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સોમવાર, 11 સપ્ટેમ્બર, 2017

गौकुळ आवो गीरधारी : रचना :- पिंगळशीभाई पाताभाई नरेला

छंद त्रिभंगी प्रख्यात, लोकप्रिय ॥बारमासी छंद॥ भावनगर राजकवि पिंगळ्शीभाई पाताभाई नरेला

🌺 *भावनगर राजकवि पिंगळ्शीभाई पाताभाई नरेला*🌺
.                 टाइप :- मोना गढ़वी, अमदावाद.

*।।छंद त्रिभंगी ।।*  प्रख्यात, लोकप्रिय  *॥बारमासी छंद॥*

आषाढ ऊच्चारं, मेघ मलारं, बनी बहारं जलधारं।
दादुर डकारं, मयुर पुकारं, सरिता सारं विस्तारं।
ना लही संभारं, प्यास अपारं, नंद कुमारं निरधारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुळ आवो गीरधारी !! 1

श्रावण जळ बरसे, सुन्दर सरसे, बादळ वरसे अंबर से।
तरवर गिरवरसे, लता लहर से, नदियां सरसे सागर से।
दंपति दुख दरसे, सैज समरसे, लगत जहर से दुखकारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुल आवो गिरधारी !!  2

भाद्रव भरिया, गिरवर हरिया, प्रेम प्रसरिया तन तरिया।
मथुरा में गरिया, फैर न फरिया, कुब्जा वरिया वश करिया।
ब्रजराज बिसरिया, काज न सरिया, मन नहीं ठरिया हुं हारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुळ आवो गिरधारी !!          3

आसो महिनारी, आश वधारी, दन दशरारी दरशारी।
नव निद्धि निहारी, चड़ी अटारी, वार संभारी मथुरारी।
वृषभानु दुलारी, कहत पुकारी विनवीये वारी वारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुळ आवो गिरधारी !! 4

कहुं मासं काती, तिय मदमाती, दिप लगाती रंग राती।
मंदिर महलाती, सबे सुहाती, मैं हरखाती जझकाती।
बिरहे जल जाती, नींद न आती, लखी नपाती मोरारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुळ आवो गिरधारी !! 5

मगसर शुभ मासं, धर्म प्रकाशं, हिये हुल्लासं जनवासं।
सुन्दर सहवासं, स्वामी पासं, विविध विलासं रनिवासं।
अन्न नहीं अपवासं, व्रती अकाशं, नहीं विश्वासं मोरारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुळ आवो गीरधारी !!   6

पौषे पछताई, शिशिर सुहाई, ठंड लगाई सरसाई।
मन मथ मुरझाई, रहयो न जाई, बृज दुखदाई वरताई।
शुं कहुं समझाई, वैद बताई, नहीं जुदाई नर नारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुल आवो गिरधारी !! 7

माह महिना आये, लगन लखाये, मंगळ गाये रंग छाये।
बहु रैन बढाये, दिवस घटाये, कपट कहाये वरताये।
वृज की वनराये, खावा धाये, वात न जाय विस्तारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुळ आवो गिरधारी !! 8

फागुन प्रफुल्लितं, बेल ललितं, कीर कलीतं कौकीलं।
गावत रस गीतं, वसन्त वजीतं, दन दरसीतं दुख दिलं।
पहेली कर प्रीतं, करत करीतं, नाथ अनीतं नहीं सारी।
कहे राधे बलिहारी, मैं बलिहारी, गौकुळ आवो गिरधारी!! 9

मन चैत्र मासं, अधिक ऊदासं, पति प्रवासं नहींपाये।
बन बने बिकासं, प्रगट पलासं, अंब फळांसं फल आये।
स्वामी सहवासं, दिये दिलासं, हिये हुल्लासं कुबजारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुळ आवो गिरधारी !!  10

वैशाखे वादळ, पवन अप्रबळ, अनल प्रगट थल तपति अति।
सौहत कुसुमावल, चंदन शीतल, हुई नदियां जळ मन्द गति।
कियो हमसे छळ, आप अकळ कळ, नहीं अबळा पत पतवारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुळ आवो गिरधारी !!              11

जेठे जगजीवन, सुके बन बन, घोर गगन घन चढत घटा।
भावत नहीं भौजन, जात वरस दन, करत प्रिया तन काम कटा।
तड़फत ब्रज के जन, नाथ निरंजन, दिया न दरशन दिलधारी।
कहे राधे प्यारी, मैं बलिहारी, गौकुळ आवो गिरधारी !!           12

🌺 *भावनगर राजकवि पिंगळ्शीभाई पाताभाई नरेला*🌺

टाइप :- मोना गढ़वी, अमदावाद.

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