ચારણત્વ

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સોમવાર, 16 જાન્યુઆરી, 2017

ईसरा परमेसरा अवतरण

ईसरा परमेसरा अवतरण

    प्राचीन काल से गिरिनामा संन्यासी, नाथ योगी और अनेक श्रद्धालु हिंगलाजधाम की दुर्गम यात्रा करते आये हे ! इस पावन यात्रा को माई-स्पर्श करना कहते हे !
       एक बार गिरिनामा सन्यासियों की एक जमात माई-स्पर्श करने को मारवाड़ से सिंध प्रदेश की और बढ़ रही थी ! बाडमेर के निकट भाद्रेस ग्राम में जमात ने दोपहर का विश्राम लिया हारे-थके पदयात्री पेड़ो की छाया में सुस्ताने लगे ! गाव के प्रांगण में सामने ही सूरा चारण का घर था ! सूरा अपनी पोल में अनमना सा बेठा था ! जमात को देखते ही उसके मन में प्रसन्नता की लहर दोड़ गई सूरा ने जमात के महंत को भोजन प्रसादी के लिए आमंत्रित कर लिया ! तनिक अन्तराल के बाद वह जमात को बुलाने चला आया ! श्री महंत और साधुओ ने सूरा के घर भरपेट भोजन किया !
      महंत ज्वालागिरी को यह देख बडा आश्चर्य हुआ की एक ग्रामवासी ने पूरी जमात को इतने कम समय में मिष्टान बना कर केसे जिमा दिया ! भोजनोपरांत महंतजी ने सूरा से पूछा की भक्त तुमने भोजन प्रसादी इतने अल्प समय में केसे तयार कर ली ! सूरा चारण सरलवृति का एक सज्जन व्यक्ति था ! पहले तो वह बात को टालता रहा , किन्तु महंत जी का आग्रह देख उसने आप बीती सुना दी !
     शताब्दियों पूर्व गाव में सहकारिता की भावना से खेतो में सामूहिक श्रम कार्य चला करता था ! ग्रामवासी अवसर आने पर एकसाथ मिलकर काम करते ! जिसके खेत में श्रम कार्य चलता वह सबको मीठा भोजन बना कर खिलाता ! उस दिन सूरा ने अपने बीड का घास कटाने को ग्राम वासियों के लिए पकवान तेयार किया था , किन्तु उसका भतीजा ग्राम वासियों को अपने खेत में ले गया ! सूरा की पोल में कडाव भरा सीरा पड़ा ही रह गया ! सूरा के कोई संतान नहीं थी ! वह अपने भतीजे से कोई विवाद खड़ा करना नहीं चाहता था , अतः मन मसोज कर रह गया ! संयोगवश उसी समय गाव में जमात आ गयी और वह सीरा सूरा ने जमात को जीमा दिया !
         जब श्री महंत को इस घटना का पता लगा तो सूरा के भतीजे शिवराज को बुलाया ,सन्यासी के नाते उसे अपने पास बैठाकर स्नेह और सद्भाव का उपदेश दिया ! उपदेश सुनना तो दूर रहा , वह अविवेकी अकारण ही आपे से बाहर हो गया और क्रोधवस यह कह बेठा कि आप मोटे महात्मा हो , काकाजी को बेटा देदो !
    महंत मुस्कराए और बोले  " माई ने चाहा तो ऐसा ही होगा " भगवत्ती की अपार लीला हे ! एक वर्ष के अन्दर ही सूरा के घर ईसर आ गया ! घर में आनंद छा गया ! इस घटना को लेकर लोक प्रचलन में एक दोहा प्रसिद्ध हे !

    कापडियो हिंगलाज रो ,
                      हिंवाले गलियोह !
    सूरा   बारठ   रे    घरे,
                      ईसर अवतरीयोह !

         माई-स्पर्श कर महंत ज्वालागिरी ने एक शुभ संकल्प के साथ अपना शरीर त्याग दिया ! चारण समाज में शताब्दियों से यह मान्यता चली आ रही हे की ईसरदासजी पूर्व जन्म के महात्मा थे जो दया विचारकर सूरा बारठ के घर अवतरित हुए !
      नाभादास की भक्तमाल में चवदह चारण भक्तो का उल्लेख मिलता हे जिनमे भक्त कवी ईसरदास का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया गया हे !   ------- जय ईसरा परमेसरा

        
  गणपत सिंह चारण(चांचडा), मुण्डकोशिया--9950408090

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