ચારણત્વ

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મંગળવાર, 10 જાન્યુઆરી, 2017

भीमा जी आशिया.

सिद्ध पुरुष भीमा जी आशिया

मालजी आशिया के प्राप्त गाँव को किसी कारणवश भाऊ चौधरी श्राप देकर चले गये थे ! इसी कारण वेरिशाल जी सशंकित थे की उनके कोई पुत्र उत्पन्न नहीं हो रहा हे ! इसलिए गाँव के दक्षिण में कुछ जमीन अपने भाइयो से मांग कर उस पर माँ करणी का छोटा सा थान बनाया तथा ओरण की जमीन छोड़ी और उसमे एक तालाब खुदवाया ! कुछ समय पश्चात् वेरीशाल जी को वि स 1640 में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तब उसका नाम भीमा आशिया रखा ! उससे संबधित वेरीशाल जी का कहा हुआ डिंगल का एक गीत जिसके कुछ अंश ---

' भीमो सुतन दियो भगवती , राजी हुव दैशाणे राय ||
कहिये ग़ीत जिसौ हिज किधो ,इण पुळ ऊपर वैरे आय ||

  शक्ति की अनुकम्पा से उत्पन्न भीमा आशिया एक प्रखर बुद्धि व बड़ी तेजोमय कान्ति वाला बालक था ! उसने मात्र बीस वर्ष की अवस्था में सिणधरी के रावल महेश दास भारमलोत से मुलाकात की और परगना मालाणी में वि स 1660 को रतेउ नामक ग्राम जागीर में प्राप्त किया !
     पिता ने भीमा का विवाह पडोसी गाँव रेवाडा में कर दिया ! भाग्य की प्रबलता से अपने ससुराल में सिद्ध व तपस्वी साधू जलंधरनाथ की सेवा का इन्हें अवसर मिला और जलंधरनाथ ने प्रसन्न होकर वि स 1663 को इन्हें रिद्धी सिद्धी प्रदान कर दी ! साधू के अपने कंथा से एक भगवा कपडा भीमा को दिया और कहा की मेरे नाम से प्रसाद बनाकर इस कपडे से ढककर रख देना ! फिर इस अखूट भोजन से चाहे पूरी मारवाड़ को जिमाना !
     वि स 1664 में भीमा आशिया ने सिवाना के राव से मुलाकात की और सिंवाची पट्टी के 140 गाँव को भोजन करवाने की आज्ञा चाही ! सिंवाची की इस दावत का सफल आयोजन कर सबको चकित कर दिया ! दूर दूर के परगनो में सिद्ध पुरुष भीमा आशिया की किर्ती फेलने लगी !
      भीमा आशिया वि.सं. 1666 में उदैपुर राणा अमर सिंह के पास मेवाड गए ! उन्होंने कवित्व शक्ति का प्रयोग करते हुए राजा को काव्य सुनाए !
       कवी की विद्वता व काव्य पाठ से राणा मन्त्र मुग्ध हो गए ! उन्होंने खड़े होकर कवी का सत्कार किया व उचित आसन प्रदान किया !
     भीमा आशिया राजा करण सिंह व जगत सिंह के शासन काल में भी उच्च शिखर पर रहे थे !
     भीमा आशिया ने कैलाशपुरी में मेवाड राणाओ के इष्ट देव एकलिंग नाथ के मंदिर के पास में देवी के मंदिर का निर्माण करने की अनुमति मांगी ! राणा ने सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी ! वि स 1666 से 1670 चार वर्ष में देवी का मंदिर निर्माण संपन्न कर राणा अमर सिंह से इस मंदिर की प्रतिस्ठा का कार्य करने की अनुमति चाही ! इस प्रतिस्ठा उत्सव पर तमाम मेवाड को दावत दी जिसमे राज परिवार सहित सेना भी सम्मिलित थी ! मंदिर प्रतिस्ठा उत्सव पर दी गई इस दावत से न केवल राज परिवार परन्तु सुदूर प्रदेशो के लोग भी आवक रह गए ! भीमा ने इस मंदिर पर अपने हाथ से स्वर्ण कलश चड़ाया ! जिससे सम्बंधित यह दोहा प्रचलित हे --

आज उदैपुर आय ! कुण थारी समवड करे !
करतां भीम कड़ाव ! इंडो चढायो आशिया !!

       दुसरे दिन राणा कैलाशपुरी से उदैपुर शहर तक 13 मील तक पेशकदमी में महल तक साथ चले और उनके स्वागत में रास्ते भर में तोरण द्वार बनाये ! कवी की पूजा की ! आभुषणो से अलंकृत कर लाख पसाव व चार गाँव सांसण के रूप में भेट कर ठाकुर के पद से विभूषित कर मेवाड में एक कुर्सी इनकी बैठक के लिए सुरक्षित की गई  !
  इस विराट प्रतिस्ठा आयोजन के लिए व्यंजन हलवा , पुडी , लापसी इत्यादि बनाकर जलंधरनाथ के दिए उस कपडे से ढककर रख दिया ! फिर राणा अमर सिंह को सपरिवार भोजन करने को बुलाने के लिए भीमा आशिया उनके पास राजमहल में गया !
    राजस्थान के दूर दराज के रावळ , मोतिसर व चारण सरदार भारी मात्रा में इस अद्वितीय दावत में सम्मिलित हुए थे ! इतने विराट आयोजन को असफल बनाने के लिए भीमा के विरोधी लोगो ने एकलिंग जी के मंदिर के पुजारी को कुछ प्रलोभन देकर समझाया की तुम राणा को इस दावत में भोजन करने से रोक दो ! राणा को कहना की आप सपरिवार चलकर इतने विशाल जन समूह में बैठकर एक चारण के यहां भोजन करोगे तब आपका राणा का पद जाता रहेगा ! इस प्रकार विधिवत समझाकर पुजारी को राजमहल में भीमा के जाने से पहले भेज दिया !
   भीमा आशिया राणा को बुलाने के लिए उनके पास गया तो पुजारी ने राणा का सपरिवार वहा जाकर भोजन करना राणा पद के विपरीत बताया और सुजाव दिया की समस्त राज परिवार के लिए भोजन यंहा महल में पहुचाया जावे ! अकस्मात् भीमा के सफल आयोजन पर असफलता का भारी ज्वार उमड़ आया ! किये गए पुरे कार्य पर पानी फिरने लगा  ! चारण मातृ शक्ति का उपासक हे और विपत्ति में उसी का संबल प्राप्त होता हे ! परन्तु आज चारण भीमा आशिया के सामने मतृशक्ति नहीं -- एकलिंगनाथ अर्थात शिव स्वरुप के कृपा की आवश्कता थी ! पुजारी के कथन के समर्थन में मंत्रिमंडल के सदस्यों में से भी एक दो ने सहज भाव से इसका समर्थन किया !
    स्थिति बड़ी विकट थी ! भीमा आशिया ने आँखे बंद कर ध्यानाअवस्था में जाकर जलंधरनाथ से साक्षात्कार किया ! फिर राणा से मुखातिब होकर कहा की आप मेरे साथ चलिए ! पहले एकलिंगनाथ जी को थाल परोसना हे ! वे प्रभु स्वयं भोजन करेंगे उसके पश्चात् हम सब उस प्रसाद को ग्रहण करेंगे ! फिर पुजारी से कहा की आप नाथ जी के पुजारी हे ! एकलिंगजी के मंदिर में आप भी उनको भोग लगाने के लिए अपनी तरफ से प्रसाद रख देना ! यह आयोजन एकलिंगजी की कृपा व उनके आदेश से किया गया हे ! में अल्पज्ञ तो उनका निमित्त मात्र हु , यह आयोजन मेरी तरफ से नहीं , उस प्रभु शिव की तरफ से हे !
       भीमा आशिया के इस कथन पर सभी कींकर्तव्यविमुढ होकर रह गए ! परन्तु पुजारी मंद मंद मुस्कान के साथ प्रसन्न था कि न तो एकलिंगनाथ जी की मूर्ति भोजन ग्रहण करेगी और न इनका आयोजन सफल होगा !
     भीमा आशिया ने शिव और जलंधरनाथ की स्तुति की और थाल सजाकर मंदिर में रखा ! पुजारी ने भी अपनी और से घी - गुड की एक कटोरी थाल के पास में अपनी और से रख दी ! गर्भगृह में मूर्ति के आगे पर्दा डाल दिया !
     राणा अमर सिंह , उसका समस्त मंत्रिमंडल , विद्वान चारण व नगर के गणमान्य सेठ - साहूकार इत्यादि का विशाल हुजूम इस घटना के साक्ष्य में आश्चर्य में अभिभूत होकर खड़े थे की आज एकलिंगनाथ जी की मूर्ति इस भोज्य पदार्थ को साक्षात् ग्रहण करेंगे ! कुछ समय के बाद बर्तनों के बजने की आवाज आई ! मूर्ति के आगे से पर्दा हटाकर देखा तो भीमा आशिया द्वारा परोसे गए थाल की भोजन सामग्री देव स्वरुप ने ग्रहण कर ली थी, थाल खाली था !  परन्तु पुजारी के हाथ से रखी प्रसाद ज्यो की त्यों कटोरी में पड़ी थी !
     राणा स्वयं ने श्री एकलिंग भगवान व भीमा आशिया का जयघोष किया ! उसके साथ ही उपस्तिथ गणमान्यो के जयघोष से मेवाड की धरा व अरावली पर्वतमाला गर्ज उठी  ! भीमा आशिया के साथ एकलिंग मंदिर द्वार से राणा अन्य समस्त सिरदारो के साथ भोजन शाला में गए ! बड़े ठाट के साथ राणा अमर सिंह ने भोजन ग्रहण किया और सन्देश भेजकर समस्त राज परिवार को भोजन शाला में बुला कर  भोजन करवाया !
     उस विशाल गोट में उस ज़माने में 5 लाख लोगो ने वहा भोजन ग्रहण किया था ! वहा लोगो के उपयोग में आने वाले जल प्रवाह से इतना कीचड़ बन गया था की हाथी का भी उसमे से निकलना संभव नहीं था !
   विरोधियो ने अभी तक हार नहीं मानी थी ! 80 मोतिसरो को उन्होंने फूलगर ( ऊनि स्वेटर ) भेट देने के बहाने रोक कर रखा था ! विरोधियो की मनसा थी की इन्हें भोजन शाला बंद होने के बाद ही यहाँ से भोजन के लिए रवाना करेंगे तब तक भीमा भोजन कर लेगा फिर तो भोजन बढ़ना बंद ही जायेगा ! मगर भीमा अपने ईस्ट बल के प्रभाव से कुछ ससंकित था , उसने शाम होने पर भी भोजन नहीं किया था ! सेवको द्वारा भोजन के लिए आवाज लगाई तब उन 80 मोतिसरो को  एक साथ भोजन के लिए भेज गया ! परन्तु सिद्धीया प्राप्त भीमा ने भोजनशाला बंद होने पर भी ठाट से भोजन कराया ! तब भीमा आशिया ने विलम्ब का कारण पूछा तो उन्होंने सत्य बात प्रकट कर दी ! भीमा आशिया ने कहा की आप एक फूलगर पर बिक गए , आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था ! खेर कोई बात नहीं अब आप प्रत्येक मोतिसर एक एक घोड़ी भेट स्वरुप लेकर जावे ! भीमा ने उन सबको 80 घोडिया देकर विदा किया !
   भीमा आशिया अत्यंत उदारमना व बहुत बड़े दानी थे ! इसलिए इनकी दानवीरता के कारण इन्हें भीम करण अर्थात कर्ण के समान दातार माना गया हे ! गंगा के किनारे स्वर्ण दान करने के सम्बन्ध में इनका यह दोहा बड़ा प्रख्यात हे ----

सितर मण सोनो दियो ! कर कर कंचन काप !
भागीरथ रे चोतरे ! भीम वेरावत आप !!

  🏼 गणपत सिंह मुण्डकोशिया -9950408090

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