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સોમવાર, 16 જાન્યુઆરી, 2017

निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर : रचना :- पींगळशीभाई पाताभाई नरेला

निर्मान  रेहना  श्रेष्ठ  नर.

रचयिता : राजकवि पिंगळशीभाई  पाताभाई नरेला. भावनगर

                             दोहो

सोई  सत्य  सदज्ञान  हे ,  धर्म  दानमें  ध्यान ,

मान   जूठ  मनमें   नही,  सबका  प्रान समान.

                छंद   हरिगीत

सब प्रान ऐक समान जानत,  धर्म में द्रढ ध्यान हे ,

शुभ कर्ममें चित संत संगती, जूठ कबु न जीभान हे.

विद्याय  परगुन  गान वर्नत , कुलमणी। निष्काम हे,

निर्मान   रेहना  श्रेष्ठ  नर  सद्ज्ञान  उनका  नाम  हे ...........1

यह जकत  मिथ्या  हे उपाधि , सत्य कीर्ति सर्वदा,

वेहवारमें  हे अनंत व्याधि  अधिक  तनमें  आपदा,

सुखरूप ईश्वर  भजन साधन मन  ठरन को ठाम हे,

निर्मान  रेहना  श्रेष्ठ  नर   सदज्ञान  उनका  नाम  हे............2

अपना नही ऐ माल धन ,  स्वपना की बाजी सर्व हे,

अपना  करी फिर मानता ओ तो गुप्त मनका गर्व हे,

याते  करो  सुकृत  कछु   वट  पंखी का विश्राम हे,

निर्मान  रेहना  श्रेष्ठ  नर  सदज्ञान  उनका  नाम  हे.............3

continue.

संकलन :  अनिरुद्ध  जे. नरेला.

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