चारणोनुं अतीत अने आज...!
चारणो मात्र शूरवीरतानी वातो करनारा साहित्यकारो नथी. मघ्यकालीन युद्घोमां ऐक पण युद्घ ऐवुं नथी के जेमां चारणे योद्घा तरीके भाग न लीघो होय.
संस्कृति, सत्य अने कुळ गौरव जाळववा चारणोऐ कलम अने किरपाण घारण कयाॅ छे. समाजमां थता अनाचार अने अत्याचार अटकाववा चारणे आत्मबलिदान आप्याना अनेक उदाहरणो मळे छे.
चारण आईओना रुप-सौंदयॅनी ऐषणा करनार नरपिसाचोने शरणे थवाने बदले पोताना शरीरना कटके कटका करीने लोही छांटीने आत्मबलिदान आपनार चारण आईओऐ दाखवेल शोयॅ अने चारित्र्यशील परंपरा जगविख्यात छे. चारणोऐ जामीन थया पछी करारभंग थतां सत्य खातर प्राण आप्याना अनेक उदाहरणो जोवा मळे छे. चारणज्ञातिमां थयेला संतोनी पण उज्जवळ परंपरा छे. तो मित्रघमॅ के स्वातंत्रय खातर सवॅस्वनी आहुति आपनार चारणोनी पण विशिष्ट परंपरा छे.
प्राचीन अने मघ्यकालीन युगमां आवी परंपरा घरावनार चारणोना आपणे वारसदारो छीऐ. परंतु अतीतनुं मात्र गौरवगान करवाथी के भव्य भूतकाळने वागोळ्या करवाथी आपणो उद्घार नहीं थाय, आपणे ऐ वारसाने दिपाववो होय, पूवॅजोनी परंपराने जाळववी होय अने देवीपुत्र तरीके मान-सन्मान मेळववा होय तो सत्य, सदाचार, संयम, शील, त्याग, तप अने भकितना गुणो जाळववा पडशे.
चारणत्वनी आगवी ओळख प्रस्थापित करता आ गुणोनुं आचरण करनार व्यकित ज चारण कहेवाय केमके समाजमां युगोथी चारणत्वनी ज पूजा थई छे.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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