ચારણત્વ

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શુક્રવાર, 16 ડિસેમ્બર, 2016

नशो नाशनू मूळ : रचना :- दिलजीतभाई बाटी

*नशो नाशनू मूळ*

*दारुना  दोष* *ना*  *दूहा*

दशकोष दूर रहे स्नेही अने सगा,
आवा दारुमां भर्या दगा माटे मेल्य मदिरा मानवी,....1

चण वेची छोरु तणी मेल्या गोठीन गाम,
हवे तो कर हराम मनथी मदिरा मानवी,......2

पी'ने परवश बनतो लेतो लथडिया,
पछी' तारा वेणेय विफरिया माटे मेल्य मदिरा मानवी,....3

पावळू पडे ज्यां पेटमां तरत बाधवा तैयार,
तारो' वडो तूटशे वहेवार माटे मेल्यॅने मदिरा मानवी,......4

खानदानी खूटी जाशे खूटी जाशे खमिर,
तारु हणी लेशे हीर माटे मेल्यने मदिरा मानवी,.....5

मोंघा मूलां मानवी दारुथी रेजो दूर,
एमा' जाणवी हाण्य जरुर माटे मेल्य मदिरा मानवी,....6

          *छंद*

दारु ऐ वाळ्यो दाट जबरो खूमारी खोटी ठरी,
मरद माटी पणानी जेणे किम्मत कोडीनी करी,
नबळा नमाला गणी ओल्या हलका हतडावशे,
मदिरि मूकी दे मानवी मदिरा कमोते मारशे,......1

दारु पिवे एने दूःख जाजू, सूख सपने ना मळे,
वहेवार तूटे थाय वातू,भूंडा भेगा जइ भळे,
फफडे छोरुडां फिकर जाजी, स्नेह विण छटकावशे,
मदिरा मूकी दे मानवी मदिरा कमोते मारशे,......2

चण छोरुडा तणी वेचीने वेची वाडियूं,
घर संपत धन जाता करी, दूनियामां करता दाडियूं,
गाम गोठी गमतूं मेली रानमां रखडावशे,
मदिरा मेकीदे मानवी मदिरा कमोते मारशे,......3

दारु पीवाथी दुर रेजो, हाण्य दारुमां घणी,
अंगत पण अळगा रहे, भायू जूवे नहीं ते भणी,
बदनामी जगमां मळे जाजी, अंतरने अकळावशे,
मदिरा मूकीदे मानवी मदिरा कमोते मारशे,.....4

पोता ने परिया तणूं गरथय गांठेथी जशे,
जतन करीने जाळव्यूं ई पाणी ना पंथे थशे,
आबरु विनाना आदमी तने शिख दई समजावशे,
मदिरा मूकीदे मानवी मदिरा कमोते मारशे,.....5

जीगर करीने जूडी बीडी कोय उधारे आपे नहीं,
तातूं होई त्यांज सूधी, टाढीने तापे नहीं,
होय त्यां सूधी बधा हारे, पछी' खालीमां खपावशे,
मदिरा मूकीदे मानवी मदिरा कमोते मारशे,.....6

दारु अफीण गांजो तमाकू,बीडी गूटका बाळजो,
व्यसन नथी कदी कोय सारु जरुर ई तमे जाणजो,
सूखचेन संपत हरी लइने पछी पा'नारा पपडावशे,
मदिरा मूकीदे मानवी मदिरा कमोते मारशे,......7

नशो खरो हरीनामनो आठू पोर उतरे नहीं,
*दिलजीत* समजो दिलथी कवियो ए वातू जे कही,
सतपंथना एवा पथीकने सहू सवारे संभारशे,
मदिरा मूकीदे मानवी मदिरा कमोते मारशे,

नशो नाशनू मूळ छे दारुना दोष अंगे व्यसन मूकित माटे खास लखायेल काव्य

दिलजीत बाटी ढसा जं.

*मो....99252 63039*

मां मोगल चरज : रचना :- दिलजीतभाई गढवी

🌹 *जय मां मोगल* 🌹�
            "चरज"
राग..तूम्हे देखती हू तो ऐसा.

वडी विश्व व्यापी आई मां अमाणी,
विध विध रुपे मां वरताणी,
ओखाधर वाळी एज अवतारी
मोगल रुपे मां मच्छराळी,
वडी विश्व व्यापी .....टेक

नवेखंड नजरु तमारी नेजाळी,
वेगे करो वारु  वडहथ वाळी,
संकट हरणी सदा सूख कारी,
बळवंत बेली रेजो बिरदाळी,
वडी विश्व व्यापी......1

नावडी अमाणी दरिये नोधारी
आफत आवी आई अणधारी
करुणा करो आवी हेते कृपाळी,
विघन विडारण विह भूजाळी,
वडी विश्व व्यापी.......2

रथडों मेलीने रण यूधमां तूं आवी,
डग्या दिग्पाळ धींगी धराने धृजावी,
सेना मृगलानी एक क्षणमां खपावी,
भेळियानी भेट वाळी रमे रगताळी,
वडी विश्व व्यापी.....3

सूखडां दियो दूःख हरी ने दयाळी,
आई मां अमाणी वडहथ वाळी,
समरण मां नू सदा सूखकारी
हानी हरी हैये दयो हरियाळी
वडी विश्व व्यापी......4

शिव ब्रह्मा हरी नारद शारद उचारे,
अष्टसिधी नवेनिधी आरती उतारे,
समंदर साते मांना पगडा पखाळे,
उदो उदो *दिलजीत* दिलथी पूकारे,
वडी विश्व व्यापी.....5

आई मां मोगल वंदना

दिलजीत बाटी ढसाजं.

*मो..99252 63039*

व्यसन : प्रसतूति :- कवि श्री चकमक, जीलुभाई सिल्गा

व्यसन...!

व्यसन ऐटले...

व्य : आथिॅक अने मानसिक
        शकितनो व्यय.
स : सत्यनाश.
न : नरकनो मागॅ.

आम व्यसननी व्याख्या खुद कहे छे के साचे ज व्यसनो 'सायलेन्ट किलर ' छे.
आपणे जाणीऐ छीऐ के व्यसनो सात प्रकारना होय छे. तेमांथी तमाकु, दारुं, ड्रग्स अने मांसाहार सवोॅपरी छे.
गांघीजीऐ पण पोताना रचनात्मक कायॅक्रममां दारुबंघीने महत्वपूणॅ स्थान आप्युं हतुं.
दारुना सेवनथी मनुष्यनुं शरीर चेतनाशून्य बनी जाय छे. तेनी निणॅयशकित, बुद्घी, ईच्छाशकित, विवेकबुद्घी ओछी थई जाय छे पण साथे साथे नीति, प्रेम, करुणा जेवी भावनाओनो हास थाय छे.

नसीला पदाथोॅ आपणा शरीरमां मित्रना रुपमां प्रवेशे छे अने आपणा शरीरमां प्रवेशी दुश्मन बनी शरीरनो दाट वाळे छे.
कौटुंबिक असरो

* व्यसनी व्यकितनुं कुटुंब वेरविखेर थई जाय छे.
* व्यसनी व्यकितना संतानोनुं भविष्य जोखमाय छे अने तेना धरमां प्रेम, भावनानुं तंदुरस्त वातावरण जोवा मळतुं नथी.
* केटलीकवार लग्नविच्छेद अने पत्नीनी आत्महत्या जेवा किस्साओ पण बने छे.
* व्यसनी व्यकति पोताना अने कुटुंबीजनोना सवॅनाशने नोतरे छे.
* जुगारनुं व्यसन जुगारीने बघुं दाव पर लगाववा प्रेरे छे. अंते तो तेने पस्तावुं पडे छे.
दा. त. युघिष्ठिर जुगार माटे न ललचाया होत तो महाभारत न थयुं होत.
* कुटुंबनी संपति, मकान, दरदागीना बघुं ज व्यसन पाछळ वेडफाई जाय छे.

चारण समाज व्यसनमुकत सोनल बीज उजववा जई रहयो छे त्यारे सौ चारणो पोतानो सहयोग आपे ऐवी कवि चकमकनी नम्र विनंती.

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

चरज नेटवर्क

प्रिय मित्रो ,

चरज मेगेझीने उमळकाभेर आवकारवा बदल आप सौ नो आभार.

आ मेगेझीन चरज - प्रगतिशील चारण नेटवर्क अने चारण ईन्टरनेशनल ट्रेड ओर्गेनाईझेशन ( CITO ) ना सहियारा विचार अने सहयारी महेनतनुं परिणाम छे.

चरज मेगेझीन खरा अर्थमां चारण समाज नु्ं पोतानुं मेगेझीन बनी रहे अेवा प्रयत्नो अमे करी रह्या छीअे.
मेगेझीन नुं संपादन , संपादन टीम , लेखोनी पसंदगी , डीझाईन , ले - आउट , फोटोग्राफी , प्रिन्टिंग अने वितरण व्यवस्था जेवा अनेक पासाओ एेक उत्तम मेगेझीनथी क्यांय उतरता ना होय अेनी अमे विशेष काळजी राखी छे.

आ मेगेझीन समग्र चारण समाज नी समस्याने वाचा आपतुं , प्रगतिशील चारणो अने समाज ना प्रगतिशील कार्योने पोखतुं , चारण अस्मिता अने चारणी साहित्य ने नवा परिक्ष्यमां रजु करतुं , देश विदेशना चारणोने एेकबीजा साथे जोडतुं अने खरा अर्थमां चारण संवादने सार्थक करतु प्लेटफोर्म बनी रहेशे अेवी अमने आशा छे.

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*संपादक टीम :-*
:- रणजित गढवी  (कोर्पोरेट कोम्युनीकेटर)
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:- अशोकभाई (तंत्री , सौराष्ट्रक्रांती ,राजकोट)
:- करशनभाई गढवी (पत्रकार, कच्छ - मित्र,कच्छ)

*सह : संपादक :-*

:- वेजांध गढवी - कच्छ
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:- नीलमबेन गढवी - जामनगर
:- धरमेन्द्र गढवी - दहेज,भरुच
:- विरल बारोट - मुंबई

*एडवाईझरी कमिटी :-*
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:- श्री विजयभाई गढवी - कच्छ
:- श्री पालुभाई गढवी - झरपरा , कच्छ
:- श्री गीरीशभाई मोड - जुनागढ
:- श्री देवीदानभाई गढवी - कच्छ
:- श्री महेरबानभाई गढवी - अमदावाद
:- श्री आशानंदभाई गढवी - झरपरा , कच्छ
:- श्री विक्रमभाई साउ - अमदावाद
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*ओफिस :-*
चरज मेगेझीन , जी -1 , समुद्र अेनेक्षी बिल्डींग ,
सीजी रोड , गिरीश कोल्ड्रींक चार रस्ता , नवरंगपुरा ,
अमदावाद - 380009.  Mo.+91 94284 12555

ગુરુવાર, 15 ડિસેમ્બર, 2016

हेमांगभाई सुरु ने कराटे विभागमां गोल्ड मेडल मळेल

आई श्री सोनल मा स्तूती काव्य : रचना :- दिलजीतभाई गढवी

*आई श्री सोनल माँ मढडा*

*स्तूती कवित*

मढडा निवासी तूम मात हो महान मेरी,
हेरी देखो मेरी ओर आप उपकारी है,

हमीर दूलारी हेते शरन तिंहारो ग्रह्यो,
आप से महान नाहीं ओर अवतारी है,

जगमें प्रसिध नाम सोनल संसार बिच,
आप ही हमारी एक सदा रखवारी है,

कहे *दिलजीत बाटी* यही कलिकालही में,
माँ सोनल को एक नाम सदा सूखकारी है,.......1

सदा देहू सूख हर दूःख हरी लेहू मैया,
करदे किनार मेरी नैया मझधार है,

कहां जाऊ किस्से कहू कौन सूने बात मेरी,
अवनी में आप मेरो एकही आधार है,

निराधार नाहिं हूं में मात हो तूम्हारे जैसी,
अंखत उगारो यामे कौन उपकार है,?

कहे *दिलजीत बाटी* सदा आई सोनबाई,
शकितवट चारण की सही शणगार है, ......2

कलियूग वारो आज हडूडे संसार दधी,
तामे तरबेकू जगदंबा ही जहांज है,

साद सूणी अविलंब आये अवतारी मात,
सदा काल सोनल हमारी शिरताज है,

कापे पाप दोष अरु मटी जावे रोग महा,
हटी जावे दूःख शोक शाता को समाज है,

कहे *दिलजीत बाटी* अंबा अवतार वारी,
रखी लिजे मात मेरी तेरे हाथ लाज है,

आई श्री सोनल मां वंदना

दिलजीत बाटी ढसा जं.

*मो...99252 63039

चारण कविश्री प्रविणभाई मधुडाना त्रण पुस्तकोनुं भायला खाते विमोचन

आई श्री हिरलमां आयोजीत 8मां समूह लग्न जाम खंभाळीया

મંગળવાર, 13 ડિસેમ્બર, 2016

चारण(गढवी) समाज सेवा ट्रस्ट द्वारा राजकोट मां योजाशे 25 समूह लग्न महोत्सव

आई नी अकळांमण : रचना :- जोगीदानभाई गढवी

सोनल बिजे नोंधणी शरु करवी जोईये के केटला ने व्यसन नई करवा नी प्रतिग्ना लेवडावी
साची सोनल बीज तोज उजवी गणाय जो तमे दारु नही पीवानी प्रतिग्या करो

.             *|| आई नी अकळांमण ||*
.                    *छंद : सारसी*
.      *रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)*

.................
दोढेक लीटर पीये दारु.चिकन मुरगां चावता.
मंडाय पाछा मंच माथे गीत सोनल गावता.
देवीय कोटी वरण देखो जुवो कई दिश जाय छे.
ज्वाळा लगे छे जोगडा मन आतमो अकळाय छे..||01||

सोनल तणां आदेश नी आ देश ने कीम्मत नथी.
एनां जण्यां नेय अहम छोडी हालवा हीम्मत नथी.
कहेवाय चारण एक धारण दरश क्यां देखाय छे.?
जळवा लगेछे जोगडा मन आतमो अकळाय छे..||02||

धन देखतां सौ ध्रोडता भल धरम नातो धुळमां.
सत धरम छंड्या पछी सोनल केम जनमे कुळ मां.?
आभे निरखती आई नुं पण मन घणुं मुंझाय छे.
जळवा लगे छे जोगडा मन आतमो अकळाय छे..||03||

ईरशा करी खुद आपणां जण पद पकड भूं पाड़ता
जनता वचाळे जायके दरीयाव दील जीम द्हाडता.
ई दोगला जण देख सोनल समसमे नीसहाय छे.
जळवा लगे छे जोगडा मन आतमो अकळाय छे..||04||

दीकरी लीये घण दायजे ने तोय दानव दोभता.
सरजुं भुल्यां संतान सारण सिनेमा जई शोभता.
अव तरण कारण आई ने को देह नव देखाय छे.
जळवा लगे छे जोगडा मन आतमो अकळाय छे..||05||

पण जो सेनल ने राजी करवी होय तो .....

उजळो घणों ईतिहास जेनो जुवो कां झांखो पड्यो.
दादो ईशर पण दान जोगी रगत आंसुं कां रड्यो.
चहु दीश चारण एक धारण रंग जो रेहलावशो.
सुरगे गयेली सोनबा ना रदय ने रीज्जावशो..||06||

खपीया घणां खुंखार जोद्धा भौम मां भळीया भड़ो.
ए वातडी वांचो विरो नीज आंन्त से नव आखडो.
पाडाय साड़ा तरण त्रोडी वरण ईक वद्धावशो.
सुरगे गयेली सोनबा ना रदय ने रिज्जावशो..||07||

अढळक जनोये एक थावा बहुं गायुं बापडे.
घर कान जोगीदान तो सनमांन साचुं सांपडे.
अभिमान कुड ईरशा तजी जो एक थई ने आवशो.
सुरगे गयेली सोनबा ना रदयने रिज्जावशो..||08||

जोगीदान गढवी (चडीया)कृत आई नी अकळांमण .
मो.नं. 989836 01 02
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

સોમવાર, 12 ડિસેમ્બર, 2016

जामनगर खाते चारण - गढवी समाज नां विद्यार्थिओ माटे आजथी स्पर्धात्मक परिक्षानां क्लासीसनो प्रारंभ

आई श्री सोनल मां दिव्य चेतना मंदिर प्रतिष्ठा महोत्सव , कणेरी

आई श्री सोनल मां दिव्य चेतना मंदिर प्रतिष्ठा महोत्सव , कणेरी

चारण समाज में अवतरित कुछ देवियों से सम्बधित जानकारी

🌺 *चारण* *समाज* *में* *अवतरित* *कुछ* *देवियों* *से* *सम्बधित* *सामान्य* *जानकारी*  🌺

*1*  - *आवड* जी ने वि.स. 808 में चेलक ग्राम में मामड जी चारण के घर जन्म लिया था !

*2* - *आवड* जी सात बहने और एक भाई था - आवड बाई , गुलाब बाई , हुलास बाई , रूपल बाई , साँच बाई , रंग बाई , लगु बाई ( *खोड़ियार* ) ,मेहरखा ( भाई ) !

*3* - *आवड* जी ने हाकड़ा नामक समुद्र का शोसण किया था !

*4* - *आवड* जी ने हूण सेना नायक तेमड़ा नामक राक्षस को मारा था जिसके कारण *तेमडेराय* कहलाई , महाराजा तणु को तनोट स्थान पर दर्शन देकर *तनोटराय* कहलाई , घंटियाल नामक राक्षस को मारकर *घंटियालराय* कहलाई ,भादरिया नामक भाटी के आग्रह पर दर्शन देने पधारी इसलिए *भादरियाराय* कहलाई ,काले डूंगर पर बिराजने से *कालेडूंगरराय* कहलाई ,पन्ना मुसलमान की रक्षा करके *पन्नोधरिराय* कहलाई ,एक असुर रूपेण भेंसे को मारकर माँ ने उसे देग नामक बर्तन में पकाया था इसलिए *देगराय* कहलाई ,आवड जी सहित सातों बहनों के नदी में नहाते वक्त यवन राजकुमार नुरन द्वारा कपड़ो को छुने के कारण माँ आवड नागण का रूप धारण कर घर लौटी थी इसलिए *नागणेची* कहलाई !

*5* - राजस्थान में सुगन चिड़ी को *आवड* माँ का रूप माना जाता हे !

*6*  - *आवड* जी माड प्रदेश (जेसलमेर) के भाटी शासको की आराध्य देवी थी !

*7*  - *आवड* जी इस पृथ्वी पर सशरीर 191 साल बिराजे थे !

*8*  - वि. स. 999 में *आवड* जी सहित सातों बहने तारंगशिला पर बैठकर पतंग की तरह सशरीर उडान भरी और पश्चिम में हिंगलाज धाम की और देखते - देखते अद्रश्य हो गई !

*9*  - *आवड* जी की सबसे छोटी बहन लगु बाई अपने भाई के शरीर से पैणा सर्प का जहर उतारने के लिए औषधि लेने गई तब माँ ने बड़े वेग से पुरे भू मंडल में ढूंढकर सौलह पहर यानि दो दिन में पुरे संसार का भ्रमण किया और वापस आते वक्त माँ को पैर में चोट लगने से खोड़ी (लंगड़ाकर) चलने लगी थी तब से माँ को  *खोड़ियार* नाम से पुकारने लगे !

*10*  - *आवड़* जी के माता का नाम मोहवृती मेहडू था !

*11*  - विजय राव चुडाला को *आवड़* जी ने चूड और खांडा बक्शीस  दिया और वरदान दिया था की जब तक तेरे हाथ में चूड और खांडा रहेगा तुम्हे कोई परास्त नहीं कर पायेगा !

*12*  - *करणी* जी महाराज का जन्म 21 माह गर्भ में रहने के बाद वि. स. 1444 आसोज सुद सातम शुक्रवार को सुआप गाँव में हुआ !

*13*  - *करणी* जी का ननिहाल आढा़ गाँव में था और नानाजी का नाम चकलू जी आढा़ था !

*14*  - *करणी* जी के पिताजी का नाम मेहोजी किनियां और माता का नाम देवल बाई आढा़ था !

*15*  - *करणी* जी  7 बहने -  लांला बाई, फुलां बाई, रिद्धी बाई, केशर बाई, गेंदा बाई, गुलाब बाई, सिद्धी बाई, और 2 भाई - सातल, सारंग थे ( करणी जी छटे थे ) !

*16*  - *करणी* जी 150 वर्ष 6 माह 2 दिन इस संसार में शसरीर बिराजे थे !

*17*  - वि.स. 1473 आषाढ सुद नवमी को *करणी* जी का विवाह साठीका गाँव के देपोजी के साथ हुआ उस समय *करणी* जी की उम्र 29 वर्ष थी !

*18* - वि.स. 1595 चेत्र सुद नवमी गुरुवार को बीकानेर और जैसलमेर की सीमा पर घडियाला परम धाम में *करणी* जी महाराज ने अपने शरीर पर जल डाल कर अग्नि स्नान करके परम ज्योत में विलीन हो गए !

*19* - आई *जानबाई* उधास की तेरहवी पीढ़ी में *सोनल* माँ का जन्म हुआ था !

*20* - *देवल* माँ सिंहढायच का जन्म वि.स.1444 माघ सूद चौदस को माडवा ग्राम में भलियाजी सिंहढायच के यंहा हुआ ,माता का नाम वीरू आढी था !

*21* - *देवल* माँ सिहंढायच के 7 पुत्रियाँ -बूट,बेचरा,बलाल,खेतु,बजरी,मानसरी,पातु और 3 पुत्र - देविदास,मेपा,खिंडा थे !

*22* - *देवल* माँ सिंहढायच के माता वीरू आढ़ी और *करणी* जी महाराज के माता देवल आढ़ी दोनों सगी बहने थी !

*23* - *देवल* माँ सिंहढायच 140 वर्ष 5 माह इस संसार में बिराजने के बाद वि.स.1585 आषाढ सूद चौदस को स्वधाम पधारे, आप करणी जी के समकालीन थे !

*24* - भगवती *चंदू*का जन्म माडवा गाँव में उदेजी सिंहढायच के घर अणदू बाई की कोख से हुआ आपका ससुराल दासोड़ी था !

*25* - भगवती *चंदू* ने ठाकुर सालम सिंह के खिलाप अखेसर तालाब की पाल पर जंवर किया था तो आपकी माता अणदू बाई ने गुडी के पोकरणो के अत्याचारों के खिलाप जंवर किया था !

*26* - माँ *राजबाई* का जन्म करणी जी के महाप्रयाण के ठीक 10 माह बाद वि.स.1595 चेत्र शुक्ल नवमी को सोरास्ट्र के चरावडा ग्राम में उदाजी चारण के घर हुआ ,आप आजीवन ब्रम्ह्चारिणी रही ,आपने 80 वर्ष की आयु प्राप्त की व वि.स.1676 को स्वधाम पधारे !

*27* - माँ *राजबाई* ने ही राजपूतो के लिए हमेशा -हमेशा के लिए नवरोजे के रिवाज को बंद करवाया था और पृथ्वीराज के साथ पूरी राजपूत कोम की लाज रखी थी !

*28* - माँ *राजबाई* का मंदिर जोधपुर- जालोर मार्ग पर गढवाडा में स्थित हे

*29* - *वांकल* माँ *आवड* जी के भुआजी थे जिन्हें चारण जाती में प्रथम शक्ति अवतार माना जाता हे !

*30* - *सोनल* माँ का जन्म दि.-8-1-1924 पोष सुदी बीज मंगलवार को हमीर जी के घर मठडा ग्राम में हुआ आपकी माता का नाम रणबाई था ,आप दी.-27-11-1974 कार्तिक सुदी तेरस को स्वधाम पधारे थे ,आपका समाधीस्थल कणेरी ,तहसील -केशोद, जिला -जुनागढ में हे !

*31* - माँ *लुंग* सगत का जन्म वि.स.1987 आषाढ सुदी बीज को वलदरा ग्राम में अजीत दान जी आशिया के यहाँ हुआ था, आपके माता का नाम मैत बाई था और आपका ननिहाल पातुम्बरी (स्वरूप गंज के पास ) में था और आपका ससुराल धनायका (जिला -राजसमन्द ) में था  !



👏🏾भूल हेतु क्षमा और सुधार हेतु सुझाव आमंत्रित हे👏🏾

  🙏 *गणपत सिंह चारण मुण्डकोशिया*🙏
   🌹मेहाई कृपा ग्रुप --9950408090🌹

मेहा सधू मुंझाय छे : रचना :- जोगीदानभाई गढवी (चडीया)

.            *|| मेहा सधू मुंझाय छे. ||*

चारण जगदंबा आई सोनबाई मां नो संदेश छे के चारण होय
ई दारु न पिये दारु तो दैत्य पीये..जेनी मती दैत्य होय
ई दारु पीये...तो प्रिय चारण बंधुओ शुं आपडी आई यो
दारु पी शके खरी ??आई करणी जी ने घणां समय थी
दारु ना रसीको ये माताजी ने दारु चडाववानुं सरुं करेल छे
जे परंपरा नेकारणे लोको दारुने प्रसाद गणी ने चारणो जेवी
देवताई जाती ने दारु ना रवाडे चडावी अधःपतन ना मार्गे
वाळ्या छे..अमुक लोको पोतानो दारु बंध न थाय ते माटे
ऐवो तर्क करे छे के माताजी दारु पिवतां हता..पण मित्रो
विचारो तो खरा के गुजरात मां आजे पण चारणो ना घरमां
दारु नुं नाम न लेवावुं जोईये तेवुं गुजरातनी तमाम चारण
बेनु दीकरीयुं  ईच्छे छे , तो करणीजी पण चोथी पेढीये
गुजरात ना दीकरी छे. श्री करणीं मा ना  पिता ना दादा
भीमाजी किनीया धांगध्रा ना खोड गाम थी राजस्थान गया
ते भीमाजी ना पुत्र नी पौत्री ऐटले के चोथी पेढीये आई करणी
जेवी महान जगदंबा नो जन्म थयो जे चारणो ना उत्थान माटे
जन्मी हती  पण आजे तेमना प्रसाद ने नामे चारणो दारु धरी ने
अधः पतन ने मार्गे जई रह्या छे..तो शुं आई ने आ गमतु हशे???
ना..मां ने ऐ नज गमे पण शुं थाय ..छोरु कसोरु थाय पण माता कुमाता केम बने ?? माटे ऐ मां मुंझाय छे...

.           || मेहा सधू मुंझाय छे ||
.                 छंद : सारसी
.     रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)

दारु पीवेनई देवियुं पण पापीया ओ पाय छे
दारु धरावे दैत्य त्यां देसांण पत दुभ्भाय छे
करणी मढे आ कुडी करणी ना थवानी थायछे
जाउं कीसे हुं जोगडा मेहा सधू मुंझाय छे || 01||

दीकरा उठी दारु धरे ई मा तणुं शुं मुल छे
पुत्तर नहि ई पाप पाक्या धीक्क वा मुख धुल छे
दाडो उठाड्यो दारुऐ ने खाज अणखज खाय छे
जाउं कीसे हुं जोगडा मेहा सधू मुंझाय छे || 02||

जे जोगणीं जम थी लडी केवि हशे करणीं कहो
ऐना जण्यां ना असुर थाशो रीत चारण मां रहो
पोते पिवा मदीराय पापी गीत जुठां गाय छे
जाउं कीसे हुं जोगडा मेहा सधू मुंझाय छे || 03||

मेहा सधू मुंझाय छे : रचना :- जोगीदानभाई गढवी (चडीया)

.            *|| मेहा सधू मुंझाय छे. ||*

चारण जगदंबा आई सोनबाई मां नो संदेश छे के चारण होय
ई दारु न पिये दारु तो दैत्य पीये..जेनी मती दैत्य होय
ई दारु पीये...तो प्रिय चारण बंधुओ शुं आपडी आई यो
दारु पी शके खरी ??आई करणी जी ने घणां समय थी
दारु ना रसीको ये माताजी ने दारु चडाववानुं सरुं करेल छे
जे परंपरा नेकारणे लोको दारुने प्रसाद गणी ने चारणो जेवी
देवताई जाती ने दारु ना रवाडे चडावी अधःपतन ना मार्गे
वाळ्या छे..अमुक लोको पोतानो दारु बंध न थाय ते माटे
ऐवो तर्क करे छे के माताजी दारु पिवतां हता..पण मित्रो
विचारो तो खरा के गुजरात मां आजे पण चारणो ना घरमां
दारु नुं नाम न लेवावुं जोईये तेवुं गुजरातनी तमाम चारण
बेनु दीकरीयुं  ईच्छे छे , तो करणीजी पण चोथी पेढीये
गुजरात ना दीकरी छे. श्री करणीं मा ना  पिता ना दादा
भीमाजी किनीया धांगध्रा ना खोड गाम थी राजस्थान गया
ते भीमाजी ना पुत्र नी पौत्री ऐटले के चोथी पेढीये आई करणी
जेवी महान जगदंबा नो जन्म थयो जे चारणो ना उत्थान माटे
जन्मी हती  पण आजे तेमना प्रसाद ने नामे चारणो दारु धरी ने
अधः पतन ने मार्गे जई रह्या छे..तो शुं आई ने आ गमतु हशे???
ना..मां ने ऐ नज गमे पण शुं थाय ..छोरु कसोरु थाय पण माता कुमाता केम बने ?? माटे ऐ मां मुंझाय छे...

.           || मेहा सधू मुंझाय छे ||
.                 छंद : सारसी
.     रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)

दारु पीवेनई देवियुं पण पापीया ओ पाय छे
दारु धरावे दैत्य त्यां देसांण पत दुभ्भाय छे
करणी मढे आ कुडी करणी ना थवानी थायछे
जाउं कीसे हुं जोगडा मेहा सधू मुंझाय छे || 01||

दीकरा उठी दारु धरे ई मा तणुं शुं मुल छे
पुत्तर नहि ई पाप पाक्या धीक्क वा मुख धुल छे
दाडो उठाड्यो दारुऐ ने खाज अणखज खाय छे
जाउं कीसे हुं जोगडा मेहा सधू मुंझाय छे || 02||

जे जोगणीं जम थी लडी केवि हशे करणीं कहो
ऐना जण्यां ना असुर थाशो रीत चारण मां रहो
पोते पिवा मदीराय पापी गीत जुठां गाय छे
जाउं कीसे हुं जोगडा मेहा सधू मुंझाय छे || 03||

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