निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर.
रचयिता : राजकवि पिंगळशीभाई पाताभाई नरेला. भावनगर
दोहो
सोई सत्य सदज्ञान हे , धर्म दानमें ध्यान ,
मान जूठ मनमें नही, सबका प्रान समान.
छंद हरिगीत
सब प्रान ऐक समान जानत, धर्म में द्रढ ध्यान हे ,
शुभ कर्ममें चित संत संगती, जूठ कबु न जीभान हे.
विद्याय परगुन गान वर्नत , कुलमणी। निष्काम हे,
निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर सद्ज्ञान उनका नाम हे ...........1
यह जकत मिथ्या हे उपाधि , सत्य कीर्ति सर्वदा,
वेहवारमें हे अनंत व्याधि अधिक तनमें आपदा,
सुखरूप ईश्वर भजन साधन मन ठरन को ठाम हे,
निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर सदज्ञान उनका नाम हे............2
अपना नही ऐ माल धन , स्वपना की बाजी सर्व हे,
अपना करी फिर मानता ओ तो गुप्त मनका गर्व हे,
याते करो सुकृत कछु वट पंखी का विश्राम हे,
निर्मान रेहना श्रेष्ठ नर सदज्ञान उनका नाम हे.............3
continue.
संकलन : अनिरुद्ध जे. नरेला.
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