चारणोनी सांस्कृतिक परंपरा...!
भारतीय संस्कृति अने देवी उपासनानुं जतन करवामां चारणोनुं विशिष्ट योगदान छे. आदिकाळथी चारणो शकितना उपासक रहया छे. चारण ज्ञातिनी आ विशिष्ट कुळपरंपराने लीघे नवलाख लोबडियाळीओऐ तेमने त्यां अवतार घारण कयोॅ छे. आ विशिष्ट मातृशकितनी परंपराने कारणे ज चारणोने देवीपुत्र कहेवामां आवे छे. देव ऐटले जेनामां दैवी संपत्तिना गुण होय ते देव. चारणो दैवी संपत्तिना गुणो घरावता हता.
सोनल आई कहेता के, '' पुजा सत्यनी होय, आदॅशनी होय, नीतिनी-दयानी होय, आपणां पूवॅज आईओ महान हता. पण चारणो आपणे आजे कयां छीऐ ? तेनो विचार करो. चारणो !
आपणुं ऐ सत घरमवाळुं जीवन कयां ? आपणी ऐ संस्कृति कयां ? ऐनो विचार करो. आपणे हजु अघ:पतनना मागेॅथी पाछा नथी वळ्या.
प्राचीन अने मघ्यकालीन युगमां उज्जवळ परंपरा घरावनार चारणोना आपणे वारसदारो छीऐ. परंतु मात्र अतीतनुं गौरवगान करवाथी के भव्य भूतकाळने वागोळ्या करवाथी आपणो उद्घार नहीं थाय.
आपणा ऐ वारसाने दीपाववो होय तो सत्य, सदाचार, संयम, शील, त्याग, तप, अने भकितना गुण जाळववा पडशे कारण चारणत्वनी आगवी ओळख प्रस्थापित करता गुणोनुं आचरण करनार व्यकित ज चारण कहेवाय.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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