. *|| मेहा सधू मुंझाय छे. ||*
चारण जगदंबा आई सोनबाई मां नो संदेश छे के चारण होय
ई दारु न पिये दारु तो दैत्य पीये..जेनी मती दैत्य होय
ई दारु पीये...तो प्रिय चारण बंधुओ शुं आपडी आई यो
दारु पी शके खरी ??आई करणी जी ने घणां समय थी
दारु ना रसीको ये माताजी ने दारु चडाववानुं सरुं करेल छे
जे परंपरा नेकारणे लोको दारुने प्रसाद गणी ने चारणो जेवी
देवताई जाती ने दारु ना रवाडे चडावी अधःपतन ना मार्गे
वाळ्या छे..अमुक लोको पोतानो दारु बंध न थाय ते माटे
ऐवो तर्क करे छे के माताजी दारु पिवतां हता..पण मित्रो
विचारो तो खरा के गुजरात मां आजे पण चारणो ना घरमां
दारु नुं नाम न लेवावुं जोईये तेवुं गुजरातनी तमाम चारण
बेनु दीकरीयुं ईच्छे छे , तो करणीजी पण चोथी पेढीये
गुजरात ना दीकरी छे. श्री करणीं मा ना पिता ना दादा
भीमाजी किनीया धांगध्रा ना खोड गाम थी राजस्थान गया
ते भीमाजी ना पुत्र नी पौत्री ऐटले के चोथी पेढीये आई करणी
जेवी महान जगदंबा नो जन्म थयो जे चारणो ना उत्थान माटे
जन्मी हती पण आजे तेमना प्रसाद ने नामे चारणो दारु धरी ने
अधः पतन ने मार्गे जई रह्या छे..तो शुं आई ने आ गमतु हशे???
ना..मां ने ऐ नज गमे पण शुं थाय ..छोरु कसोरु थाय पण माता कुमाता केम बने ?? माटे ऐ मां मुंझाय छे...
. || मेहा सधू मुंझाय छे ||
. छंद : सारसी
. रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)
दारु पीवेनई देवियुं पण पापीया ओ पाय छे
दारु धरावे दैत्य त्यां देसांण पत दुभ्भाय छे
करणी मढे आ कुडी करणी ना थवानी थायछे
जाउं कीसे हुं जोगडा मेहा सधू मुंझाय छे || 01||
दीकरा उठी दारु धरे ई मा तणुं शुं मुल छे
पुत्तर नहि ई पाप पाक्या धीक्क वा मुख धुल छे
दाडो उठाड्यो दारुऐ ने खाज अणखज खाय छे
जाउं कीसे हुं जोगडा मेहा सधू मुंझाय छे || 02||
जे जोगणीं जम थी लडी केवि हशे करणीं कहो
ऐना जण्यां ना असुर थाशो रीत चारण मां रहो
पोते पिवा मदीराय पापी गीत जुठां गाय छे
जाउं कीसे हुं जोगडा मेहा सधू मुंझाय छे || 03||
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