. जय माताजी
*आवो आजे एेक भगतबापु नी अदभुत रचनानुं आपणे सौ रचपान करी़ये.*
*( भय भ्रेकुंडा चामुंडा... चप्पय )*
छुट कुलीश गय शक्र , पक्र इंदु धर इरवक ,
धरनि धमम धरकंति , कमठ फनि रुदन शुकर धक ,
उडगन गन तज अर्श , दर्श रन रन धर दशरत ,
सकल प्रभंजन चलत , व्रृध्धि धर पर धन वरसत ,
भर गयो घोर रव भूमि नभ , आफताब श्रीहत अडर ,
चंडी सुकोप कर असुर शर , धोम निकर कर खडग धर (1)
गयंद दिग्गज डर गये , नचत हरहर कर निरबल ,
गो लचकक चल गये , वितल हल गये तलातल ,
गिरि गन खलभल गये , मुंड चल गये व्योमतल ,
अढल सुभट ढल गये , हुये अनचल दधि हलबल ,
कलमलत चराचर कोपसे , भट्ट मन मोद धरे ,
चंडी सुकोप कर असुर शर , धोम निकर कर खडग धर (2)
घोर नाद भो घट्ट , थट्ट भये असुर थर ,
रमनि सुर जट रट्ट , हट्ट धर वट्ट इष्ट हर ,
लोह खडग कस लट्ट , खट्ट द्रादश मुनि हस ,
कथ "काग " पंच कंपन लग्यो , हरि बिरंचि अरु चकित हर ,
चंडी सुकोप कर असुर शर , धोम निकर कर खडग धर (3)
अचल ध्रुव डग गये , मिहिर डग गये दछिन मग ,.
गोतल फनि जग गये , गगन मंडल भये डगमग ,
गोवर शम डग गये ., ' मा ल पर धरनी पर ,
गिरिधर पड जग गये , थीर नहिं होवन थरथर ,
हर गिरि श्वसुर गिरिहर हलत , अंबर जल चल गइ अधर ,
चंडी सुकोप कर असुर शर , धोम निकर कर खडग धर (4)
अकवकित गन असुर , चकित थर थरत चरा चर ,
थंभ भूमि भय थकित , लोल जल शायर लरथर ,
वात करत नह वहन , जंप गये सकल तटनि जल ,
विबुध वृंद भय विकल , मेरुगिरि भये सु खल भल ,
ब्रह्मांड अंड हलबल विपुल , झुंड , झुंड नर फेलि जर ,
चामुंड रकत भय मुंड शर , करन खंड असि तोलि कर (5)
कुटिल भ्रोह करि कोप , जगत जननी जब जुट्ठीय ,
बदन रकत बैंराट , गगन मंडल तब कुट्टिय ,
अवनि व्योम अवकाश , प्रबल भुजबल वपु पुरिच ,
खंड खंड खलनिकर , द्रिजपति ग्रह सब दुरिय ,
भुजदंड वृंद दिग भर गये , हतबल भय निशिचर हहर ,
चामुंड रकत भय मुंड शर , करन खंड असि तोलि कर (6)
कडड दंत कडकडत , खपर अनहड रन खडडत ,
जडधर गन जडपडत , गडड भेंकारव गडडत ,
लचक स्थिरा लडथडत , हडड धख धख नद हालत ,
कदुंक इव दडवडत , हलक धडडड पड हुसकत ,
हसमसत तबक नारद हसत , धरनी रसातल जाती धस ,
चामुंड रकत भय मुंड शर , करन खंड असि तोलि कर (7)
*रचयता :- पद्म श्री दुला भाया काग (भगतबापु)*
*पोस्टबाई :- चारणत्व ब्लॉग*
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