ચારણત્વ

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બુધવાર, 21 જૂન, 2017

कवि हमीरदानजी रतनुं रचीत गीत - सपाखरो

गीत – सपाखरो

देवां दातारां जूझारां चारां वेदां अवतारां दशां,
धरां हरां ग्यारां रवि बारां चारां धांम।।
सतियां जतियां सारां सुरां पुरां रिषेसरां,
पीरां पैगम्बरां सिद्ध साधकां प्रणाम।।१।।

नवां नाथां नवां ग्रहां नवसो नवाणुं नदी,
नखत्रां नवेही लाखां भाखां नवे निद्ध।।
पर्वतां आठ कुळां वसु आठ वंदां पाव,
साठ आठ तिरथां समेतां आठ सिद्ध।।२।।

सात वारां सातविसां नखत्रां सरग्गां सात,
सप्त समुदरां सात पेयाळां तत सार।।
पुरांणां अढारां भारां अढारां वनस्पति,
ऊच्चरां आदिनाथ औमकार।।३।।

पारस कल्पतरू चंद्र सुर दिगपाळ,
पृथ्वी आकाश पाणी पावक पवन्न।।
कैलाशवासी ईश कुबेर नमस्कार,
ब्रहमा गणेश शेष खगेश विसन्न।।४।।

अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका,
पुरी द्वारामति सरसति गंगा पार।।
गौदावरी जरी रेवा गौमती प्रयाग गया,
कावेरी सरजु मही बद्री कैदार।।५।।

सौमवल्ली चिन्तामणी रोहिणी सुभद्रा सोहां,
सावित्री गायत्री गीता अरूधन्ती सीत।।
कामधेनु श्री अदिती रंदल द्रौपदी कुन्ती,
पार्वती सति तारा लोचन पवीत।।६।।

चौरासी चारणी देवी छप्पन कोटि चामुण्डा,
माता हिंगळाज आशापुरा महामाय।।
अंबिका कालिका नागणेशी डुंगरेची आई,
रवेची चाळकने़ी नमो सुरंराय।।७।।

वाल्मिकी शुकदेव वशिष्ठ अत्री वेदव्यास,
गौतम नारद ईन्द्र सालिग्राम।।
जमद्ग्न धर्म प्रथु मानधाता जंजीठल,
रणछोड़राय रिषयावन्त राजा राम।।८।।

मछन्दर जालंधरनाथ गौरख धुँधळीमल,
चक्रवृती अजयपाळ गोग चहुआंण।।
मल्लिनाथ जसराज मांगणां सुं तुषमांन,
रामदे सोमदे पाबु रायमल्ल् रांण।।९।।

जंगमां थावरां गिणां गंध्रवां किन्नरां जख्खां,
विघन बुराई वाद वारीजै वियाध।।
कमाई रां पुरां नरां अमरां हमीर कहे,
अमां रिधी सिधी दीजो वडा् रे आराध।।१०।।

             ~~कवि हमीरदान जी रतनू