⚔ *चारण* *कवियों* *की* *कडवी सच्चाई, स्पस्ट बयानी और* *निर्भीकता* *के* *कुछ* *उदहारण*⚔
प्राचीन काल से ही चारणों की बात को सत्य समझा जाता था ,रामायण में लंका दहन के पश्चात श्री हनुमान जी को सीताजी की चिंता हुई तब का उल्लेख हे की चारणो के वचन पर ही हनुमान जी को संतोष हुआ की सीताजी सुरक्षित हे ! मध्यकाल में जब राजपूताने में छोटे - छोटे राज्य परस्पर विस्तार हेतु लड़ते रहते थे ! राजा की सत्ता सर्वोच्च थी उनके आदेश के विरुद्ध कंही भी सुरक्षा संभव नहीं थी ! तब भी चारणो ने अपनी निर्भीक होकर सत्य बोलने की परम्परा को निभाया हे तथा राजाओ व ठाकुरों को उनके कर्त्तव्य पथ से विचलित होने पर प्रताड़ना की हे ! इसके हजारों उदहारण हे -----
*1* - अकबर की सेना का नेतृत्व कर जयपुर नरेश मान सिंह ने महाराणा पर चढाई कर दी जब उदैपुर में अपने घोड़ो पर सवार होकर मान सिंह पिछोला झील पर पहुचे तब गर्वोक्ति में घोड़ो से कहा की अब संतुष्ट होकर पानी पियो क्यों की यहाँ जोधपुर के मालिक के अलावा और किसी ने घोड़ो को पानी नहीं पिलाया हे इस पर जयपुर के ही कविराजा जो उस समय वहीं पर थे ने मान सिंह को खरी खरी सुनाते हुए निम्न दोहा कहा -
*मान* *मन* *अंजसो* *मती,* *अकबर* *बल* *आयाँह* *|*
*वो* *जोधो* *राठोड* *तो,* *(निज)* *भुजा* *पांण* *पायाह* *||*
*मान* *मन* *अंजसो* *मती,* *अकबर* *बल* *आयाँह* *|*
*वो* *जोधो* *राठोड* *तो,* *(निज)* *भुजा* *पांण* *पायाह* *||*
मान सिंह कविराजा की बात पर अत्यन्त कुपित हुए और कविराजा को वंहा से हटा दिया साथ ही पिछोला झील से ही एक फरमान जारी कर तत्कालीन जयपुर रियासत की समस्त चारणों की जागीरें जब्त करली ,जो सात वर्ष तक जब्त रही ! उसके बाद पुन: धरना देकर बहाल करवाया !
*2* - राव चूँडा का बचपन बहुत कठिनाइयों में बीता और उन्हें अपना बचपन कलाऊ गाँव में चारणों के यंहा बिताना पड़ा ! कालांतर में उनकी शादी मंडोर के राजा इन्दा जाती के राजपूत में हो गयी और उन्हें मण्डोर दहेज़ में मिला !
राजा बनने के बाद राव चूंडा अपने बचपन के आश्रयदाता चारणों को भूल गया और अपने राज वैभव में मस्त हो गया तब एक दिन कवी ने उसे खरी खरी सुनाते हुए ये दोहा कहा --
राजा बनने के बाद राव चूंडा अपने बचपन के आश्रयदाता चारणों को भूल गया और अपने राज वैभव में मस्त हो गया तब एक दिन कवी ने उसे खरी खरी सुनाते हुए ये दोहा कहा --
*चूंण्डा* *आवे* *चीत,* *काचर* *कलाऊ* *तणा* |
*भड़* *बैठो* *भयभीत,* *मंडोवर* *रे* *मालियां* ||
*भड़* *बैठो* *भयभीत,* *मंडोवर* *रे* *मालियां* ||
किसी भी शासक को इतनी नग्न एवं कटु सत्य बात सीधी कह देना बहुत बहादुरी का कार्य था !
*3* - महाराणा भीम सिंह मेवाड़ की पुत्री की शादी पर जब बहुत बवाल हो गया और मेवाड़ को संकटों का सामना करने की समस्या पैदा हो गई तब उन्होंने तात्कालीक संकट को दूर करने के लिए अपनी पुत्री को मार डालना ही उचित समझा तब चारण कवी ने उन्हें इन शब्दों से फटकारा --
*भीमा* *तू* *भाटो* *मोटा* *मंगरा* *मातलो*
क्यों की कोई पत्थर (भाटो) दिल ईन्सान ही ऐसा कृत्य कर सकता हे ! तो एक राजा को ऐसी फटकार कोई चारण कवी ही लगा सकता हे ! जिसे जिंदगी से भी ज्यादा सच्चाई पसंद हो ! जंहा कही भी राजा अपने कर्तव्यपथ से विचलित हुआ या जूठी शान दिखाई, तत्काल कविराज ने उसकी आलोचना या प्रताडना करने में कंही कसर नहीं रखी !
*4* - जोधपुर के इतिहास प्रसिद्ध महाराजा अजीतसिंह की हत्या उनके ही पुत्र बखतसिंह द्वारा की गई , इनकी भर्त्सना तत्कालीन चारण कवियों ने खूब की हे इस अमानवीय कृत्य के लिए बखतसिंह को जीवन में कई बार चारण कवि [दलपत बारठ] की फटकार सुननी व सहनी पड़ी ---
*बखता* *बखत* *बाहिरा,* *क्यूं* *मारयो* *अजमाल* |
*हिंदवाणी* *रो* *सेवरो,* *तुरकाणी* *रो* *शाल* |1|
*प्रथम* *तात* *मारियौ,* *मात* *जीवति* *जलाई* |
*असी* *चार* *आदमी,* *हत्या* *ज्यौ* *री* *पण* *पाई* |2|
*कर* *गाठो* *ईकलास,* *वेग* *जय* *सिंग* *बुलायो* |
*मेटी* *धरम* *मरजाद,* *भरम* *गांठ* *रो* *गमायौ* |3|
*कवि* *अणाहुंत* *कैवा* *करे,* *धरा* *उदक* *लेवणधरी* |
*बखतसी* *जलम* *पायो* *पछे,* *किसी* *बात* *आछी* *करी* |4|
*हिंदवाणी* *रो* *सेवरो,* *तुरकाणी* *रो* *शाल* |1|
*प्रथम* *तात* *मारियौ,* *मात* *जीवति* *जलाई* |
*असी* *चार* *आदमी,* *हत्या* *ज्यौ* *री* *पण* *पाई* |2|
*कर* *गाठो* *ईकलास,* *वेग* *जय* *सिंग* *बुलायो* |
*मेटी* *धरम* *मरजाद,* *भरम* *गांठ* *रो* *गमायौ* |3|
*कवि* *अणाहुंत* *कैवा* *करे,* *धरा* *उदक* *लेवणधरी* |
*बखतसी* *जलम* *पायो* *पछे,* *किसी* *बात* *आछी* *करी* |4|
*5* - एक बार जब जोधपुर व जयपुर के महाराजा पुष्कर पर मिले सभी सभासदों के साथ सभा जुड़ी हुई थी ! तब मान सिंह जयपुर ने जोधपुर कविराजा करणी दान जी कवीया से कहा की कविराज सा हम दोनों में से श्रेस्ठ कोन हे तब निर्भीक व सत्यवादी कविराज ने कहा --
*ईत* *जेपुर* *उत* *जोधपुर,* *दोनों* *ही* *थाप* *उथाप*|
*कुरम* *मारयो* *दीकरो*, *कमधज* *मारयो* *बाप* ||
*कुरम* *मारयो* *दीकरो*, *कमधज* *मारयो* *बाप* ||
जयपुर कच्छवाहा को कुरम व राठोड़ों को कमधज कहा जाता हे
*6* - जोधपुर के गौरवशाली इतिहास में सबसे ज्यादा चमकने वाला नक्षत्र हे तो वह हे दुर्गादास राठोड जिन्होंने अपने जीवन में त्याग व स्वामी भक्ति को नई ऊचाईयाँ दी किन्तु जब महाराजा अजीतसिंह ने उन्हें राज्य से निर्वासित कर दिया तब चारण कवी इस अन्याय को सहन नहीं कर सके और उन्हें सीधी फटकार लगाते हुए जालोर जिले के केर निवासी भभूत दान जी ने अजीत सिंह को जबरदस्त फटकारा क्यों की अजीत सिंह ने अपनी राजकुंवरी इन्द्र्कुंवर का डौला दिल्ली भिजवाया ताकि दिल्ली के बादशाह खुश हो सके कवी ने इस पर न केवल शब्द प्रहार किये बल्कि मारवाड़ छोड़ सूंधा के पर्वतो में जाकर सन्यासी हो गए --
*रौवे रजपूती डब डब नयणा देखले | मन री* *मजबूती अख विसरियो तू अजा* |1|
*कालच री कुल में कमंद राची किम या रीत* | *दिल्ली डोलो भेजने अबखी करी अजीत* |2|
*मरुधर रो मुंडो कालो किम किधो कंवर* |
*असी घाव ऊंडो अबखो मन लागे अजा* |3|
*रण रा रंग राता खाता साहा रे सरण | नित जोडया* *नाता अवसल नाह रेसी अजा* |4|
*ईन्दर कवंरी ने हाय भेजी हूसैन संग* | *मेहणी मरूधर ने ईतीहासादीधी अजा* |5|
*कालच री कुल में कमंद राची किम या रीत* | *दिल्ली डोलो भेजने अबखी करी अजीत* |2|
*मरुधर रो मुंडो कालो किम किधो कंवर* |
*असी घाव ऊंडो अबखो मन लागे अजा* |3|
*रण रा रंग राता खाता साहा रे सरण | नित जोडया* *नाता अवसल नाह रेसी अजा* |4|
*ईन्दर कवंरी ने हाय भेजी हूसैन संग* | *मेहणी मरूधर ने ईतीहासादीधी अजा* |5|
*7* - महाराजा अजीत सिंह द्वारा दुर्गादास के निर्वासन का समाचार जब मृत्यु सैय्या पर पडे समरथदान ने सुना तो बीमार कवी ने कर्तव्य पथ का पालन करते हुए निम्न दोहे अजीतसिंह को कहे --
*रखवाली कर राजरी पाळी अणहद प्रीत*|
*दुरगा देसां काढने अबखी करी अजीत*|1|
*समौ तो पलटण सील हे राज बदल जुग रीत*|
*देसी मेहणी देसडा आगमतनै अजीत*|2|
*दुरगा देसां काढने अबखी करी अजीत*|1|
*समौ तो पलटण सील हे राज बदल जुग रीत*|
*देसी मेहणी देसडा आगमतनै अजीत*|2|
*8* - जोधपुर कविराज बांकिदास आशिया तो स्पस्ट व् कटु सत्य कहने में जरा भी हिचकते नहीं थे ! उन्होंने महाराजा मानसिंह को कई बार खरी खरी सुनाई और कई बार राजा का कोपभाजन भी हुए मगर सत्य से विचलित नहीं हुए बांकिदास का बचपन रायपुर में बिता था तथा रायपुर ठाकुर ने ही उन्हें जोधपुर तक पंहूचाया था बाद में मारवाड़ के कविराजा बने ! एक बार रायपुर ठाकुर जोधपुर किले में दरबार में पंहुचे तो बांकिदास जी खड़े होकर उनका स्वागत करने लगे ,यह बात महाराजा को नागवार गुजरी उन्होंने बांकिदास से कहा आप मारवाड़ के कविराजा हे ! यह एक साधारण ठाकुर हे इनके सामने खड़ा होना मेरे बेठे हुए यह राजगद्दी की तोहीन हे ! तब बांकिदास जी ने निर्भीकता से यह दोहा कहा --
*माणी ग्रीखम मांय पोख घणां द्रुम पाळियो* |
*जीण रो गुण किम जय , अज घण बुंठा ही अजा* ||
*जीण रो गुण किम जय , अज घण बुंठा ही अजा* ||
*9* - एक बार जोधपुर नरेश बखत सिंह जी अपने घोड़े को पानी पिला रहे थे साथ ही थपकी देकर बाप बाप कहकर उसे सहला रहे थे तब कविराज बांकिदास जी ने कहा --
*बापों मत कह बगतसी, कांपत हे कैकाण* |
*एकर बापों फिर कहयो, तो तुरंग तजेला प्राण* ||
*एकर बापों फिर कहयो, तो तुरंग तजेला प्राण* ||
पितृहन्ता बखत सिंह के लिए इससे ज्यादा चोट करने वाले शब्द और क्या हो सकते हे !
*10* - मेवाड़ के महाराणा को अंग्रेजो ने " सितारे हिन्द " की ऊपाधी से नवाजा था इसके सम्मान में दरबार सजाय गया तथा सभी अमीर उमराव तथा अंग्रेजो के ओफिसर मौजूद थे और सभी गुणगान कर रहे थे मगर कविराजा चुप थे ! इस पर महाराणा ने कविराजा से कहा ऐसे मोके पर आप चुप क्यों हे कुछ तो फरमाइये ,कविराज ने कहा --
*आगे आगे बाजता हिंदवां हद रा सूर* |
*अब देखो मेवाड़ पति तारा विया हजुर*||
*अब देखो मेवाड़ पति तारा विया हजुर*||
*11* -महाराणा फ़तेह सिंह जी का दिल्ली दरबार में जाने हेतु प्रस्थान तथा बारठ जी के " *चेतावनी रा चूंगट्या* " लिखकर भेजना तथा फ़तेह सिंह का रेवाड़ी से लौट आना आधुनिक काल की जग विख्यात घटना हे ! इस जाति की निर्भीकता राजाओ के सामने ही नहीं वरन किसी भी राजसत्ता को उन्होंने नही बख्सा, जब कुंवर प्रताप सिंह बारठ आसानाडा रेलवे स्टेशन जोधपुर पर गिरफ्तार कर लिए गऐ और अंग्रेज अधिकारी चार्ल्स क्वीक लेंड उन्हें भय से व मार से नही डिगा सका तो प्रलोभनों से डीगाने की सोची ,प्रताप सिंह टस से मस नहीं हुए तो उन्हें भावनात्मक चोट करनी चाही और कहा तेरी माता तेरे लिए रो रही हे उसी वक्त उस चारण युवक के मुह से जो शब्द निकले वो इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षरों मे लिखे गए हे ! प्रताप सिंह ने निर्भीकता से कहा " *मेरी माँ रोती हे तो उसे रोने दो , मैं अपनी मां को हंसाने के लिए हजारो माताओ को नहीं रुला सकता* " और अंग्रेज ऑफिसर को कहा की बारठ से बात करने की तुजमे तमीज नहीं हे तो यंहा से अपना मुह काला कर जाओ !
*12* - राजा महाराजाओं के आपसी व्यवहार में जब किसी बात को सत्य की कसौटी पर कसना होता था तब कविराजा की साख उसमे डाली जाती थी ! मालदेव व भटियानी जी का प्रशंग इसका उदाहरण हे की महाराणी भटियानी ने स्पष्ट कह दिया था की में महाराजा का विश्वास नहीं करती कविराजा आप सही बात फरमावे , तब स्पष्टवादी कविराज आशानन्द जी चारण ने साफ कह दिया ---
*मान रखे तो पीव तज , पीव रखे तज मान* |
*दो दो गयंदन बंधसी , एक ही कमुठांण* ||
*दो दो गयंदन बंधसी , एक ही कमुठांण* ||
*13* - जब राजस्थान मे अंग्रेज सत्ता के अधीन सभी राजा , महाराजा आ चुके थे तब उनके पास कोई अधिक कार्य करने को नहीं रहा तब ठाकुरों ने व सामन्तों ने अय्याशी करनी शुरू कर दी व प्रजा जनो को कष्ट देना शुरू किया तब साधारण चारण कवियों ने ऊन्हे फटकार लगाते हुए अनेक दोहे कहे जो आज जन सामान्य मे प्रचलित हें --
*रुळीयोडा रूळ रल रहया , मद चकिया माचंत* |
*धणियांणी थारी धरा नुगरा किम नाचंत* |1|
*ठाकर बाजो ठाकरां अवरां रा आधार* |
*कागमाळा रा कंवरडा मरीयोडा मत मार* |2|
*नित दारू नाडाह उपमा पायने उमगै* |
*जुलमी सै जाडाह गारत होसी गुमानियां* |3|
*लोई पीवो मत लाडलां ओ नह वाली वाट* |
*इक दिन पाणी उतरसी घर घर घाटो घाट* |4|
*धणियांणी थारी धरा नुगरा किम नाचंत* |1|
*ठाकर बाजो ठाकरां अवरां रा आधार* |
*कागमाळा रा कंवरडा मरीयोडा मत मार* |2|
*नित दारू नाडाह उपमा पायने उमगै* |
*जुलमी सै जाडाह गारत होसी गुमानियां* |3|
*लोई पीवो मत लाडलां ओ नह वाली वाट* |
*इक दिन पाणी उतरसी घर घर घाटो घाट* |4|
भूल हेतू क्षमा और सुधार हेतु सुझाव आमन्त्रित
*गणपत सिह चारण मुण्डकोशिया --9950408090*
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