*अपने गौरवशाली इतिहास संस्कृति की रक्षा अकूत धन संपदा से भी अधिक आवश्यक है*
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विपत्ति की विषमतम बेला में जब 1914 में अंग्रेजों के दबाव से शाहपुरा की हवेली छोड़ने का क्षण उपस्थित हुआ तब तिजोरी में सुरक्षित इतिहास के अमूल्य ग्रन्थ “ राजपूताना का अपूर्व इतिहास” के हस्तलिखित रजिस्टर के तीनों भाग लेकर अपने आंचल में छुपाए हुए नितांत असहाय अवस्था में जिसने अपना प्रतिष्ठित गृह सदा के लिए त्याग दिया। ग्रंथकर्ता कृष्ण सिंह जी बारहठ कि ज्येष्ट पुत्र वधु विरांगना माणिककुंवर सहधर्मिणी क्रांतिकारी केसरी सिंह के धैर्य ,अप्रतिम संघर्ष, सहनशीलता को बारम्बार नमन! जब अंग्रेजों ने पुरी हवेली को ज्यों की त्यों छोड़ कर बाहर निकलने का आदेश दिया तब उस महान देवी ने सिर्फ इस एतिहासिक ग्रन्थ को लेना ज्यादा जरूरी समझा बजाय धन संपत्ति के।
असीम त्याग, बलिदान , उच्च जीवन मूल्यों की एसी महान नारी ही प्रताप जैसे पूत्र को जन्म दे सकती है।
स्वजनों ! आज हमें न तो अपना कुछ त्यागना है , न ही कुछ हमारे सामने शत्रु है । हमें सिर्फ अपनी मानसिकता , अपनी सोच संकुचित स्वार्थ से ऊपर उठाकर अपने दैविय समाज अपनी कुलदेवीयों के जीवन चरित्र का अनुसरण करते हुए संगठित होकर अपने आप को चारणत्व की कसोटी पर खरा उतारना है।
अपने पास संसार को दिखाने के लिए बौद्धिक, साहित्यिक, दैविय, मातृशक्ति के कृपा प्रसाद की संपदा है। जिससे हम स्वयं अनजान हैं । एसे विचारों व इतिहास में झांकने के लिए चारणत्व मेगज़ीन में धारावाहिक के रूप में हर अंक में “राजपूताना का अपूर्व इतिहास”
का आलेख आपके समक्ष प्रस्तुत हो रहा है। जिसको पढ़ कर आप अवश्य गौरवान्वित महसूस करेंगे।
महेंद्र सिंह चारण
संपादक
*चारणत्व*
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