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મંગળવાર, 10 એપ્રિલ, 2018

मगन हमेशा माहेशा : रचना :- ब्रह्मानंद स्वामी (लाडुदानजी)

ब्रह्मानंद स्वमि(लाडुदानजी) नी एेक रचना*

सपाखरु गीत

धरा उपरा अगाध धरा हरानरा रुप धरा अमरा नमरा कंध भ्रमरा अमीर करा खेम गेम हरा कामरा विनाश करा भरा भरा क्रीत भरा बुधिरा गंभीर (१)
सागरा रागरा लेत नागरा श्रंगार सरा आगरा त्यागरा चिंत भागरा अथाह ज्यागरा अधीश रुद्र सदा घ्यान प्रजागरा वाघरा अंबर वेण बागरा सुवाह  (2)
डंमरा भ्रमरा करा देख भेख आडंबरा थरथरा अथराहो डरा काल ठीक-जरा जीत जाम जरा अजरा हलाहल जरा जरातरा अंगपरा नां जरा नजीक (3)
वरा देण सती वरा शेखरा सरीत वरा परवरा जोगेशरा उचरा अपार सीरा गंग नीरझरा मुनिब्रह्म अनुसरा सिधेशरा देवखरा उधरा संसार(4)

  दोहा
पारवती पती अति प्रबल विमल सदा नरवेश नंदि संग उमंग नीत स्मरत जेहि गुण शेश(1)

त्रिभंगी छंद

समरत जेहि शेशा दिपत सुरेशा पूत्र गणेशा निज प्यारा ब्रह्मांड प्रवेशा प्रसिध परेशा अजर उमेशा उदारा बेहद नर वेशा क्रत शिर केशा टलत अशेशा अघरेशा जय देव सिधेशा हरन कलेशा मगन हमेशा माहेशा (1)

भक्तन थट भारी हलक हजारी कनक आहारी सुखकारी शिर गंग सुधारी द्दढ ब्रह्मचारी हर दुख हारी त्रिपुरारी रहे ध्यान खुमारी ब्रह्म विहारी गिरजा प्यारी जोगेशा जय देव सिधेशा हरन कलेशा मगन हमेशा माहेशा (2)

कैलास निवासी जोग अध्यासी रिधि सिधि दासी पतिकासी चिद व्योम विलासी हित जुत हासी रटत प्रयासी सुखरासी मुनि सहस्त्र अठ्यासी कहि अविनासी जेहि दुख त्रासी उपदेशा जय देव सिधेशा हरन कलेशा मगन हमेशा माहेशा (3)

गौरी नित संगा अति शुभ अंगा हार भुयंगा शिर गंगा रहवत निज रंगा उठत अथंगा ग्यान तरंगा अति चंगा उर होत उमंगा जय क्रत जंगा अचल अमंगा अावेशा जय देव सिधेशा हरन कलेशा मगन हमेशा माहेशा (4)

नाचत निशंका मूगमद पंका घम घम घमका घुघरुका ढोलूका ढमका होवत हंका डंमडंम डंमका डमरुका रणतूर रणंका भेर भणंका गगन इणंका गहरेशा जय देव सिधेशा हरन कलेशा मगन हमेशा माहेशा (5)

मणिघर गल माला भुप भुजाला शीश जटाला चरिताला जगमूल प्रजाला श्वूल हथाला जन प्रतिपाला जोराला डृग त्रतिय कराला हारफणाला रहत क्रपाला राकेशा जय देव सिधेशा हरन कलेशा मगन हमेशा माहेशा (6)

खलकत शिर नीरा अदल अमिरा पीरन पीरा हर पीरा विहरत संग वीरा ध्यावत धीरा गौर शरीरा गंभीरा दातार रिधीरा झाझ बुधीरा कांत सिधीरा शिर केशा जय देव सिधेशा हरन कलेशा मगन हमेशा माहेशा (7)

नर रुप बनाया अकल अमाया कायम काया जगराया तन काम जलाया सांब सुहाया मुनि उर लाया मन भाया सिधेश्वर छाया जन सुख पाया मुनि ब्रह्म गाया गुण लेशा जय देव सिधेशा हरन कलेशा मगन हमेशा माहेशा (8)

          :-छपय-:

जय जय देव सिधेश शेश निश दिन गुण गावे दरस परस दुख दूर सूर जन अंतर लावे अणभय अकल अपार सार सुंदर जग स्वामि अगणित कीन उधार नार नर चैतन धामी नर रुप भूप मूतॅि नवल नहि संख्या जेहि नामकी कहे ब्रह्ममुनि बलिहरमें सिधेश्वर जग सामकी(1)

*रचना :- ब्रह्मानंद स्वामी (लाडुदानजी)
dharmesh gabani
9979382586

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