ब्रह्मानंद स्वामी (लाडु दानजी) रचीत अथ ध्यानाष्टक. चरचरी छंद
देखत बड भाग लाग, पोत सरस नवल पाग; अंतर अनुराग जाग, छबि अथाग भारि; अति विशाल तिलक भाल, निरखत जन हो निहाल, उंनत त्रय रेख जाल, काल व्याल हारी, विलसित भुंह साम वंक, चितत उर जात शंक, मूग मद भर बीच पंक, अंक भ्रमर ग्यानी. जय जय घनसाम साम, अंबुज द्रग क्रत उदाम, सुंदर सुख धाम नाम, सामरे गुमानी.(1)
श्रेन कोन द्रग लकीर, तीक्षण मनुं काम तीर, नासा छबि दीप कीर, धीर ध्यान लावे, कुंडल शुभ श्रवन कीन, नौतम क्रति अति नविन, मनहु हेम जुगल मीन, चंद मिलन आवे, गुण नीधी कपोल गोर, चितवत चित लेत चोर, ताके बिच दछन कोर, जोर तिल निसानी, जय जय घनसाम साम, अंबुज द्रग क्रत उदाम, सुंदर सुख धाम नाम, सामरे गुमानी.(2)
मंद मंद मुख हसंत, दारिम सम पंक्ति दंत, समरत माहंत संत खंत चंत करके; लोभित चित अधर लाल, विलसित विद्रुम प्रवाल, राजत अतिशय रसाल ताल वंसी धरके; अंबक फल चिबुक जान, कंबु सम कंठमान, धारत शिव आदि ध्यान, आन उर न अानी, जयजय घनसाम साम, अंबुज द्रग क्रत उदाम, सुंदर सुखधाम नाम, सामरे गुमानी (3)
दीरध अति दोर डंड, मोतिन भुजबंध मंड, खल दल बल कर विखंड, अरि प्रचंड मारे, हिय पर बन नवलहार, शोभित अति जलज सार, देखत जन वारवार अघ अपार टारे, प्रौढ उंच उर प्रथुल, फहरे शुभ गंध फूल, मनिभर नंग बर अमूल, दूलरी बखानी, जय जय घनसाम साम, अंबुज द्रग क्रत उदाम, सुंदर सुखधाम नाम, सामरे गुमानी.(4)
उदर तुंग अति अनूप, गुणवत तिल साम गूप, नाभि मानू प्रेम कृप, रुप अजब राजे, शोभित हद कटि प्रदेश, कांची नंग जटीत बेश, चिंतत उरमें मुनेश, अघ अशेष भाजे, उरु अतंत रुपवान, गरुड पिठ शोभमान, निज जन जेहि धरत ध्यान, प्रान प्रेष्ट जानी, जय जय घनसाम साम, अंबुज द्रग क्रत उदाम, सुंदर सुख धाम नाम, सामरे गुमानी (5)
जांनु दौ रुपवंत, लालित कर श्री अतंत, समरत जेहि मुनि अनंत, अंत जन्म आवे, जन मन प्रिय युगल जंग, रोम अल्प अजब रंग, चितवत चित चढत रंग, अति उमंग पावे; गुल्फन छबि अधिक शोभ, स्थिति चल मन देत थोभ, निरखत उर मिटत क्षोभ, लोभ आदि ग्लानी, जय जय घनसाम साम, अंबुज द्रग क्रत उदाम, सुंदर सुखधाम नाम, सामरे गुमानी,(6)
चरन प्रष्ट चित हरात, तरु तमाल छबि लजात, समरत ततकाल आत, रात प्रात मनमें, जाकुं नित शेष गात, अजहु पुनि नहि अघात, तुलसी जेहि स्थल रहात, पात मांनुं जनमें, नख उतंग रंग लाल, शोभित मनु दीपमाल, राजत किधुं चंद्र बाल, ख्याल करत ध्यानी, जय जय घनसाम साम, अंबुज द्रग क्रत उदाम, सुंदर सुखधाम नाम, सामरे गुमानी,(7)
विलसित चरणारविंद, कोमल अति प्रेम कंद, ध्यावत भव मिटत फंद, छंद स्तवन बोले, प्रसरत जेहि पद प्रसंग, पुन्य भरित सरित गंग, अघविनाश पसॅ अंग हो उतंग डोले, राजत महिं उध्वॅरेख, वज्रादिक सहित प्रेख, ब्रह्मानंद देख देख, लेखत कुरबानी. जय जय घनसाम साम, अंबुज द्रग क्रत उदाम, सुंदर सुखधाम नाम सामरे गुमानी(8)
*रचना :- ब्रह्मानंद स्वामी(लाडु दानजी)*
टाइपिंग-धर्मेश गाबाणी
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