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શનિવાર, 10 સપ્ટેમ્બર, 2016
जे कुळ झुल्ला जोगडा सांयो साचो संत : रचना :- जोगीदान गढवी (चडीया)
. *सांयाजी बापु झुला*
भाद्र पद नोम नी जन्मदीन नी शुभः कामना
*|| जे कुळ झुल्ला जोगडा, सांयो साचो संत ||*
राजस्थान नुं भोवाणा गाम के ज्यां वरहडा साखा ना चारणो नी जागीर अने काव्य कळा मां ऐटला उमदा के ऐमनी साखाज वरसदा ऐटले जेने मा सरस्वती नुं वर(वरदान) सदा (कायम) छे..ऐक केहवत पण प्रचलीत छे के भुज नो भणेलो (भुज पिंगळ साळा मां) अने भोवांणे जणेलो बेय बराबर..
ऐक वखत आलाजी वरहडा भुज पधार्या अने भुज महाराज तेमनी काव्य कला थी ऐटला अभीभुत थया के तेमने लाख पसाव करवा कह्युं पण आलाजी नी रेखा बदलांणी नही...पछी तेमने नवाजवा सोना ना आभुसणो थी सज्ज सोना नी झुल्ल वाळो हाथी नजराणां तरीके आप्यो ......
*झुल्ला कंचन झुल्लसे, मेंगळ आला मल्ल*
*जेह नवाज्यो जोगडा, भूज बडो भुज बल्ल*
आंम सोना नी झुल थी झुलतो हाथी नजरांणा मा प्राप्त कर्यो त्यारे ते वरहडा माटे भुज थी ऐक केहवत नी सरुवात थयेल के
कण करहडे ने विध्या वरहडे... तथा ते आलाजी ना वंशजो झुल्लीया उर्फ झुला तरीके ओळखाया जेमां ...आगळ जतां...कानमेर..रोझु..ईडर..चंदुर..मुंजपुर..समी..उघरोज..सुरपुरा..कुकराणा..कुवावा..लीलसा..ईत्यादी गामो मां हाल आलाजी नी गाथा ना ईतिहास समा विध्य मान छे...तेमां कुवावा मां महात्मा सांयाजी झुला (नाग दमण ना रचयता, जे नाग दमण आखुं पाठ करवा थी साप नुं झेर उतरी जाय तेवो सिद्ध ग्रंथ) के जेे ईडर नी कचेरी मां.....चालु वार्ता मां उभा रही ग्या अने हाथ मसळवा मांड्या...हाथ काळा थया...महाराजे पुछ्युं के सुं कर्युं कविराज ? तो सहजता थी कह्युं के ठाकर ना वाघा सळग्या ता तो ओलवतो हतो....
*ठार्या तें ठाकर तणां, वाघा सांया वीर*
*जे गढ ईडर जोगडा, थडक विरमदे थीर*
(ईडर महाराजा विरमदेव ना समकालीन सायाजी)
*ईडर गढ ने उतरी, साया माथे शंक*
*जेह विरम दे जोगडा, आडोय भाटां अंक*
विरमदेव ने भाटो नी वातुं ना भान रेतुं ..अने साया बापु माथे संका करी..अने वाघा ओलव्या के नई ऐ खातरी करवा छेक द्वारीका गया..
ईरमां तो सायां बापु ना हाथ काळा थ्याता पण द्वारीका खात्री कर्या बाद तो भाट नां मोढा काळा थई ग्या ता..
*आप समा थी उजळी, नव खंड माथे नात*
*जग साया कर जोगडा, विर साया नी वात*
*भेंती पेठी भाट ने* *खेल्या अवळा खेल*
तोय
*गुंणीयल करतो गेल, जो गढ ईडर जोगडा*
*सायो दुभव्यो शंक थी, (ई) ईडरा तणीं अबक्ख*
(माटे) *वहमी लागी वक्ख, जालणसी ने जोगडा*
*सळग्या वाघा स्यामना, वाले करीयल वार*
*जे सांया ने जोगडा, तनमन कानड तार*
*ठार्या तें ठाकर तणां, वाघा सांया वीर*
*जे गढ ईडर जोगडा, थडक विरमदे थीर*
*पंचाळी ना पुरीयां, वेगे दोडी न वीर*
*चारण ठारे चीर, झुल्लो सांयो जोगडा*
ऐवा चारण रत्न सांयाजी झुला नो आजे भादरवा वद नोम नो जन्मदीन होई मारी आप समस्त स्नेही जनो ने
नव दोहा थी नवमी नी शुभःकामना
💐💐💐💐💐
શુક્રવાર, 9 સપ્ટેમ્બર, 2016
ગુરુવાર, 8 સપ્ટેમ્બર, 2016
महामाया स्तोत्र : रचना:- जोगीदानभाई गढवी
.© *|| महामाया स्तोत्र ||*
. *रचना: जोगीदान गढवी (चडीया)*
. *छंद : भूजंग प्रयात*
.
तुंही हे जणेता प्रणेता प्ररब्धा, तुंही जीभ भाखे सरा बोळ शब्धा
तुंही तुं निभावे मया बाळ नाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||01||
तुंही विष्णु पुषा भगं विवस्वानं, तुंही मित्र पुर्जन वरुण़ अंशुमानं
तुंही अर्यमा ईन्द्र त्वस्ठाय धाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||02||
तुंही ब्रह्म रूपी भवां सिद्ध भाळी, तुंही सत्य कर्मा सगत्तीय साळी
तुंही द्वा दसां सुर्य नी तेज दाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||03||
तुंही मात तातम् भगीनीय भ्रातम् तुंही सर्व संबंध हो जूग्ग सातम्
तुंही हेत वाळी नको तोड्य नाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||04||
तुंही काल रुपां परे रात काळी, तुंही प्रोढ देती धरा ने उजाळी.
तुंही तुं बडी बोलती ध्रम्म बाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||05||
तुंही हेमतां रैवत्तां वास वंध्या, तुंही हर प्रहर हर समर सुब्ह संध्या
तुंही कामखा मात कल्यांण काता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||06||
तुंही मां दयाळी सदा रेम राखे, तुंही संकटो बाळ ना केम साखे
तुंही जाळवे ताळवे जीव जाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||07||
तुंही दर्श देती नवेरात न्याळी, तुंही निसरे कांबळी ओढ्य काळी
तुंही सांभळे सारणां गीत गाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||08||
तुंही राख चडीयाह ने चर्ण राजी, तुंही क्रोघ त्याजी जीतावेय बाजी
तुंही तुं वडी वंश नी मां विधाता ,महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||09||
तुंही चार वेदम पुराणम प्रमांणी, तुंही सांख्य मे शास्त्र मे तुं समाणी
तुंही चित्र गुप्तां खतावंत खाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||10||
तुंही मोगलम् आवडम् मात काली,तुंही हिंगळा रूप मे आव्य हाली |
तुंही देवलम् दिव्य तेजोय दाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||11||
तुंही तांडवा नृत्य मे शीव तोळे, तुंही रूद्र ना रूप मे दक्ष रोळे,
तुंही मां सती सग्गती सर्व ग्याता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||12||
तूंही चक्र विष्णौ तणे हत्थ छुट्टे, तूंही टूक्क बावन्न मे मात तुट्टे
तुंही सर्व शक्ति पीठे प्रांण पाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||13||
तुंही हिर्ण कस्यंम्प वाराह वेडे, तूंही कच्छ रूपां उभी दैत केडे
तूंही रत्त्त बीजा भ्रखे रग्त्त राता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||14||
तुंही मा मधु कैटभां माग मंडी, तुंही ब्रह्म वारे चडी ब्रम्ह चंडी
तुंही हय ग्रीवां ग्यान मे हो हयाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||15||
तूंही दोउं वन्ना तुंही दोउ वारी, तुंही चार विप्रम् मरां ने मूरारी
तूंही जोगी दानां नवे लक्ख नाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||16||
तुंही अफ्फरां बोल आशिस आपे, तुंही कफ्फरा काळ ने मात कापे
तुंही नफ्फरां पें रखे नेंण राता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||17||
तुंही सर्सती लक्खमी चौद लोके, तुंही मात काली मया रक्ष मोके
तुंही नाम रां गंधवां गीत गाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||18||
तुंही सोवतां मा प्रथी जाय पल्ले, तुंही से चतु दस्स ब्रहमांड चल्ले
तुंही स्वास लेता लखो कल्पजाता,महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||19||
तुंही रुप साकार आकार सगती, तुंही तुं निराकार ने पार पगती
तुंही दुर दुर्रे समिपेय साता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||20||
तुंही द्रग्ग देखीं भुजा लक्ख भाळी,तुंही स्वेत पद्मा विधु विक्कराळी
तुंही तुं समरतां थीरां चित्त थाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||21||
तुंही नाम से सांकळा बंध छुट्टे, तुंही सेवतां ताप त्रेय विध्ध तुट्टे
तुंही पर्सता वो सदा मोक्ष पाता,महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||22||
तुंही सुर्य कोटी समा तेज तप्पे, तुंही तुं जीभे जोगडो नीत्य जप्पे
तुंही सर्व कल्यांण नी हे किराता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||23||
तुंही शब्द मे ना कबुं मात सामे, तुंही तुं पवितां चितां नित्त पामे
तुंही पुंर्ण किन्ना त्रिसन्नाय ताता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||24||
तुंही से न मागुं मया खिन्न माया, तुंही जोगणी जांणती दक्ख जाया
तुंही बाळ हीत्ते जगत्ते हयाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||25||
तुंही कन्न कन्ने तुंही अन्न धन्ने, तुंही तुं विचरती जगे जन्न जन्ने
तुंही मन्न मन्ने प्रसन्ने प्रदाता, महा आध्य शक्ती महंम्माय माता.||26||
. कुळ दैवी कल्यांण कर, सनमुख रे कर स्हाय |
. जा पद वंदत जोगडो, मात जयति महंम्माय ||27||.
. नित जागी जो नरणमां, स्तुती यह करै सवार |
. जरुर करत मां जोगडा, परा शकत भव पार ||28||
(15 मी कडी मां बे वनचर (वराह ,नरसिंह)/बे जळचर(मच्छ ,कच्छ)/चार विप्र (वामन,परसुराम,/मरा= राम/मुरारी= कृष्ण..ऐम दसावतार ने वंदन छे तथा जोगीदान नी नात अने नाता मां नव लाख ऐटले ऐ तमाम चारण आई ने वंदन छे ),,,
બુધવાર, 7 સપ્ટેમ્બર, 2016
Whatsapp इंजीनियर ग्रुप
. जय माताजी
आपडा चारण गढवी समाजना युवानो माटेनुं अेक इंजीनियर नुं अेक ग्रुप बनाववामां आवेल छे
आ ग्रुपमां मात्र इंजीनियर होय ते ज जोईन थशे
आपनी पासे आपडा चारण गढवी समाजना भाई ओ बहेनो ईंजीनियर ना नंबर होय तो निचेना नंबर पर मोकलवा नम्र विनंती छे
तथा ग्रुपमां जोडाववा माटे निचेना नंबरनो संपर्क करवा विनंती छे
सहकार आपपा विनंती
शक्तिदानभाई गढवी Whatsapp :- 992-520-8781
मनुदान गढवी Whatsapp:- 9687573577
🏻 वंदे सोनल मातरम्
नारायण वंदना : रचना :- दिलजीतभाई गढवी, ढसा
*नारायण वंदना*
*दूहो*
अरज सूणी अमतणी
करी कृपा किरतार,
नारायण रुपे आवियो
ईशर ल्ई अवतार,
*छंद*
परमेश्व नामे जे पूजाणो
ईशर आ कूळमां थियो,
हरीरस लख्यो हाथ थी
सूणाववो बाकी रियो,
ईण कारण आ समे अवतार
लई ने आवियो,
धन्य धन्य चारण कूळ ने ज्या नंद नारायण भयो...(1)
महिदान नामे तात जेना मात जीवूबा नाम छे,
चंडी नी सनमूख सदा रेवू
रसना मां जेने राम छे,
मोसाळ बाटी कूळ लांगेव
पख बेउ उजाळियो,
धन्य धन्य चारण कूळ ने
ज्यां नंद नारायण भयो...(2)
हांकल सूणी हरी नामनी संसार छोडी चालियो,
हरीहरानंद ना चरण ग्रहिया
अभय पदने पामियो,
सूरतां लागी शिव साथे भ्रम
जगतरो भांगीयो,
धन्य धन्य चारण कूळ ने ज्यां नंद नारायण भयो...(3)
काम क्रोध मद मोह वाळा त्रागडा तूटी गया,
मारा ने तारा ममत वाळा स्वार्थो छूटी गया,
असार आ संसार जाणी
धर्म धूणो धखावियो,
धन्य धन्य चारण कूळ ने ज्यां नंद नारायण भयो...(4)
भगवा धर्या जेणे अंग वाघा
भष्म त्रिपूंड ताणियो,
अजर अमर एक नाम एवा जगत पति ने जाणियो,
*दिलजीत* शब्दो धरी चरणे नारायण निवाजियो,
धन्य धन्य चारण कूळ ने ज्या नंद नारायण भयो...(5)
*पू.नारायण स्वामी ने वंदना*
*दिलजीत बाटी* ना जै नमो नारायण *ढसा जं.*
मो.99252 63039
મંગળવાર, 6 સપ્ટેમ્બર, 2016
मा मोगल वंदना : रचना :- दिलजीतभाई गढवी ढसा
*मां मोगल वंदना*
*चरज*
राग..जन्म जन्म का साथ हे...
भजो भगूडा वाळी मोगल मां
मच्छराळी
दर्शन करता दूःखडा भागे आयल छे उपकारी,
भजो भगूडा वाळी..टेक...
मध सागर मा मावडी नावलडी नोधारी,
वेरी थयो छे वावडो आफत आ अणधारी,
तोफानी दरीयेथी माडी तारो ने तत्काळी,
भजो भगूडा वाळी...(1)
धाह सूणीने ध्रोडती आवे धरम धजाळी,
बाळ ने भाळे बावरो त्या
पूगे छे पगपाळी,
हरदम जपीये जाप तिंहारो
नवखंड नेजा वाळी,
भजो भगूडा वाळी...(2)
काळा सर्पो हाथे तेग त्रिशूळ
धरनारी,
दैय्तो ने दळनारी मां रगत मा
रमनारी,
शकित सिंहण रुपे आवी डणंक दई डाढाळी,
भजो भगूडा वाळी...(3)
याद करंता आवती मां धींगी
धाबळीयाळी,
छोरु ने संभाळती परगट परचा वाळी,
चरज सूणी *दिलजीत*नी
कायम राखे छे रखवाळी,
भजो भगूडा वाळी...(4)
जय मां मोगल
आमतो आ तरज *देस*राग
ने आधारीत छे
जे तरज रदय ने गमतो राग छे
*दिलजीत*बाटी ना
जय माताजी
*ढसा जं.*
प्रभाती : रचना :- दिलजीतभाई गढवी , ढसा
आई सोनल अवतरी..2..टेक.
नेहडा मा निसरी,
सूख संपत समृधी ना
मां भंडार दिधा छे भरी,
हे..धन्य चारण कूळ ने..(1)
शूध वरण मा संसरी,
अधम उधारण तिमीर टाळण
भाण सरुपे भै हरी,
हे..धन्य चारण कूळ ने..(2)
नोबत गाजे नभ तणी,
दूध गोरस घी माखण नी
घाण्यू आवे छे घणी,
हे..धन्य चारण कूळ ने..(3)
नेहडा थी नगर भणी,
वसूंधरा ना फळीये रुडा
फूल नी फांटू भरी,
हे..धन्य चारण कूळ ने..(4)
नरवी नदीयू भरी,
वहे प्रवाहे वालप वारी
पवित्रता ज्या परवरी,
हे..धन्य चारण कूळ ने..(5)
धींगो वसीलो छे धणी,
प्रभाते *दिलजीत बाटी*प्रणमे
मां भेर करजे मू भणी,
हे..धन्य चारण कूळ ने..(6)
जय माताजी *ढसा जं.*
રવિવાર, 4 સપ્ટેમ્બર, 2016
चारणनुं अतीत अने आज : प्रस्तुती :- कवि चकमक(जीलुदान गढवी)
चारणोनुं अतीत अने आज...!
चारणो मात्र शूरवीरतानी वातो करनारा साहित्यकारो नथी. मघ्यकालीन युद्घोमां ऐक पण युद्घ ऐवुं नथी के जेमां चारणे योद्घा तरीके भाग न लीघो होय.
संस्कृति, सत्य अने कुळ गौरव जाळववा चारणोऐ कलम अने किरपाण घारण कयाॅ छे. समाजमां थता अनाचार अने अत्याचार अटकाववा चारणे आत्मबलिदान आप्याना अनेक उदाहरणो मळे छे.
चारण आईओना रुप-सौंदयॅनी ऐषणा करनार नरपिसाचोने शरणे थवाने बदले पोताना शरीरना कटके कटका करीने लोही छांटीने आत्मबलिदान आपनार चारण आईओऐ दाखवेल शोयॅ अने चारित्र्यशील परंपरा जगविख्यात छे. चारणोऐ जामीन थया पछी करारभंग थतां सत्य खातर प्राण आप्याना अनेक उदाहरणो जोवा मळे छे. चारणज्ञातिमां थयेला संतोनी पण उज्जवळ परंपरा छे. तो मित्रघमॅ के स्वातंत्रय खातर सवॅस्वनी आहुति आपनार चारणोनी पण विशिष्ट परंपरा छे.
प्राचीन अने मघ्यकालीन युगमां आवी परंपरा घरावनार चारणोना आपणे वारसदारो छीऐ. परंतु अतीतनुं मात्र गौरवगान करवाथी के भव्य भूतकाळने वागोळ्या करवाथी आपणो उद्घार नहीं थाय, आपणे ऐ वारसाने दिपाववो होय, पूवॅजोनी परंपराने जाळववी होय अने देवीपुत्र तरीके मान-सन्मान मेळववा होय तो सत्य, सदाचार, संयम, शील, त्याग, तप अने भकितना गुणो जाळववा पडशे.
चारणत्वनी आगवी ओळख प्रस्थापित करता आ गुणोनुं आचरण करनार व्यकित ज चारण कहेवाय केमके समाजमां युगोथी चारणत्वनी ज पूजा थई छे.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
मोगल वंदना : रचना :- दिलजीतभाई बाटी
*मोगल वंदना*
राग ..राणाजी ने केजो फरी..
संकट हरणी ने सत व्रत
चारणी दयाळू दूःखडानी हरनार,
अधम उधारण मोगल आई मां
साची छो तूं चारण नी सरकार,
संकट हरणी ने...टेक..
मां हानी रे ए हरीने हरीयाळी
आपशे जपशे जे मोगल मां नो जाप,
वळी मां-मां -करशे ते नव निधी पामशे पंड ना हरशे सघळा पाप,
संकट हरणी ने..(1)
एवू नोधारु तारशे रे मां तारु नावडू बावडूं झाली बचावशे बाई,
जेने आजो रे ए हशेरे मोगल मात नो एकज सादे आवशे आई,
संकट हरणी ने..(2)
वहमा ए वखत मा वारु थई आवशे स्नेहे लेवा छोरु नी संभाळ,
अटक्या ने ए उकेले अमाणी आई मां रात-दि-नी मोगल मां रखवाळ,
संकट हरणी ने..(3)
मां भीड ने हरनारी भेरु थई आवशे जबरो छे *दिलजीत*
ने विश्वास,
मारा मन ना रे ए मंदिर मा मां नी मूरती समरण मां नू स्वासो स्वास,
संकट हरणी ने...(4)
*मा मोगल*
*दिलजीत* बाटी ना
जै माताजी..
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