। कविओं तो कइक थया, पण जेनी ब्रह्माण्डे पहोची वात;
एक ईशर थी उजणी ,आखा जगमा चारण जात ।।
ईशरधाम मंदिर गांव हजनाली संत ईशरदासजी का पिपलिया चाररस्ता के पास में मोरबी गुजरात
कच्छ नरेश रा खेंगारजी का कोई वंश नहीं था. ईशरदासजी के आशीर्वाद से उनके घर दो पुत्र जन्मे थे. जब रा खेंगारजी के बड़े पुत्र रा भारमल कच्छ की गद्दी पर बैठे की जो ईशरदासजी के ही दिए हुए थे तब उन्हों ने हजनाली गांव ईशरदासजी को भेट दिया था. आज ईशरदासजी के पुत्र जेसाजी का परिवार हजनाली में बसता हे. हजनाली गांव जामनगर से भादरेश राजस्थान जाने के रस्ते में ही पड़ता हे. ऐसा कहा जाता हे की ईशरदासजी भादरेश जाते समय यहाँ रुकते थे. आज पुराने हजनाली गांव की उसी जगह पे ईशरदासजी का मंदिर बना हुवा हे. साथमें माँ सोनल और द्वारिकाधीश भी बिराजमान हे.
।। सवंत 1515 में जन्मे ईशरचंद ;
चारण वरण चकोरमें उनदिन हुवो आनंद ।।
चारण संत महात्मा इशरदासजी सवंत 1515 में बाड़मेर राजस्थान के भादरेश गांव में जन्मे थे. पिता सुराजी रोहड़िया साखाके चारण थे. भगवान् श्री कृष्णके परम उपासक थे. अमरेलीके राजा वजाजी सरवैया उनके परम मित्र थे. वजाजीके एकलोते पुत्र करणकी शादीका आमंत्रण इशरदासजीको देते हे. इशरदासजी जब अमरेली पहोंचे तब करणको साँपने काट लिया था और उसका मृत्यु हो गया था. करणकी अंतिमयात्रा इशरदासजीको सामने मिलती हे. इशरदासजीको अंतिमयात्रा देखके बहोत दुःख होता हे. इशरदासजी ने वजाजीको बोला आज में चारण आपके घर पहलीबार आया और ऐसा हो गया. चारण के पैर कभी खराब नहीं होते इशरदासजीने लाशको निचे उतरनेका बोला. कुँवरके माथे पर इशरदासजीने हाथ रखा और स्तुतिकी कुँवर निंद्रामेंसे जागा हो वैसे बैठ गया. कुँवरकी शादी करवाई. शादी के बाद एक महीने तक वजाजीने इशरदासजी को अमरेली रोका. शादीकी पहेरामनीमें अमरेली स्टेटमें ईश्वरीया और वरसड़ा दो गांवकी जागीर इशरदासजीको दी. परसोतम रूपालाने इशरदासजीकी अमरेलीमें मूर्ति बनवाई हे और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी के हाथो उनका उदघाटन हुवाथा.
इशरदासजी जब अमरेली जा रहे थे तब नागड्चाडा गांवमें सांगजी राजपूतके घर रुके थे. सांगाजी कामडी यानी भेड़िया या शाल अच्छी बनाते थे. सांगाजीको कामडी इशरदासजीको भेटमें देनी थी लेकिन अधूरीथी. सांगाजी बोले आप हिंगलाजसे वापिस जरूर पधारियेगा में बनाके रखूँगा. लेकिन इशरदासजीके जानेके बाद वेणु नदिमें एक बछड़ेको बचानेके लिए जाते हे और पानीके तेज बहावमें बह जानेसे उनकी मृत्यु हो जाती हे. जब इशरदासजी वापिस नागड्चाडा आये तो सांगाजी की माँ रोने लगे उन्होंने सांगाजीकी मृत्युके समाचार दिए. इशरदासजी वेणु नदीके किनारे जाते हे. पूरा गांव इक्कठा होता हे. सब बोलते हे इशरदासजी पागल हो गए हे. मरनेके बाद कोई वापिस नहीं आता. इशरदासजीने वेणु नदीके किनारे से सांगाजीको तीन आवाज लगाई. पूरी दुनिया देखे वैसे सांगाजी बछड़े सहित वापिस आये.
हरिरस और देवीयान जैसे महान ग्रंथोकी रचनाकी और भगवान श्रीकृष्ण और माँ रुक्मणीको अपने हाथोसे अर्पण किये
आखरी जिंदगीमें जामनगरके सचाणा गांवमें पसारकी. एक दिन भगवान् श्री कृष्णको बोले मुझे अब हमेशाके लिए आपके पास आ जाना हे. भगवान श्री कृष्णने सवंत 1622 बुधवार और रामनवमीका महूर्त दिया. रामनवमीके दिन पूरी दुनिया देखे वैसे संचाणाके समुद्र पर इशरदासजीने घोडा चलायाथा और भगवान् श्री कृष्णमें शरीर सहित समा गए थे.
भादरेश और संचाणामें इशरदासजीके भव्य मंदिर हे. जन्मदिन भादरेशमें और निर्वाणदिनका संचाणामें भव्य आयोजन होता हे.
इशरदासजीको इशरा सो परमेश्वरा कहा जाता हे.
आज भी सच्चे रिदयसे याद करो तो भक्तोके सब काम करते हे.
जामनगर से जयदेवदान चारण के जय माताजी सभी मित्रो को
मो- 09924518202
जय इशरदासजी की
जय हो माँ करणी की
संत ईशरदासजी चारण के गांव हजनाली में होनेवाले ईशरनवमी के उत्सव में हजनाली आने के लिए
मोरबी से हजनाली नजदीक हे. मोरबी आने के लिए अहमदाबाद से गवर्मेन्ट बस की भी सुविधा हे.मोरबीकी बस चालू ही रहती हे. ट्रेन से आने में वांकानेर जंक्शन से मोरबी की डेमू चलती हे.मोरबी रेलवे स्टेशन के सामने से हजनाली के लिए रिक्शा की सुविधा हे
हजनाली मालीया से जामनगर मैन हायवे पर हे कच्छ से उस रस्ते भी आप आ सकते हो. कच्छ से जामनगर की सब बसे वाया पिपलिया चार रस्ता हजनाली होके गुजरती हे.
बाड़मेर से मोरबी आनेके लिए चोहटन चोराहे से गोरसिया ट्रेवल्स की डैली बस चलती हे.
जामनगर से हजनाली जाने के लिए कच्छ जानेवाली सभी गवर्मेन्ट बसे वाया आमरण हजनाली होके गुजरती हे. शिवशक्ति और पटेल ट्रेवल्सकी बसे भी हजनाली होके गुजरती हे
जयदेवदान चारण
मो 09924518202
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