ચારણત્વ

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શનિવાર, 17 સપ્ટેમ્બર, 2016

भगतबापु रचित सुवाक्यो

जय माताजी

आजना सुवाक्यो

*31. दुनियानी सौ अजायबीओमां मोटी अजायबी अे छे के , मरण चोक्कस छे, छतां जीवननिर्वाहनी प्रवृत्ति उपरांत पण मानवी केटलीक अंधाधूंधी करी बेसे छे.*

*32. रोग , वृद्दत्व , अने मरण ईच्छा विना आवे छे.*

*33. शास्त्रो जे आज्ञा करी गयां छे . तेना पालन करतां जेनी ना कही गयां छे.ते करवा तरफ मनुष्यनी वधारे प्रवृत्ति छे.*

*34. महापुरुषना आदेश पर बुद्धिनां चोगठां बनावीने मनुष्ये पोताने मनमानतो व्यवहार कर्यो छे.*

*35. गूमडाने रुझ तो अंदरथी आवे छे. बहारनो उपचार तेने वधवा देतो नथी.*

*36. नाना झाडने थोडो वखत वाड करीने रक्षण करवुं जोईअे मोटुं थया पछी अेने ढोर वगेरे उखेडी शक्तां नथी.*

*37. सुखी मानवीओना स्मशाननुं नाम शहेर छे.*

*38.बुद्धि अेक नवी वस्तुनी शोध करीने सो उपाधिओने जन्म आपे छे.*

*39. ईश्वरने न मानवा करतां मानवाथी फायदो छे , न मानवी वीतावेला अवतारने अंते पस्तावानो पार रहेतो नथी.*

*40. उत्तम क्षुधा निर्विघन निंदा, अंग महेनत अने ग्रामनिवास अे महापुण्यनां फळ छे.*

*रचियता :- भगतबापु , कागवाणी भाग - 5*

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