गौरव सा सूरत पूरा
9828860987
11. जैसलमेर हेतु  रणजीत सिंह सांगड 9828823721

12. राजसमन्द हेतु नरेंदर सिंह मन्दार हाल नाथुदुवारा 8107901999
13 . गुजरात बनास कांठा हेतु जे डी गढवी साब 9426704475
14. बैंगलोर हेतु श्री जब्बर सिंह सा
+919379446956
15. डूंगरपुर हेतु देवेंद्र सिंह मेरोप 9928535403
16 प्रवीण दान रोहड़िया दक्षिणी गुजरात हेतु 9426900505
17 धर्मेंद्र सा सौदा बांसवाड़ा क्षेत्र हेतु
       9983949922
   इन सभी समाज बन्धुओ को आप व्यक्तिगत डोक्युमेंट दे सकते है ।
🚩.......जय जोगमाया री सा.......🚩जय सगत लूँग माँ

चारण कविओ की थोडी जाणकारी.

⚔ *चारण* *कवियों* *की* *कडवी सच्चाई, स्पस्ट बयानी और* *निर्भीकता* *के* *कुछ* *उदहारण*⚔
      प्राचीन काल से ही चारणों की बात को सत्य समझा जाता था ,रामायण में लंका दहन के पश्चात  श्री हनुमान जी को सीताजी की चिंता हुई तब का उल्लेख हे की चारणो के वचन पर ही हनुमान जी को संतोष हुआ की सीताजी सुरक्षित हे ! मध्यकाल में जब राजपूताने में छोटे - छोटे राज्य परस्पर विस्तार हेतु लड़ते रहते थे ! राजा की सत्ता  सर्वोच्च थी उनके आदेश के विरुद्ध कंही भी सुरक्षा संभव नहीं थी ! तब भी चारणो ने अपनी निर्भीक होकर सत्य बोलने की परम्परा को निभाया हे तथा राजाओ व ठाकुरों को उनके कर्त्तव्य पथ से विचलित होने पर प्रताड़ना की हे ! इसके हजारों उदहारण हे -----
*1*  - अकबर की सेना का नेतृत्व कर जयपुर नरेश मान सिंह ने महाराणा पर चढाई कर दी जब उदैपुर में अपने घोड़ो पर सवार होकर मान सिंह पिछोला झील पर पहुचे तब गर्वोक्ति में घोड़ो से कहा की अब संतुष्ट होकर पानी पियो क्यों की यहाँ जोधपुर के मालिक के अलावा  और किसी ने घोड़ो को पानी नहीं पिलाया हे इस पर जयपुर के ही कविराजा जो उस समय वहीं पर थे ने मान सिंह को खरी खरी सुनाते हुए निम्न दोहा कहा -
 
*मान* *मन* *अंजसो* *मती,* *अकबर* *बल* *आयाँह* *|*
*वो* *जोधो* *राठोड* *तो,* *(निज)* *भुजा* *पांण* *पायाह* *||*
        मान सिंह कविराजा की बात पर अत्यन्त कुपित हुए और कविराजा को वंहा से हटा दिया साथ ही पिछोला झील से ही एक फरमान जारी कर तत्कालीन जयपुर रियासत की समस्त चारणों की जागीरें जब्त करली ,जो सात वर्ष तक जब्त रही ! उसके बाद पुन: धरना देकर बहाल करवाया !
*2*  - राव चूँडा का बचपन बहुत कठिनाइयों में बीता और उन्हें अपना बचपन कलाऊ गाँव में चारणों के यंहा बिताना पड़ा ! कालांतर में उनकी शादी मंडोर के राजा इन्दा जाती के राजपूत में हो गयी और उन्हें मण्डोर दहेज़ में मिला !
    राजा बनने के बाद राव चूंडा अपने बचपन के आश्रयदाता चारणों को भूल गया और अपने राज वैभव में मस्त हो गया तब एक दिन कवी ने उसे खरी खरी सुनाते हुए ये दोहा कहा --
*चूंण्डा* *आवे* *चीत,* *काचर* *कलाऊ* *तणा* |
*भड़* *बैठो* *भयभीत,* *मंडोवर* *रे* *मालियां* ||
    किसी भी शासक को इतनी नग्न एवं कटु सत्य बात सीधी कह देना बहुत बहादुरी का कार्य था !
*3*  - महाराणा भीम सिंह मेवाड़ की पुत्री की शादी पर जब बहुत बवाल हो गया और मेवाड़ को संकटों का सामना करने की समस्या पैदा हो गई तब उन्होंने तात्कालीक संकट को दूर करने के लिए अपनी पुत्री को मार डालना ही उचित समझा तब चारण कवी ने उन्हें इन शब्दों से फटकारा --
*भीमा* *तू* *भाटो* *मोटा* *मंगरा* *मातलो*
   क्यों की कोई पत्थर (भाटो) दिल ईन्सान ही ऐसा कृत्य कर सकता हे ! तो एक राजा को ऐसी फटकार कोई चारण कवी ही लगा सकता हे ! जिसे जिंदगी से भी ज्यादा सच्चाई पसंद हो ! जंहा कही भी राजा अपने कर्तव्यपथ से विचलित हुआ या जूठी शान दिखाई, तत्काल कविराज ने उसकी आलोचना या प्रताडना करने में कंही कसर नहीं रखी !
*4*  - जोधपुर के इतिहास प्रसिद्ध महाराजा अजीतसिंह की हत्या उनके ही पुत्र बखतसिंह द्वारा की गई , इनकी भर्त्सना तत्कालीन चारण कवियों ने खूब की हे इस अमानवीय कृत्य के लिए  बखतसिंह को जीवन में कई बार चारण कवि [दलपत बारठ] की फटकार सुननी व सहनी पड़ी ---
*बखता* *बखत* *बाहिरा,* *क्यूं* *मारयो* *अजमाल* |
*हिंदवाणी* *रो* *सेवरो,* *तुरकाणी* *रो* *शाल* |1|
*प्रथम* *तात* *मारियौ,* *मात* *जीवति* *जलाई* |
*असी* *चार* *आदमी,* *हत्या* *ज्यौ* *री* *पण* *पाई* |2|
*कर* *गाठो* *ईकलास,* *वेग* *जय* *सिंग* *बुलायो* |
*मेटी* *धरम* *मरजाद,* *भरम* *गांठ* *रो* *गमायौ* |3|
*कवि* *अणाहुंत* *कैवा* *करे,* *धरा* *उदक* *लेवणधरी* |
*बखतसी* *जलम* *पायो* *पछे,* *किसी* *बात* *आछी* *करी* |4|
*5*  - एक बार जब जोधपुर व जयपुर के महाराजा पुष्कर पर मिले सभी सभासदों के साथ सभा जुड़ी हुई थी ! तब मान सिंह जयपुर ने जोधपुर कविराजा करणी दान जी कवीया से कहा की कविराज सा हम दोनों में से श्रेस्ठ कोन हे तब निर्भीक व सत्यवादी कविराज ने कहा --
*ईत* *जेपुर* *उत*  *जोधपुर,* *दोनों* *ही* *थाप* *उथाप*|
*कुरम* *मारयो* *दीकरो*, *कमधज* *मारयो* *बाप* ||
   जयपुर कच्छवाहा को कुरम व राठोड़ों को कमधज कहा जाता हे
*6*  - जोधपुर के गौरवशाली इतिहास में सबसे ज्यादा चमकने वाला नक्षत्र हे तो वह हे दुर्गादास राठोड  जिन्होंने अपने जीवन में त्याग व स्वामी भक्ति को नई ऊचाईयाँ दी किन्तु जब महाराजा अजीतसिंह ने उन्हें राज्य से निर्वासित कर दिया तब चारण कवी इस अन्याय को सहन नहीं कर सके और उन्हें सीधी फटकार लगाते हुए जालोर जिले के केर निवासी भभूत दान जी ने अजीत सिंह को जबरदस्त फटकारा क्यों की अजीत सिंह ने अपनी राजकुंवरी इन्द्र्कुंवर का डौला दिल्ली भिजवाया ताकि दिल्ली के बादशाह खुश हो सके कवी ने इस पर न केवल शब्द प्रहार किये बल्कि मारवाड़ छोड़ सूंधा के पर्वतो में जाकर सन्यासी हो गए --
*रौवे रजपूती डब डब नयणा देखले | मन री* *मजबूती अख विसरियो तू अजा* |1|
*कालच री कुल में कमंद राची किम या रीत* | *दिल्ली डोलो भेजने अबखी करी अजीत* |2|
*मरुधर रो मुंडो कालो किम किधो कंवर* |
*असी घाव ऊंडो अबखो मन लागे अजा* |3|
*रण रा रंग राता खाता साहा रे सरण | नित जोडया* *नाता अवसल नाह रेसी अजा* |4|
*ईन्दर कवंरी ने हाय भेजी हूसैन संग* | *मेहणी मरूधर ने ईतीहासादीधी अजा* |5|
*7*  - महाराजा अजीत सिंह द्वारा दुर्गादास के निर्वासन का समाचार जब मृत्यु सैय्या पर पडे समरथदान ने सुना तो बीमार कवी ने कर्तव्य पथ का पालन करते हुए निम्न दोहे अजीतसिंह को कहे --
*रखवाली कर राजरी पाळी अणहद प्रीत*|
*दुरगा देसां काढने अबखी करी अजीत*|1|
*समौ तो पलटण सील हे राज बदल जुग रीत*|
*देसी मेहणी देसडा आगमतनै अजीत*|2|
*8*  - जोधपुर कविराज बांकिदास आशिया तो स्पस्ट व् कटु सत्य कहने में जरा भी हिचकते नहीं थे ! उन्होंने महाराजा मानसिंह को कई बार खरी खरी सुनाई और कई बार राजा का कोपभाजन भी हुए मगर सत्य से विचलित नहीं हुए बांकिदास का बचपन रायपुर में बिता था तथा रायपुर ठाकुर ने ही उन्हें जोधपुर तक पंहूचाया था बाद में मारवाड़ के कविराजा बने ! एक बार रायपुर ठाकुर जोधपुर किले में दरबार में पंहुचे तो बांकिदास जी खड़े होकर उनका स्वागत करने लगे ,यह बात महाराजा को नागवार गुजरी उन्होंने बांकिदास से कहा आप मारवाड़ के कविराजा हे ! यह एक साधारण ठाकुर हे इनके सामने खड़ा होना मेरे बेठे हुए यह राजगद्दी की तोहीन हे ! तब बांकिदास जी ने निर्भीकता से यह दोहा कहा --
*माणी ग्रीखम मांय पोख घणां द्रुम पाळियो* |
*जीण रो गुण किम जय , अज घण बुंठा ही अजा* ||
*9*  - एक बार जोधपुर नरेश बखत सिंह जी अपने घोड़े को पानी पिला रहे थे साथ ही थपकी देकर बाप बाप कहकर उसे सहला रहे थे तब कविराज बांकिदास जी ने कहा --
*बापों मत कह बगतसी, कांपत हे कैकाण* |
*एकर बापों फिर कहयो, तो तुरंग तजेला प्राण* ||
पितृहन्ता बखत सिंह के लिए इससे ज्यादा चोट करने वाले शब्द और क्या हो सकते हे !
*10*  - मेवाड़ के महाराणा को अंग्रेजो ने " सितारे हिन्द " की ऊपाधी से नवाजा था इसके सम्मान में दरबार सजाय गया तथा सभी अमीर उमराव तथा अंग्रेजो के ओफिसर मौजूद थे और सभी गुणगान कर रहे थे मगर कविराजा चुप थे ! इस पर महाराणा ने कविराजा से कहा ऐसे मोके पर आप चुप क्यों हे कुछ तो फरमाइये ,कविराज ने कहा --
*आगे आगे बाजता हिंदवां हद रा सूर* |
*अब देखो मेवाड़ पति तारा विया हजुर*||
*11*  -महाराणा फ़तेह सिंह जी का दिल्ली दरबार में जाने हेतु प्रस्थान तथा बारठ जी के " *चेतावनी रा चूंगट्या* " लिखकर भेजना तथा फ़तेह सिंह का रेवाड़ी से लौट आना आधुनिक काल की जग विख्यात घटना हे ! इस जाति की निर्भीकता राजाओ के सामने ही नहीं वरन किसी भी राजसत्ता को उन्होंने नही बख्सा, जब कुंवर प्रताप  सिंह बारठ आसानाडा रेलवे स्टेशन जोधपुर पर गिरफ्तार कर लिए गऐ और अंग्रेज अधिकारी चार्ल्स क्वीक लेंड उन्हें भय से व मार से नही डिगा सका तो प्रलोभनों से डीगाने की सोची ,प्रताप सिंह टस से मस नहीं हुए तो उन्हें भावनात्मक चोट करनी चाही और कहा तेरी माता तेरे लिए रो रही हे उसी वक्त उस चारण युवक के मुह से जो शब्द निकले वो इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षरों मे लिखे गए हे ! प्रताप सिंह ने निर्भीकता से कहा " *मेरी माँ रोती हे तो उसे रोने दो , मैं अपनी मां को हंसाने के लिए हजारो माताओ को नहीं रुला सकता* " और अंग्रेज ऑफिसर को कहा की बारठ से बात करने की तुजमे तमीज  नहीं हे तो यंहा से अपना मुह काला कर जाओ !
*12*  - राजा महाराजाओं के आपसी व्यवहार में जब किसी बात को सत्य की कसौटी पर कसना होता था तब कविराजा की साख उसमे डाली जाती थी ! मालदेव व भटियानी जी का प्रशंग इसका उदाहरण हे की महाराणी भटियानी ने स्पष्ट कह दिया था की में महाराजा का विश्वास नहीं करती कविराजा आप सही बात फरमावे , तब स्पष्टवादी कविराज आशानन्द जी चारण ने साफ कह दिया ---
*मान रखे तो पीव तज , पीव रखे तज मान* |
*दो दो गयंदन बंधसी , एक ही कमुठांण* ||
*13*  - जब राजस्थान मे अंग्रेज सत्ता के अधीन सभी राजा , महाराजा आ चुके थे तब उनके पास कोई अधिक कार्य करने को नहीं रहा तब ठाकुरों ने व सामन्तों ने अय्याशी करनी शुरू कर दी व प्रजा जनो को कष्ट देना शुरू किया तब साधारण चारण कवियों ने ऊन्हे फटकार लगाते हुए अनेक दोहे कहे जो आज जन सामान्य मे प्रचलित हें --
*रुळीयोडा रूळ रल रहया , मद चकिया माचंत* |
*धणियांणी  थारी  धरा  नुगरा  किम नाचंत* |1|
*ठाकर बाजो ठाकरां अवरां रा आधार* |
*कागमाळा रा कंवरडा मरीयोडा मत मार* |2|
*नित दारू नाडाह उपमा पायने उमगै* |
*जुलमी सै जाडाह गारत होसी गुमानियां* |3|
*लोई पीवो मत लाडलां ओ नह वाली वाट* |
*इक दिन पाणी उतरसी घर घर घाटो घाट* |4|
 भूल हेतू क्षमा और सुधार हेतु सुझाव आमन्त्रित 
*गणपत सिह चारण मुण्डकोशिया --9950408090*

निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर : रचना :- पींगळशीभाई पाताभाई नरेला

निर्मान  रेहना  श्रेष्ठ  नर.

रचयिता : राजकवि पिंगळशीभाई  पाताभाई नरेला. भावनगर

                             दोहो

सोई  सत्य  सदज्ञान  हे ,  धर्म  दानमें  ध्यान ,

मान   जूठ  मनमें   नही,  सबका  प्रान समान.

                छंद   हरिगीत

सब प्रान ऐक समान जानत,  धर्म में द्रढ ध्यान हे ,

शुभ कर्ममें चित संत संगती, जूठ कबु न जीभान हे.

विद्याय  परगुन  गान वर्नत , कुलमणी। निष्काम हे,

निर्मान   रेहना  श्रेष्ठ  नर  सद्ज्ञान  उनका  नाम  हे ...........1

यह जकत  मिथ्या  हे उपाधि , सत्य कीर्ति सर्वदा,

वेहवारमें  हे अनंत व्याधि  अधिक  तनमें  आपदा,

सुखरूप ईश्वर  भजन साधन मन  ठरन को ठाम हे,

निर्मान  रेहना  श्रेष्ठ  नर   सदज्ञान  उनका  नाम  हे............2

अपना नही ऐ माल धन ,  स्वपना की बाजी सर्व हे,

अपना  करी फिर मानता ओ तो गुप्त मनका गर्व हे,

याते  करो  सुकृत  कछु   वट  पंखी का विश्राम हे,

निर्मान  रेहना  श्रेष्ठ  नर  सदज्ञान  उनका  नाम  हे.............3

continue.

संकलन :  अनिरुद्ध  जे. नरेला.

राहडो सुरज रांण रमे : रचना :- जोगीदान गढवी

.           *|| राहडो सुरज रांण रमे ||*
.      *रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)*
.     *राग: मोर बनी थनगाट करे नो लय*

" रुडोय मजानो राहडो, रचीयो सुरज रांण
  जग जोतो र्यो जोगडा, भव भव तुंने भांण."

राहडो सुरज रांण रमे..जीय राहडो सुरज रांण रमे..(०२)
ऐनी आगळ पाछळ आरतीयुं..ऐने गीत नगारा ने घाव गमे..
जीय राहडो सुरज रांण रमे........…..(०२) .....................टेक.

किलकाट जुवो रजनी करती..धरती सरती फरती फरती
चोडी भाल मां पुनम चांदलीयो, ऐनी आंखडीये अमियुं झरती.(०२)
ओढ्युं ओढण टांकल तारलीये, तिंणा साद थी तम्मर तम्म तमे.
जोगीदांन तणां गुंण गांन सुंणी.. नीत राहडो सुरज रांण रमे. ||01||

जळेळाट नभे जळकाट करे, प्रित सांज परोढ नी थाट पडे..
ऐनी ठेक वचे घन घोर मचे, बणीं नीर घरा प्रसवेद पडे..(०२)
दीये ताल हेताळीय ताळीय थी, ऐने न्याळीय नारीय नेह नमे.
जोगीदांन तणां गुंण गांन सुंणी.. नीत राहडो सुरज रांण रमे. ||02||

दखणांयन ने उतरांयण मां, दीस देह हींडोळीय ताल दीये..
निरखे नवढा नीज नेंणलीये, प्रितमाळ अयो ज्यम पालखीये..(०२)
लई लाल हींगोळीय देह लजा.,सरमाई  उभो होय सांज समे..
जोगीदांन तणां गुंण गांन सुंणी.. नीत राहडो सुरज रांण रमे. ||03||

सनमांन सगत्तीय उर सदा, लीये रास ने सुरज जाय लच्यो
नीशी सांज परोढ ने रांदल सुं, मन मानीयुं हारेय नेह मच्यो..(०२)
रच्यो रास महा नभ मंडळ मां..नव ग्रह निहाळीन पाय नमे
जोगीदांन तणां गुंण गांन सुंणी.. नीत राहडो सुरज रांण रमे. ||04||

.    || प्रजा पालक भगवान भास्कर ने हजारो वंदन ||..

रटीएे सोनल नाम : रचना :- कविश्री प्रभुदान सुरु

*कविश्री प्रभूदान सुरु नी एेक रचना .*

रटीएे सोनल नाम , करएे उजवल काम .....रटी

जनमो जनमनी पूंजी अमारी , सोनल बीज सुखधाम ,
बार राशीमा उत्तम अमने , पोष मास एेक नाम ,
रटीएे सोनल नाम , करएे उजवल काम.....

गाओ नित गुण श्रध्धा राखी , प्रात बपोर ने शाम ,
सोनल सोनल साद रुपाळो , गजवो गामे गाम ,
रटीएे सोनल नाम , करएे उजवल काम.....

सोनलने नित हरदम वहालुं , मढडा रुडु धाम ,
दर्शनथी दु:ख हळवा थाशे , सुधरे आतम राम ,
रटीएे सोनल नाम , करएे उजवल काम.....

चारणनो दिनमान सवायो , लेता सोनल नाम ,
हाम ठाम ने किरत साथे , देशे सोनल दाम ,
रटीएे सोनल नाम , करएे उजवल काम.....

रचना :-  कवि श्री प्रभूदानजी सुरु भावनगर

जागोने जदुरायजी : रचना :- पिंगळशीभाई पाताभाई नरेला.

रचयिता  : राजकवि  पिंगलशीभाई  पाताभाई  नरेला. भावनगर

                              रामकली

जागोने  जागोने  जदुरायजी ,  मोहन  जोवे  ते  मागो ,

दर्शन   आपो   दासने ,   त्रिकम  आळस  त्यागो....जागोने.....1

रविऐ  रथ   शाणगारीया-अळगु   थयु  छे  अंधारु ,

गोकुळ  सूंदर  गामडू ,  सहु ने  लागे  छे  सारू.......जागोने....2

गौ  लइ  लइ  गोवालिया   आंगणीयामां  आवे ,

मित्र   कहीने   मावजी ,   बहु  हेतेथी  बोलावे.......जागोने.....3

सरखे  सरखी  साहेलडी ,जाय   जमुनाना  पाणी,

महिडा  लइ   मैंयारीयु ,  तम  काजे  रोकाणी.........जागोने....4

जिवन   झटपट  जागीया , विनति  सुणी  वनमाली,

पिंगलसी  के  प्रभातमां ,   मूर्ति   जोई   मरमाली......जागोने....5

संकलन :  अनिरुद्ध  जे. नरेला.

ईसरा परमेसरा अवतरण

ईसरा परमेसरा अवतरण

    प्राचीन काल से गिरिनामा संन्यासी, नाथ योगी और अनेक श्रद्धालु हिंगलाजधाम की दुर्गम यात्रा करते आये हे ! इस पावन यात्रा को माई-स्पर्श करना कहते हे !
       एक बार गिरिनामा सन्यासियों की एक जमात माई-स्पर्श करने को मारवाड़ से सिंध प्रदेश की और बढ़ रही थी ! बाडमेर के निकट भाद्रेस ग्राम में जमात ने दोपहर का विश्राम लिया हारे-थके पदयात्री पेड़ो की छाया में सुस्ताने लगे ! गाव के प्रांगण में सामने ही सूरा चारण का घर था ! सूरा अपनी पोल में अनमना सा बेठा था ! जमात को देखते ही उसके मन में प्रसन्नता की लहर दोड़ गई सूरा ने जमात के महंत को भोजन प्रसादी के लिए आमंत्रित कर लिया ! तनिक अन्तराल के बाद वह जमात को बुलाने चला आया ! श्री महंत और साधुओ ने सूरा के घर भरपेट भोजन किया !
      महंत ज्वालागिरी को यह देख बडा आश्चर्य हुआ की एक ग्रामवासी ने पूरी जमात को इतने कम समय में मिष्टान बना कर केसे जिमा दिया ! भोजनोपरांत महंतजी ने सूरा से पूछा की भक्त तुमने भोजन प्रसादी इतने अल्प समय में केसे तयार कर ली ! सूरा चारण सरलवृति का एक सज्जन व्यक्ति था ! पहले तो वह बात को टालता रहा , किन्तु महंत जी का आग्रह देख उसने आप बीती सुना दी !
     शताब्दियों पूर्व गाव में सहकारिता की भावना से खेतो में सामूहिक श्रम कार्य चला करता था ! ग्रामवासी अवसर आने पर एकसाथ मिलकर काम करते ! जिसके खेत में श्रम कार्य चलता वह सबको मीठा भोजन बना कर खिलाता ! उस दिन सूरा ने अपने बीड का घास कटाने को ग्राम वासियों के लिए पकवान तेयार किया था , किन्तु उसका भतीजा ग्राम वासियों को अपने खेत में ले गया ! सूरा की पोल में कडाव भरा सीरा पड़ा ही रह गया ! सूरा के कोई संतान नहीं थी ! वह अपने भतीजे से कोई विवाद खड़ा करना नहीं चाहता था , अतः मन मसोज कर रह गया ! संयोगवश उसी समय गाव में जमात आ गयी और वह सीरा सूरा ने जमात को जीमा दिया !
         जब श्री महंत को इस घटना का पता लगा तो सूरा के भतीजे शिवराज को बुलाया ,सन्यासी के नाते उसे अपने पास बैठाकर स्नेह और सद्भाव का उपदेश दिया ! उपदेश सुनना तो दूर रहा , वह अविवेकी अकारण ही आपे से बाहर हो गया और क्रोधवस यह कह बेठा कि आप मोटे महात्मा हो , काकाजी को बेटा देदो !
    महंत मुस्कराए और बोले  " माई ने चाहा तो ऐसा ही होगा " भगवत्ती की अपार लीला हे ! एक वर्ष के अन्दर ही सूरा के घर ईसर आ गया ! घर में आनंद छा गया ! इस घटना को लेकर लोक प्रचलन में एक दोहा प्रसिद्ध हे !

    कापडियो हिंगलाज रो ,
                      हिंवाले गलियोह !
    सूरा   बारठ   रे    घरे,
                      ईसर अवतरीयोह !

         माई-स्पर्श कर महंत ज्वालागिरी ने एक शुभ संकल्प के साथ अपना शरीर त्याग दिया ! चारण समाज में शताब्दियों से यह मान्यता चली आ रही हे की ईसरदासजी पूर्व जन्म के महात्मा थे जो दया विचारकर सूरा बारठ के घर अवतरित हुए !
      नाभादास की भक्तमाल में चवदह चारण भक्तो का उल्लेख मिलता हे जिनमे भक्त कवी ईसरदास का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया गया हे !   ------- जय ईसरा परमेसरा

        
  गणपत सिंह चारण(चांचडा), मुण्डकोशिया--9950408090

રવિવાર, 15 જાન્યુઆરી, 2017

ईसरा परमेसरा अवतरण

ईसरा परमेसरा अवतरण

    प्राचीन काल से गिरिनामा संन्यासी, नाथ योगी और अनेक श्रद्धालु हिंगलाजधाम की दुर्गम यात्रा करते आये हे ! इस पावन यात्रा को माई-स्पर्श करना कहते हे !
       एक बार गिरिनामा सन्यासियों की एक जमात माई-स्पर्श करने को मारवाड़ से सिंध प्रदेश की और बढ़ रही थी ! बाडमेर के निकट भाद्रेस ग्राम में जमात ने दोपहर का विश्राम लिया हारे-थके पदयात्री पेड़ो की छाया में सुस्ताने लगे ! गाव के प्रांगण में सामने ही सूरा चारण का घर था ! सूरा अपनी पोल में अनमना सा बेठा था ! जमात को देखते ही उसके मन में प्रसन्नता की लहर दोड़ गई सूरा ने जमात के महंत को भोजन प्रसादी के लिए आमंत्रित कर लिया ! तनिक अन्तराल के बाद वह जमात को बुलाने चला आया ! श्री महंत और साधुओ ने सूरा के घर भरपेट भोजन किया !
      महंत ज्वालागिरी को यह देख बडा आश्चर्य हुआ की एक ग्रामवासी ने पूरी जमात को इतने कम समय में मिष्टान बना कर केसे जिमा दिया ! भोजनोपरांत महंतजी ने सूरा से पूछा की भक्त तुमने भोजन प्रसादी इतने अल्प समय में केसे तयार कर ली ! सूरा चारण सरलवृति का एक सज्जन व्यक्ति था ! पहले तो वह बात को टालता रहा , किन्तु महंत जी का आग्रह देख उसने आप बीती सुना दी !
     शताब्दियों पूर्व गाव में सहकारिता की भावना से खेतो में सामूहिक श्रम कार्य चला करता था ! ग्रामवासी अवसर आने पर एकसाथ मिलकर काम करते ! जिसके खेत में श्रम कार्य चलता वह सबको मीठा भोजन बना कर खिलाता ! उस दिन सूरा ने अपने बीड का घास कटाने को ग्राम वासियों के लिए पकवान तेयार किया था , किन्तु उसका भतीजा ग्राम वासियों को अपने खेत में ले गया ! सूरा की पोल में कडाव भरा सीरा पड़ा ही रह गया ! सूरा के कोई संतान नहीं थी ! वह अपने भतीजे से कोई विवाद खड़ा करना नहीं चाहता था , अतः मन मसोज कर रह गया ! संयोगवश उसी समय गाव में जमात आ गयी और वह सीरा सूरा ने जमात को जीमा दिया !
         जब श्री महंत को इस घटना का पता लगा तो सूरा के भतीजे शिवराज को बुलाया ,सन्यासी के नाते उसे अपने पास बैठाकर स्नेह और सद्भाव का उपदेश दिया ! उपदेश सुनना तो दूर रहा , वह अविवेकी अकारण ही आपे से बाहर हो गया और क्रोधवस यह कह बेठा कि आप मोटे महात्मा हो , काकाजी को बेटा देदो !
    महंत मुस्कराए और बोले  " माई ने चाहा तो ऐसा ही होगा " भगवत्ती की अपार लीला हे ! एक वर्ष के अन्दर ही सूरा के घर ईसर आ गया ! घर में आनंद छा गया ! इस घटना को लेकर लोक प्रचलन में एक दोहा प्रसिद्ध हे !

    कापडियो हिंगलाज रो ,
                      हिंवाले गलियोह !
    सूरा   बारठ   रे    घरे,
                      ईसर अवतरीयोह !

         माई-स्पर्श कर महंत ज्वालागिरी ने एक शुभ संकल्प के साथ अपना शरीर त्याग दिया ! चारण समाज में शताब्दियों से यह मान्यता चली आ रही हे की ईसरदासजी पूर्व जन्म के महात्मा थे जो दया विचारकर सूरा बारठ के घर अवतरित हुए !
      नाभादास की भक्तमाल में चवदह चारण भक्तो का उल्लेख मिलता हे जिनमे भक्त कवी ईसरदास का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया गया हे !   ------- जय ईसरा परमेसरा

        
  गणपत सिंह चारण(चांचडा), मुण्डकोशिया--9950408090

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