ચારણત્વ

" આપણા ચારણ ગઢવી સમાજની કોઈપણ માહિતી,સમાચાર અથવા શુભેચ્છાઓ આપ આ બ્લોગ પર પ્રકાશિત કરવા માગતા આ વોટ્સએપ ન.9687573577 પર મોકલવા વિંનતી છે. " "આઈશ્રી સોનલ મા જન્મ શતાબ્દી મહોત્સવ તારીખ ૧૧/૧૨/૧૩ જાન્યુઆરી-૨૦૨૪"

Sponsored Ads

સોમવાર, 19 માર્ચ, 2018

शूरवीर चारण "कानाजी आढा"

शूरवीर चारण कानाजी आढा द्वारा आमेर के शासक सांगा को मारकर अपने मित्रवत् स्वामी करमचंद नरूका का वैर लेना
ज्यादा से ज्यादा शेयर करावे।
(इतिहास के अनछुए पहलू)

लेखक डा नरेन्द्रसिंह आढा
इतिहास व्याख्याता
रा उ मा वि घरट जिला सिरोही
(सन्दर्भ ख्यात देश दर्पण पृ स 28-29 कृत दयालदास सिंढायच व श्यामलदास जी दधवाडिया कृत वीर विनोद के भाग 3 के पृ स 1275)
बीकानेर की धरती के कानोजी आढा चारण जाति के बडे शूरवीर योद्धा थे कानोजी आढा दुरसाजी आढा की तरह कलम व कृपाण दोनो में सिद्धहस्त चारण थे। कानोजी अमल खूब खाते थे इनके अमल ज्यादा खाने से इनके भाईयों इन्हें घर से निकाल दिया ये अम्ल की जुगाड में इधर उधर ठिकाणों में जाने लगे।ये घुमते हुए आमेर की सीमा में आ गये। इस बीच इनके पास से अम्ल कही रास्ते में गिर गया। चलते चलते इनके अम्ल का वक्त हो गया और इनके अम्ल की पोटली रास्ते में गिरने से इनका अम्ल का नशा उतर जाने से चक्कर आकर गिये पडे।ये जहां गिरे उनके नीचे काला भयानक सांप नीचे दब गया। सांप के नीचे दबने से सांप ने इन्हें दो चार जगह से काट दिया जिस वजह से इनके जहर चढने से ये होश में आ गये इन्होंने उस सांप को अपने विशाल शरीर के नीचे दबा पाया तो उन्होने उस सांप को जीवित ही पकड लिया और एक मिट्टी के बर्तन में डालकर उसका मूंह ढक दिया। कानोजी जहां भी जाते उस सांप को अपने साथ रखते और उसे दूध पिलाते और मांस खिलाते थे जब कानोजी के अम्ल खाने का वक्त होता तो वे उस सांप से स्वंय को कटवाते और उनके अम्ल का नशा हो जाया करता था।इस तरह से वे मोजाबाद के करमचंद नरूका के पास पहुंच गये।

कमरचंद नरूका बडे ही साहसी राजपूत थे इन्होने आमेर के राजा रतनसी के समय में उनके खालसा के 40 गांव पर कब्जा कर लिया और अपना रूतबा खूब बढा दिया अपने पास 200 राजपूत सदैव उनकी चाकरी में हाजरी रहते थे। करमचंद नरूका राजपूतों को कडाव में दूध रडाके उसमें मिसरी मिलाकर आधी रात को जगा जगाकर पिलाते थे कानोजी आढा भी इन राजपूत सरदारों के साथ करमचंद के यहां रहने लग गये। करमचंद नरूका ने कानोजी के सांप को छुडावा दिया इनको खाने को खूब अम्ल मिलने लग गया और मिसरी मिलाये हुए दूध के कटारे भर भरके पावे है करमचंद और दूसरे सभी राजपूत पहले कानोजी की अम्ल व दूध पीलाने की मनवार करते थे बाद में वे खूद लेते थे। कानोजी आढा के मित्रवत् स्वामी करमचंद को धोखे से आमेर के सांगा ने मरवा दिया । इस पर कानोजी आढा साथी राजपूतों पर आग बूगला होकर कहते है आप सभी राजपूतों को लाणत है जो करमचंद तुम सभी राजपूतों को जगा जगाकर रढाया हुआ दुध मिसरी डालकर पिलाता था वह अकेला मरा गया आप सबके जीवित रहने में धिक्कार है तब साथी राजपूतों ने कहा उसके साथ धोखा तो उसके भाई की वजह से हुआ है आप हमें क्यों मेणी दे रहे हो और करमचंद तो सबसे पहले तो आपको दूध की मनवार करता था इस बात से कानोजी आढा कुद्ध हो गये और सभी राजपूतों को कहा कि मैं करमचंद नरूका का वैर जब तक नही ले लेता हूं तब तक अन्न ग्रहण नही करूंगा और कानोजी आढा ने अन्न का परित्याग कर दिया अब उन्होंने दूध व फलार ही लेना स्वीकार किया।

करमचंद नरूका के वैर लेने की प्रतिज्ञा लेकर कानोजी मोजाबाद से आमेर आ गये। आमेर में सांगा के राज करते हुए छ महीने ही हुए थे सांगा बीकानेर की मदद से आमेर के शासक हुए थे बीकानेर से सांगा की मदद के लिए आने वाले सभी सरदार सीख लेकर बीकानेर लौट चुके थे। महाजन के ठाकर रतनसीजी लूणकरणोत सांगा के मामा थे वे अभी भी आमेर ही थे चूंकि कानोजी आढा बीकानेर के ही थे अतः वे रतनसी बीकानेर वालों के डेरे में रहने लगे। कानोजी आढा का इस तरह से रतनसी के मार्फत  सांगा के दरबार में आना जाना शूरू हो गया।सांग भी इनकी खूब मान मनवार नानाणे के होने के कारण रखने लगे। कानोजी आढा पृथ्वीराज रासो का बहुत अच्छा वाचक होने के कारण सांगा उनको बुलावा के उनसे पृथ्वीराज रासो सूनते थे इधर कानोजी आढा करमचंद के वैर लेने की फिराक में था लेकिन वह इस बात की भी पुष्टि चाहता था कि करमचंद के साथ वास्तविक चूक कैसे हुआ ??
एक दिन संयोग से मोजाबाद के करमचंद नरूका की बात चल पडी तब सांगा ने करमचंद नरूका को परम हरामखोर कह दिया तब कानोजी आढा ने अपने स्वामी करमचंद की तारिफ करते हुए कहा कि वह तो बडा दानी व वीर राजपूत था कानोजी आढा के मुख से अपने मृत शत्रु की तारिफ सांगा को पसंद नही आयी ।कानोजी आढा ने देखा कि सांगा के साथ पांच सात राजपूत सरदार है मैं अकेला हूं लेकिन उनके करमचंद नरूका के वैर लेने प्रण था कि मैं अपने स्वामी करमचंद नरूका का वैर लेकर ही अन्न ग्रहण करूंगा। अब कानोजी आढा ने आव देखा न ताव उसने एक ही झटके में सांगा को मार गिया और स्वंय अपने स्वामी का वैर लेकर सांगा के आदमियों से लडते हुए काम आ गये। सांगा के बाद आमेर के शासक भारमल हुए। इन कानोजी आढा के वंशज कानावत आढा कहलाते है जो जयपुर रियासत के उणियारा में निवास करते है।

🖋 डा नरेन्द्रसिंह आढा झांकर
इतिहास व्याख्याता
रा उ मा वि घरट जिला सिरोही

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો

Featured Post

રાજકોટ ચારણ સમાજનું ગૌરવ કુ.મીરા કાનાભાઈ ગઢવી

રાજકોટ ચારણ સમાજનું ગૌરવ  કુ.મીરા કાનાભાઈ ગઢવી WEIGHT LIFTING, WRESTLING સ્પર્ધામાં માં ગોલ્ડ મેડલ મેળવીને પરિવાર સાથે સમાજનું ગૌરવ વધારેલ છ...